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Maharashtra: पहली बार नहीं हुई है शिव सेना में बगावत, बाला साहब भी नहीं रोक पाए थे पार्टी में टूट
Maharashtra: शिवसेना का इतिहास ऐसी बगावतों से भरा पड़ा है। अतीत में शिवसेना में ऐसे बगवात हो चुके हैं। बालासाहेब ठाकरे भी इन टूटों से पार्टी को नहीं बचा पाए थे।
Mumbai news: अभी हाल तक शिवसेना (Shiv Sena) के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय राउत (Spokesperson Sanjay Raut) बीजेपी (BJP) को महाराष्ट्र की सरकार गिराने की चुनौती देते रहते थे। तमाम अंदरूनी उठापटक के बावजूद तीन पार्टियों वाली महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार (Mahavikas Aghadi Coalition Government) कागज पर मजबूत दिख रही थी।
माना जा रहा था कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार (NCP supremo Sharad Pawar) के रहते इस सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी। लेकिन एमवीए गठबंधन (MVA Alliance) सरकार पर आंच ऐसी जगह से आई कि शरद पवार ने भी हाथ खड़े कर लिए हैं। शिवसेना में हुई अचानक इस भीषण फूट का अंदाजा किसी को नहीं था।
लेकिन शिवसेना का इतिहास (History of Shiv Sena) ऐसी बगावतों से भरा पड़ा है। अतीत में शिवसेना में ऐसे बगवात हो चुके हैं जिन्होंने पार्टी की सेहत को काफी नुकसान पहुंचाया है। बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) जैसे करिश्माई नेतृत्व भी इन टूटों से पार्टी को नहीं बचा पाए थे। मातोश्री के एक आदेश पर कुछ भी करने को तैयार शिवसेना के विधायक आज उसी मातोश्री की पहुंच से दूर हैं। तो आइए एक नजर शिवसेना में अब तक हुई बड़ी टूटों पर डालते हैं।
शिवसेना में पहली बगावत
1990 के दशक को शिवसेना के स्वर्णिम दौर के रूप में देखा जाता है। पार्टी महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभर चुकी थी। शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की उस समय तूती बोलती थी। कहते हैं कि उस दौरान उनके कहने पर मुंबई थम जाती थी। लेकिन उसी दौर में शिवसेना ने पहली बगावत देखी। दरअसल 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी थी। तब बालासाहेब ठाकरे ने विधानसभा में मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता बना दिया था, यही जोशी पांच साल बाद शिवसेना – बीजेपी की पहली सरकार के मुख्यमंत्री बने थे।
जोशी को विपक्ष का नेता बनाया जाना शिवसेना के एक अन्य दिग्गज नेता छगन भुजबल को रास नहीं आया। भुजबल की नजर विपक्ष के नेता की कुर्सी पर थी। कहा जाता है भुजबल को सड़क से उठाकर राजनीति के अखाड़े में लाने वाले बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) ही थे। उन्हें के आर्शीवाद से भुजबल मुंबई के मेयर भी बने थे।
ऐसे में बालासाहेब से उनकी नजदीकी को देखते हुए किसी को उम्मीद नहीं था कि वह बगावत करेंगे। भुजबल 9 शिवसेना विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। उस दौरान शिवसेना से बगावत करना आसान नहीं था, छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal) पर शिवसैनिकों ने हमले की कई कोशिशें भी की। लेकिन तब कांग्रेस के नेता रहे शरद पवार के समर्थन के कारण उनपर आंच नहीं आई। बाद में जब शरद पवान ने कांग्रेस तोड़कर एनसीपी बनाई तो भुजबल भी उनके साथ हो लिए। भूजबल को इसका फायदा भी मिला। 2008 में कांग्रेस –एनसीपी की सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। वह मौजूदा महाराष्ट्र सरकार में भी कैबिनेट मंत्री हैं।
जिसे मुख्यमंत्री बनाया, उसी ने कर दिया विद्रोह
शिवसेना को दूसरा झटका दिया पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार में मौजूदा केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने। राणे की भी स्टोरी बड़ी दिलचस्प है। एक आम इंसान को बालासाहेब ने कैसे शिवसेना में फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया, राणे इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं। नारायण राणे ने शाखा प्रमुख से अपना सियासी सफर शुरू किया और बहुत जल्द वह कोंकण क्षेत्र में शिवसेना के कद्दावर नेता बन गए। अपनी तेजतर्रार और आक्रमक छवि के कारण वह शिवसेना संस्थापक के काफी करीब पहुंच गए। उन्हें इसका फायदा भी मिला। चुनाव से ऐन पहले 1999 में बालासाहेब ने मनोहर जोशी को हटाकर नारायण राणे को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन वह शिवसेना – बीजेपी गठबंधन को जीता नहीं पाए।
2003 में उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया गया, लेकिन उद्धव ठाकरे से उनकी तकरार बढ़ती गई। कहा जाता है कि उद्धव शिवसेना में नारायण राणे के बढ़ते कद से असहज थे। 2005 आते – आते राणे और उद्धव में तनातनी काफी बढ़ गई थी, शिवसेना ने उन्हें पार्टी से भी निष्कासित कर दिया था। नारायण राणे ने उस दौरान आरोप लगाया था कि शिवसेना में पद और टिकट बेचे जा रहे हैं। शिवसेना से बाहर किए जाने के बाद राणे ने 12 विधायकों के साथ कांग्रेस ज्वाइन कर लिया और वह विलासराव देशमुख की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। राणे आज बीजेपी में हैं और केंद्र में मंत्री हैं। राणे अब भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमलावर रहते हैं।
जब भतीजे ने कर दिया विद्रोह
शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे का वास्तिविक सियासी उत्तराधिकार किसी को माना जाता था तो वह थे राज ठाकरे (Raj Thakrey)। दोनों में कई समानताएं थीं, शिवसेना के कैडर में भी बालासाहेब के बाद उनके भतीजे राज की स्वीकार्यता सबसे अधिक थी। लेकिन पुत्रमोह में शिवसेना संस्थापक ने भतीजे राज के बजाय अपने बेटे उद्धव को पार्टी की कमान सौंप दी।
यहीं से ठाकरे परिवार (Thackeray family) में कलह की शुरूआत हो गई। राज महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव से वरिष्ठ थे। लेकिन धीरे –धीरे पार्टी में उन्हें साइडलाइन करने की कोशिश शुरू हो गई। उद्धव ने पार्टी की कमान हाथ में आने के बाद उन्हें सभी महत्वपूर्ण कामों से अलग कर दिया। यहां तक कि टिकट बंटवारे में भी उनकी रजामंदी नहीं ली गयी।
नतीजा ये हुआ कि 2005 के दिसंबर में उन्होंने शिवसेना छोड़ दी। कहा जाता है कि उस दौरान काफी संख्या में शिवेसना के सांसद, विधायक और नेता उनके साथ आने के लिए तैयार बैठे थे। लेकिन चाचा के सम्मान के लिए वह पार्टी नहीं तोड़ना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (Maharashtra Navnirman Sena) बनाई, जिसे अबतक राज्य की सियासत में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है।