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अंतर केवल मानसिक दृष्टिकोण का, अध्यात्म की राह पर ही आनंद

raghvendra
Published on: 21 Jun 2019 6:07 PM IST
अंतर केवल मानसिक दृष्टिकोण का, अध्यात्म की राह पर ही आनंद
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जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक भागों को अलग देखने की जरूरत नहीं है। अंतर केवल मानसिक दृष्टिकोण का है। हमें आध्यात्मिकता समझ लेनी चाहिये और उसी के अनुसार जीवन जीना चाहिये, तभी जीवन आनंदमय होगा। आध्यात्मिकता हमें सच्चा सुखी जीवन जीना सिखाती है। मानों जीवन का भौतिक पक्ष- चावल है और आध्यात्मिक पक्ष शक्कर है। आध्यात्मिकता की मिठास खीर को मीठा बनाती है। आध्यात्मिक समझ से जीवन में मधुरता आती है। यदि तुम जीवन के केवल भौतिक पक्ष को महत्व दोगे तो दुख ही पाओगे। जो केवल सांसारिक सुखों की कामना करते हैं, उन्हें दुख भोगने के लिए भी तैयार रहना चाहिये। अत: जो दुख झेलने के लिये तैयार हों, उन्हें ही सांसारिक वस्तुओं के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। सांसारिक पक्ष हमेशा तुम्हें परेशान करेगा, पीड़ा देगा। इसका यह अर्थ नहीं कि तुम संसार का पूरी तरह त्याग कर दो। संसार में रहते हुए, आध्यात्मिकता की समझ-बूझ होना भी आवश्यक है। तब सांसारिक दुख तुम्हें कमजोर नहीं कर पायेंगे।

हमारा अपना होने का दावा करने वाले संबंधी भी वास्तव में हमारे नहीं हैं। हमारा परिवार भी वास्तव में हमारा नहीं है। केवल भगवान ही हमारा सच्चा परिवार है। शेष कोई भी, कभी भी, हमारे विरुद्ध जा सकता है। लोग केवल अपने सुख के लिए हमें प्यार करते हैं। जब दुख, बीमारी और मुसीबत आती है, तो उसे अकेले ही झेलना पड़ता है। इसलिये केवल प्रभु से जुड़े रहो। अगर हम संसार से जुड़ जाएंगे, तो फिर अपनी स्वतंत्रता पाना बहुत कठिन हो जायेगा। संसार की आसक्ति से मुक्त होने के लिए एक व्यक्ति को अनगिनत जन्म लेने पड़ते हैं।

जीवन ऐसा जीना चाहिए जैसा अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। तब, लोगों के मुंह फेर लेने या विरुद्ध हो जाने पर भी हम उदास नहीं होंगे। हमारा कोई अति प्रिय व्यक्ति भी अचानक हमारे विरुद्ध हो जाए, तो भी हम नहीं टटूेंगे, हमारे पास निराश होने का कोई कारण नहीं होगा।

अगर तुम्हारे हाथ में चोट लगी है, तो बैठकर रोने से घाव नहीं भरेगा। धन नष्ट होने पर या संबंधी के वियोग पर भी रोते रहने से कुछ नहीं होगा। रोने से कुछ भी वापस नहीं आएगा। हम यदि समझ लें और स्वीकार कर लें कि आज जो हमारे साथ हैं, वे कल हमें छोड़ भी सकते हैं, तो हम किसी के छोड़ जाने या विरुद्ध हो जाने पर भी अप्रभावित रह सकेंगे। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसी को प्यार न करें। प्यार करें, किंतु हमारा प्यार निस्वार्थ और बिना किसी अपेक्षा के होना चाहिए। इस प्रकार हम अनावश्यक दुखों से बच सकते हैं।

सांसारिक जीवन में दुख हैं। फिर भी यदि हममें आध्यात्मिक समझ-बूझ है तो हम इससे कुछ सुख पा सकते हैं। यदि हम प्रशिक्षण पाए बिना तूफानी समुद्र में कूद पड़ेंगे तो लहरें हमें दबा देंगी और हम डूब भी सकते हैं। लेकिन, जिन्हें समुद्र में तैरना आता है, उन्हें विक्षुब्ध लहरों से कोई परेशानी नहीं होगी। इसी प्रकार यदि आध्यात्मिकता हमारा जीवन आधार है, तो हम किसी भी परिस्थिति में आगे बढ़ सकते हैं।

सुखी रहने के सूत्र

हमेशा मंत्र जप करो। केवल ईश्वर चर्चा करो। समस्त स्वार्थ त्याग दो। सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दो। इन चार सूत्रों का पालन करने पर, हम कभी दुखी नहीं होंगे। जब हम संसार की किसी भी वस्तु से जुड़ सकते हैं, तो ईश्वर से क्यों नहीं? हमारी जीभ संसार के हर विषय पर चर्चा कर सकती है, तो मंत्र जाप क्यों नहीं कर सकती? यदि हम ये कर सकें, तो हम और हमारे आसपास के लोग भी सुख-शांति का अनुभव करेंगे।

आध्यात्मिक होने का अर्थ है- ‘नि:स्वार्थ होना और सब कुछ परमेश्वर को सौंप देना- यह जानते हुए कि सब कुछ उसी का है।’ जो इस प्रकार का जीवन जीते हैं, वे स्वयं आंतरिक शांति अनुभव करते हैं और आसपास के लोगों में भी शांति का अहसास जगाते हैं।

अम्मा अमृतानंदमयी



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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