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कला बाजार के व्यवसायीकरण से उभरती हैं नई प्रतिभाएं 

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 5:46 PM IST
कला बाजार के व्यवसायीकरण से उभरती हैं नई प्रतिभाएं 
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सतीश गुजराल

कला बाजार के व्यापक व्यावसायीकरण पर दिग्गज चित्रकार जतिन दास समेत कई बड़े कलाकारों ने निराशा जताई है, लेकिन समकालीन भारतीय कला के अगुआ सतीश गुजराल का मानना है कि व्यावसायीकरण नई प्रतिभा के उत्थान को भी प्रेरित करता है। पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित गुजराल का कहना है कि व्यावसायीकरण का प्रभाव निश्चित रूप से जागरूकता के रूप में भी हुआ है।

कला की दुनिया में सम्मानित व्यक्ति 91 वर्षीय गुजराल (पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई) ने एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, ‘यह सच है कि कला का बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण हुआ है, लेकिन इसने नई प्रतिभा के उत्थान को भी प्रेरित किया है। हालांकि, व्यावसायीकरण (व्यापार) और (उखड़ी हुई) कला में प्रामाणिक प्रतिभा ने उद्योग जगत में कुछ जागरूकता भी पैदा की है।’

उन्होंने यह भी कहा कि कला हमेशा हमारी संस्कृति का एक मजबूत पक्ष रही है। ‘यह हर जगह थी, मंदिरों के साथ-साथ शाही अदालतों में। इसे कहानियों को गढऩे के लिए एक उत्कृष्ट माध्यम भी माना जाता है, जो वर्णन के लायक होती है।’

‘आज भी, कलाकारों में बहुत प्रतिभा है। वे अपने ख्याल या कल्पनाओं को दुनिया के सामने असाधारण चित्रों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, कमी है तो दुनिया के साथ संवाद करने के सही मंच की।’

सतीश गुजराल ने एक ऐसे समाज की आशा की, जहां लोग कला को समझें। नयी दिल्ली में बीकानेर हाउस में कलाकृति ‘ट्रिनिटी’ को प्रदर्शित किए जाने पर उन्होंने कहा, यह जनता को कला की तरफ लाने के लिए बस एक शुरुआत थी। ‘मुझे आशा है कि निकट भविष्य में एक समय आएगा, जब जनता सभी तरह की कला को देखने के लिए उपलब्ध होगी। और तब यह जीवन और संचार का एक तरीका बन जाएगा।’

उन्होंने कहा कि शुरुआत में चित्रकारी, मूर्तिकला और वास्तुकला को अलग-अलग नहीं देखा जाता था, बल्कि सभी को कला की शाखाओं के रूप में माना जाता था। ‘यह सब अब अलग-अलग रूपों में जुदा हो चुकी हैं। आज कुछ लोग चित्रों को समझने का दावा करते हैं, लेकिन वे आर्किटेक्चर नहीं हैं। मुझे इमारत का खाका बनाने के लिए कभी डिग्री प्राप्त करने की जरूरत महसूस नहीं हुई।’

गुजराल ने राजधानी दिल्ली स्थित बेल्जियम दूतावास को डिजाइन किया है, जो एक कला-वास्तुकला का जटिल नमूना हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘मुझसे अक्सर कहा गया कि जिन भवनों को मैंने डिजाइन किया है, वे मूर्तियों के समान हैं।’

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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