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Maharashtra: बदल गया औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम, जानें- अब किस नाम से जाना जाएगा?
Maharashtra News: महाराष्ट्र सरकार की सिफारिश के बाद केंद्र सरकार ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने की मंजूरी दे दी गई है।
Maharashtra News: महाराष्ट्र के औरंगाबाद (Aurangabad) और उस्मानाबाद (Osmanabad) शहरों का नाम बदलकर क्रमशः छत्रपति संभाजी नगर (Chhatrapati Sambhaji Nagar) और धाराशिव (Dharashiv) कर दिया गया है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि उसने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है क्योंकि इन शहरों का नाम बदलने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है।
केंद्र की मंजूरी
इससे पहले फरवरी में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया था कि केंद्र सरकार को उस्मानाबाद का नाम बदलने पर कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा था कि औरंगाबाद का नाम बदलने पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति संदीप वी मार्ने की पीठ तब दोनों शहरों का नाम बदलने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
उद्धव सरकार का था फैसला
औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का निर्णय उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से हटने से कुछ घंटे पहले 29 जून, 2022 को महा विकास अघाड़ी सरकार की कैबिनेट बैठक में लिया गया था। वास्तव में, यह उद्धव सरकार के आखिरी फैसलों में से एक था। बाद में, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि यह निर्णय अवैध था क्योंकि यह तब लिया गया था जब एमवीए सरकार अपना बहुमत खो चुकी थी। 16 जुलाई, 2022 को शिंदे सरकार ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। शिवसेना और भाजपा जैसी पार्टियों ने लंबे समय से मांग की थी कि दोनों शहरों का नाम बदला जाए।
महाराष्ट्र का प्रमुख शहर
1980 के दशक के अंत में, औरंगाबाद मुंबई ठाणे बेल्ट के बाहर उन प्रमुख शहरों में से एक बन गया, जिस पर सेना की निगाहें टिकी थीं। शहर की 30 फीसदी मुस्लिम आबादी ने इसे ध्रुवीकरण के लिए उपजाऊ जमीन बना दिया था। 1988 में यहां भीषण दंगों में 25 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। दंगों के तुरंत बाद, शिव सेना ने औरंगाबाद नगर निगम के चुनाव जीते थे।
बालासाहेब की घोषणा
8 मई, 1988 को दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे ने औरंगजेब द्वारा मारे गए शिवाजी के बेटे संभाजी के नाम पर शहर का नाम बदलकर संभाजी नगर करने की घोषणा की। 1995 में, निगम ने ऐसा करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया, और शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर योजना पर सुझाव और आपत्तियां मांगीं।
हाईकोर्ट में चुनौती
अधिसूचना को तत्कालीन कांग्रेसी पार्षद मुश्ताक अहमद ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। याचिका को अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। बहरहाल, नाम बदलना एक विवादास्पद मुद्दा बना रहा और हर चुनाव से पहले फिर से उभर आया।