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Mohan Bhagwat: मोहन भागवत बोले– पहले नहीं थे ग्रंथ, स्वार्थी लोगों ने कुछ-कुछ घुसाया, एक बार समीक्षा जरूरी

Mohan Bhagwat: रामचरितमानस विवाद को लेकर हिंदू समाज में प्रचलित सदियों पुरानी जातीय व्यवस्था पर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जाति व्यवस्था को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का बयान भी काफी सुर्खियों में रहा है।

Krishna Chaudhary
Published on: 3 March 2023 10:34 AM IST (Updated on: 3 March 2023 12:57 PM IST)
Mohan Bhagwat
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Mohan Bhagwat (Photo: Social Media)

Mohan Bhagwat: रामचरितमानस विवाद को लेकर हिंदू समाज में प्रचलित सदियों पुरानी जातीय व्यवस्था पर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जाति व्यवस्था को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का बयान भी काफी सुर्खियों में रहा है। संघ प्रमुख ने एकबार फिर इस पर अप्रत्यक्ष ढंग से सवाल खड़े किए हैं। नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा, भारत के पास पारंपरिक ज्ञान का विशाल भंडार है। कुछ स्वार्थी लोगों ने प्राचीन ग्रंथों में जानबूझकर गलत तथ्य जोड़े।

मोहन भागवत ने कहा कि ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में चीजों को देखने का वैज्ञानिक नजरिया रहा है। मगर आक्रमणों के कारण हमारी व्यवस्था नष्ट हो गयी और ज्ञान की हमारी संस्कृति विखंडित हो गई। हमारे पास परंपरागत रूप से जो है, उसके बारे में हर व्यक्ति के पास कम से कम मूलभूत जानकारी होनी चाहिए। इसे शिक्षा प्रणाली और लोगों के बीच आपसी बातचीत के जरिए हासिल किया जा सकता है।

ग्रंथों – परंपराओं की समीक्षा जरूरी

आरएसएस के सरसंघचालक ने कहा कि हमारे यहां पहले ग्रंथ नहीं थे, मौखिक परंपरा से चलता आ रहा था। बाद में ग्रंथ इधर-उधर हो गए और बाद में कुछ स्वार्थी लोगों ने ग्रंथ में कुछ-कुछ घुसाया जो गलत है। उन ग्रंथों, परंपराओं के ज्ञान की एकबार फिर समीक्षा जरूरी है। मोहन भागवत के इस बयान को हिंदू धर्म में प्रचलित सदियों पुरानी जातिय व्यवस्था के खिलाफ जोड़ देखा जा रहा है।

मोहन भागवत इससे पहले भी समाज में ऊंच-नीच पर सवाल खड़े कर चुके हैं। पिछले दिनों मुंबई में संत रविदास जी की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि समाज में कोई ऊंचा, कोई नीचा या कोई अलग कैसे हो गया। भगवान ने हमेशा बोला है कि मेरे लिए सभी एक हैं। लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई, वो गलत था। भागवत के इस बयान पर ब्राह्मणों और साधु-संतों के एक तबके से तीखी प्रतिक्रिया भी आई थी।



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Prashant Dixit

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