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हाल ए व्यवस्था: करोड़ों खर्च मगर गंदगी ज्यों कि त्यों

raghvendra
Published on: 1 Jun 2018 7:04 AM GMT
हाल ए व्यवस्था: करोड़ों खर्च मगर गंदगी ज्यों कि त्यों
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: दो दशक से अधिक समय तक बतौर सांसद नगर निगम की बुनियादी समस्याओं से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए सडक़ से संसद तक संघर्ष करने वाले योगी आदित्यनाथ ने जब यूपी की कमान संभाली तो गोरखपुर के बाशिंदे उम्मीदों से भर गये। उम्मीद ये कि शायद अब हमारा शहर सुधर जाएगा। कुछ काम शुरू भी हुए, लेकिन 100 करोड़ से अधिक की देनदारी से जूझ रहा नगर निगम लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। पिछले एक साल में सीएम के आवागमन के रास्ते में चूना डालने और डिवाइडरों की पेंटिंग पर भले ही लाखों रुपये खर्च हो गए हों, लेकिन सफाई व्यवस्था बेपटरी ही है।

हाल-ए-नगर निगम

  • गोरखपुर निगम अपनी कुल आय यानी 30 करोड़ का करीब ९० फीसदी सफाई पर खर्च कर रहा है।
  • नगर निगम में करीब 600 स्थायी और 1700 आउटसोर्सिंग के सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं। अब नये सिरे से 1600 सफाई कर्मचारियों की तैनाती के लिए टेंडर निकाला गया है।
  • नगर निगम के पास पोकलेन की 6 बड़ी और 12 छोटी मशीनें हैं। विभिन्न वार्डों में कूड़ा उठाने वाली गाडिय़ों की संख्या 179 है।
  • कूड़ा उठाने वाली गाडिय़ों पर 6 करोड़ रुपये का डीजल पूरे साल में खर्च हो जाता है। कर्मचारियों के वेतन और गाडिय़ों पर मरम्मत पर निगम निगम साल में 3 करोड़ रुपये से अधिक रकम खर्च करता है। नगर निगम सफाई और कर्मचारियों के वेतन पर करीब 18 करोड़ रुपये सालाना खर्च करता है।

कूड़ा फेंकने पर जुर्माना सिर्फ कागजों में

नियम: नगर निगम की नई सरकार की कार्यकारिणी और बोर्ड बैठक में खुले में कूड़ा फेंकने पर भारी-भरकम जुर्माना तो तय कर दिया, लेकिन अभी तक एक रुपये जुर्माना नहीं वसूला जा सका है। नये नियमों के मुताबिक कूड़े को खुले में सार्वजनिक स्थलों, तालाब और नदी में फेंकने वालों को अब 5,000 का जुर्माना भरना पड़ेगा। इसके अलावा सडक़ पर भवन निर्माण सामग्री और मलबा आदि गिराने वालों पर 30 हजार का जुर्माना लगेगा। नगर आयुक्त प्रेम प्रकाश सिंह का दावा है कि नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 16 और एनजीटी और उच्च न्यायालय के निर्देशों के क्रम में शहर को गंदा करने वालों पर मौके पर अर्थदंड लगाने के लिए अधिकारियों को नामित किया गया है। नियम का उल्लंघन करने वालों को जुर्माना भरना पड़ेगा।

सच्चाई: नगर आयुक्त का बयान हवा हवाई नजर आता है। शहर की शायद ही कोई सडक़ हो जिस पर कूड़ा न बिखरा हो। लोग सरेराह कूड़ा फेंकते नजर आते हैं, लेकिन निगम के सफाई निरीक्षक जुर्माना काटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। सडक़ों के किनारे 500 से अधिक गिट्टïी-बालू की दुकानें सजी हुई नजर आती हैं। देवरिया बाईपास, असुरन-मेडिकल रोड, मोहद्दीपुर-इंजीनियरिंग कॉलेज गेट, गोरखनाथ रोड आदि पर अफसर बिल्डिंग मेटेरियल की दुकानों से जुर्माना वसूलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अलबत्ता खुले में कूड़ा फेंकने पर निगम ने पिछले छह महीने में 126 लोगों का चालान किया है, लेकिन जुर्माने के नाम पर कुछ नहीं हुआ।

डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन सिर्फ नाम का

दो साल पहले नगर निगम के 70 में से 20 वार्डों में जोर-शोर से डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन शुरू हुआ था। लखनऊ की मुस्कान ज्योति संस्था को डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन का जिम्मा सौंपा गया। सिविल लाइंस को छोडक़र किसी भी वार्ड में महीने भर से अधिक कूड़ा कलेक्शन नहीं हो सका। मुस्कान ज्योति के जिम्मेदारों ने चंद महीने बाद ही यह कहते हुए हाथ खड़ा कर दिया कि नागरिक कूड़ा उठाने के एवज में तय 60 रुपये शुल्क नहीं दे रहे हैं। हालंाकि मुस्कान ज्योति ने इस दौरान संसाधनों के नाम पर लाखों रुपये का भुगतान नगर निगम से करा लिया। कूड़ा कलेक्शन की प्रक्रिया पटरी से उतरता देख निगम ने मुस्कान ज्योति को ब्लैक लिस्टेड कर भुगतान में अनियमितता के आरोप में मुकदमा भी दर्ज करा दिया। फिलहाल कूड़ा उठाने का कार्य ठेके पर संचालित हो रहा है।

फूट सकता है लोगों का गुस्सा

कूड़े का निस्तारण महेसरा स्थित सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के प्लांट पर किया जा रहा है। हालांकि कूड़े का निस्तारण ठीक से नहीं करने को लेकर आसपास के ग्रामीण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले दिनों नगर निगम के कर्मचारियों ने मरे हुए जानवरों को खुले में फेंक दिया और कूड़े को जला दिया था। नतीजतन जहरीली हवा उठने से आसपास के लोग विरोध पर उतर गए थे। लोगों ने मुख्य सडक़ पर गड्ढïे खोदकर कूड़ा गाडिय़ों को रोकने का प्रयास किया। इसके बाद निगम के अफसरों ने अज्ञात के खिलाफ चिलुआताल थाने में तहरीर दे दिया। भय में शांत ग्रामीणों का गुस्सा कभी भी फूट सकता है। हालांकि दूसरी तरफ नगर निगम के अफसर सालिड वेस्ट मैनेजमेंट की योजना को अमली जामा पहनाने की कवायद में तेजी से जुटे हैं।

दरअसल जलनिगम ने गोरखपुर के सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए टेंडर आमंत्रित किया था, लेकिन कंपनियों ने यह कहते हुए निविदा में भाग नहीं लिया कि वार्डों से कूड़ा कलेक्शन की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाए। ताकि कूड़े से बिजली उत्पादन की स्थिति में कूड़े के कलेक्शन से लेकर निस्तारण तक में किसी प्रकार की दिक्कत न हो। लखनऊ में पिछले पखवाड़े हुए हाई पॉवर कमेटी में इस पर सहमति बन गई। निगम के अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। उधर, निगम प्रत्येक वार्ड को ठेके पर देने की तैयारी में है। वार्ड का ठेका लेने वाली फर्म को ही सफाई से लेकर कूड़ा कलेक्शन का जिम्मा सौंपा जाएगा। कूड़ा कलेक्शन से कमाई को लेकर भी निगम का एक्शन प्लान तैयार है। अब निगम विभिन्न आवासीय और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 105 श्रेणियों में बांटकर कूड़ा कलेक्शन की दर को तय किया है।

क्या कहते हैं सफाई के जिम्मेदार

मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुकेश रस्तोगी का कहना है कि शहर की सफाई व्यवस्था से संतुष्ट तो नहीं हैं, लेकिन स्थिति बेहतर हो इसका लगातार प्रयास कर रहे हैं। जनसंख्या के हिसाब से सफाई कर्मचारियों की भारी कमी है। नगर निगम में शहर की जनसंख्या 7 लाख मानकर सुविधाएं दी जा रही हैं, जबकि शहर की जनसंख्या करीब 13 लाख पहुंच चुकी है। 1600 नये सफाई कर्मचारियों के लिए टेंडर निकाला गया है। पॉलीथिन सफाई व्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा है। प्रतिबंध लगने के बाद भी प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से पॉलीथिन नालियोंं में फेंका जा रहा है। प्रमुख बाजारों में सुबह और रात में सफाई होती है। लेकिन दुकानदार दिन में 9 बजे के बाद सडक़ पर कूड़ा फेंक दे रहे हैं। सफाई व्यवस्था में संसाधनों की भी कमी है। डिवाइडर और पेड़ों पर जमा होने वाली धूल को साफ करने वाली मशीन मंगाई जा रही है। पिछले बार स्वच्छता सर्वेक्षण में गोरखपुर को 324 वां स्थान मिला था। हम इन्दौर के बराबर तो नहीं,लेकिन आसपास पहुंचने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।

जनता तो निराश

प्रमुख बाजारों में सफाई व्यवस्था पूरी तरह चौपट है। सफाई के लिए रात्रिकालीन व्यवस्था सिर्फ लूटखसोट के लिए चालू हुई है। लगता ही नहीं गोरखपुर मुख्यमंत्री का शहर है।

अनुराग गुप्ता, आर्यनगर

प्रमुख सडक़ों पर तो नगर निगम के सफाई कर्मचारी नजर भी आ जाते हैं, लेकिन गलियों की उपेक्षा होती है। किसी भी वार्ड का बीट चार्ट नहीं बना है। करोड़ों खर्च का कोई मतलब नहीं।

राधेश्याम मिश्रा, बिछिया कैंप

सफाई कर्मचारी नालों से सिल्ट निकालकर सडक़ पर छोड़ देते हैं जिससे चंद घंटे बाद गंदगी दोबारा नाली में पहुंच जाती है। निगम को प्लान बनाकर सफाई कार्य करना होगा।

आशा सिंह, फर्टिलाइजर कॉलोनी

नगर निगम के साथ ही आम लोगों को भी सफाई को लेकर जागरूक होना होगा। कई बार देखा जा रहा है कि सफाई होने के बाद नागरिक कूड़ा सडक़ों पर फेंक देते हैं।

जितेन्द्र सिंह, अधिवक्ता

सफाई व्यवस्था में भी वीआईपी कल्चर हावी होता जा रहा है। विधायक से लेकर पार्षद के घरों के आसपास जैसी तत्परता दिखती है वैसी पूरे वार्ड में नहीं दिखती। शिकायत का भी कोई मतलब नहीं है।

अरविन्द सिंह, पादरी बाजार

सफाई को लेकर शिकायतों के निस्तारण में गोरखपुर को प्रदेश में पहला स्थान मिला है। जबकि हकीकत यह है कि पिछले 12 महीने में 7 शिकायतों को बिना सफाई के निस्तारित बता दिया गया।

शशि श्रीवास्तव, आरटीओ अधिवक्ता

शहरों में कूड़ा पड़ाव केन्द्र और कूड़ेदान से कूड़े के निस्तारण की कोई तय योजना नहीं है। कूड़े को खुली गाडिय़ों में निस्तारित किया जाता है। पूरे रास्ते कूड़ा बिखरता हुआ जाता है।

श्वेता श्रीवास्तव, सूरजकुंड

निगम में सर्वाधिक भ्रष्टाचार सफाई व्यवस्था में है। आलम यह है कि सफाई के नाम पर हर साल नगर निगम 6 करोड़ का डीजल फूंक रहा है। खर्च के अनुपात में सफाई नहीं दिखती है।

राजू लुहारूका, देवरिया बाईपास रोड

कई बार यह उजागर हो चुका है कि सफाई का ठेका पार्षदों के पास है। पार्षदों ने पत्नियों और रिश्तेदारों के नाम से सफाई का ठेका ले लिया है। जब तक पारदर्शिता नहीं होगी तब तक सफाई व्यवस्था बेपटरी ही रहेगी।

राजीव श्रीवास्तव, टॉउनहाल

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि गोरखपुर की सडक़ें भी इन्दौर के बराबर भले ही नहीं मगर आसपास तो दिखेंगी ही। लेकिन योगी के कार्यकाल में भी स्थिति बेहाल है।

रेनू श्रीवास्तव, बिछिया रेलवे कॉलोनी

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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