घुसपैठिये बदल रहे हैं मुम्बई की पॉलिटिक्स, रिसर्च ने उठाये बड़े सवाल

Maharashtra Politics : मुंबई में अवैध घुसपैठियों की तादाद इतनी बड़ी हो गई है कि वे इस मेगा सिटी के सामाजिक, आर्थिक और यहां तक कि राजनीतिक माहौल को भी प्रभावित कर रहे हैं।

Neel Mani Lal
Published on: 8 Nov 2024 11:39 AM GMT
घुसपैठिये बदल रहे हैं मुम्बई की पॉलिटिक्स, रिसर्च ने उठाये बड़े सवाल
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Maharashtra Politics : मुंबई में अवैध घुसपैठियों की तादाद इतनी बड़ी हो गई है कि वे इस मेगा सिटी के सामाजिक, आर्थिक और यहां तक कि राजनीतिक माहौल को भी प्रभावित कर रहे हैं। और इन घुसपैठियों की बड़ी संख्या बांग्लादेश और म्यांमार से आए मुस्लिमों की है।

टाटा इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट

मुंबई के बारे में ये चौंकाने वाली जानकारी टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के एक अध्ययन की अंतरिम रिपोर्ट में दी गई है। शोधकर्ताओं की टीम ने लगभग 3,000 अप्रवासियों का अध्ययन किया, लेकिन अंतरिम रिपोर्ट राज्य विधानसभा चुनावों से पहले केवल 300 के नमूने के साथ प्रस्तुत की गई है।

इन इलाकों में हैं घुसपैठिये

रिपोर्ट में कहा गया है कि ये घुसपैठिये ज्यादातर धारावी, गोवंडी, मानखुर्द, माहिम पश्चिम, अंबेडकर नगर जैसे इलाकों में केंद्रित हैं।

असंतोष फैला रहे

- अंतरिम अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि ये अवैध अप्रवासी कंस्ट्रक्शन और घरेलू काम जैसे क्षेत्रों में कम-कुशल नौकरियां करते हैं, जिससे इसी लेवल के लोकल मजदूरों के बीच ममजदूरी को लेकर असंतोष होता है।

राजनीतिक फायदा उठाया जा रहा

- रिपोर्ट बताती है कि कुछ राजनीतिक संस्थाएं कथित तौर पर वोट बैंक की राजनीति के लिए अवैध अप्रवासियों का इस्तेमाल कर रही हैं।

मतदाता पंजीकरण में हेराफेरी, बिना दस्तावेज़ वाले घुसपैठियों के कथित तौर पर नकली मतदाता पहचान पत्र आदि से चुनावी निष्पक्षता और भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की अखंडता के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं। अध्ययन में आरोप लगाया गया है कि - "कुछ राजनेता वोट के लिए घुसपैठियों को पहचान पत्र या राशन कार्ड देने का काम कर सकते हैं। राजनीति से प्रेरित घुसपैठ ध्रुवीकरण को बढ़ाता है और चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है, जिससे ज़रूरी विकास से ध्यान भटक सकता है।"

सवाल भी उठे

TISS के प्रो-वाइस-चांसलर शंकर दास और सहायक प्रोफेसर सौविक मंडल द्वारा किए गए अध्ययन को जेएनयू (JNU) की कुलपति शांतिश्री पंडित की मुख्य अतिथि के रूप में एक सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया गया। वहीं टाटा इंस्टिट्यूट के एक फैकल्टी सदस्य ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को बहुत खराब तरीके से डिजाइन किया गया है। क्योंकि ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कोई शोधकर्ता निश्चित रूप से यह बता सके कि मुंबई में रहने वाला कोई प्रवासी बांग्लादेशी या रोहिंग्या है।"

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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