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हाईकोर्ट ने पूछा, प्राइमरी प्रधानाचार्य कालेज प्रबंधक कैसे? दिए जांच के आदेश
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि क्या प्राइमरी स्कूल के अध्यापक या प्रधानाचार्य किसी माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक हो सकते हैं? और क्या सरकारी खजाने का धन प्राइवेट संस्था के व्यक्ति को कुप्रबंधन के लिए दिया जा सकता है? कालेज प्रबंधन पर आरोप है कि वह प्राइमरी स्कूल में पढ़ा नहीं रहा और वेतन ले रहा है तथा प्रधानाचार्य रहते हुए इंटर कालेज का प्रबंधक बना हुआ है। जो इंटरमीडिएट एक्ट के खिलाफ है।
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इस पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा को जांच करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने पूछा है कि शिक्षा मद में सरकारी धन के दुरूपयोग पर किस प्रकार से रोक लगायेंगे। क्या सरकार शिक्षण संस्थाओं का प्रदेशीकरण करने पर विचार करेगी। कोर्ट ने प्रमुख सचिव से सोलह जनवरी तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने बब्बन सिंह इंटर कालेज सतासिया देवरिया के सेवानिवृत्त अध्यापक वासुदेव त्रिपाठी की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता बी.एन.मिश्र व आर.बी.मिश्र ने बहस की। कोर्ट ने कालेज के प्रबंधक व प्राइमरी पाठशाला खिधिन्या गोरखपुर के प्रधानाध्यापक से सफाई मांगी है कि क्यों न उन्हें प्रबंधक के रूप में कार्य करने से रोक दिया जाए। साथ ही 60 साल में सेवानिवृत्ति लेने वाले याची को सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान 9 फीसदी ब्याज सहित दो माह में करने का निर्देश दिया है।
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कोर्ट ने सरकार को छूट दी है कि ब्याज राशि प्रबंधक से वसूल लें। याची ने 60 साल में सेवानिवृत्ति मांगी। प्रबंधक जो याची का पुत्र है विरोध किया। 31 मार्च 2015 को याची सेवानिवृत्ति हो गया किन्तु सेवा परिलाभों का भुगतान रूका रहा। प्रबंधक ने बिना अनुमति गैर हाजिर रहने पर याची को बर्खास्त कर दिया। इसे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने नहीं माना। याची ने प्रबंधक पर बिना पढ़ाये वेतन लेने का आरोप लगाया तो कोर्ट ने धन के दुरूपयोग की जांच का आदेश दिया है।