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क्रिसमस पर विशेष: मानवता के संदेशवाहक ईसा ने दिखाई सच्ची राह
पूनम नेगी
"तू खून न कर, व्यभिचार न कर, चोरी न कर, झूठी गवाही न दे, ठगी न कर, अपने पिता-माता का आदर कर और अपने पड़ोसी से अपनों के समान प्रेम कर और उनके प्रति दयावान रह, अपने लिये पृथ्वी पर धन बटोर कर न रख..... मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूंढ़ो तो तुम पाओगे, खटखटाओ तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा....धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किये जाएंगे। धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। मैं तुमसे सच कहता हूं कि यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो तो तुम्हारे कहने पर पहाड़ सरक जाएगा।"
ईसा मसीह की यह दिव्य ज्ञान आज समूचे विश्व में लोगों को जीवन की सच्ची राह दिखा रहा है। प्रेम व मानवता के इस संदेशवाहक की यह अमृतवाणी मानव धर्म का सार तत्व कही जा सकती है। इन्हें धर्म के सनातन सूत्र कहा जा सकता है, जिनका सार है कि मानव के कल्याण के लिए किया जाने वाला प्रत्येक कर्म धर्म है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि धरती पर जब जब पाप, अनाचार व अन्याय बढ़ता है तब मैं विभिन्न रूपों में जन्म लेकर पीड़ित मानवता का उद्धार करता हूं। ईसा मसीह ऐसे ही एक महामानव हैं जिन्होंने 5-6 ईसा पूर्व येरुशलम के बैतलहम नगर में एक गोशाला में जन्म लिया था।
ईसाईयों के प्रतिनिधि धर्मग्रंथ में कथानक मिलता है कि गलीलिया प्रांत के नाजरेथ गांव की रहने वाली एक ईश्वर निष्ठ कुंवारी कन्या मरियम जिसकी सगाई युसुफ नाम के एक बढ़ई से हो चुकी थी, एक दिन आकाशवाणी के अनुसार उस पर एक पवित्र आत्मा उतरती है और वह गर्भवती होती है। जब उसका गर्भधारण का समय पूरा होने को होता है तभी देश में जनगणना की मुनादी होती है। जनसंख्या सूची में नाम लिखाने गरीब यूसुफ भी अपनी मंगेतर मरियम के साथ जाता है। कड़ाके की सर्दी में वे दोनों रात बिताने एक में रुकते हैं, उसी गोशाला में मरियम ने अर्द्धरात्रि को एक शिशु बालक को जन्म देती है। यह बालक शांति का राजकुमार कहलाया और मसीहा के रूप में दुखी-पीड़ितों का उद्धारकर्ता बना। कहा जाता है कि देवदूतों ने इस बालक के जन्म की सूचना सबसे पहले खुले आकाश तले अपनी भेड़ों की रखवाली करने वाले गरढ़ियों को दी थी। विचार कीजिए कितना पवित्र अवतरण और कितना पावन संदेश, बिल्कुल हमारी अवतारी सत्ताओं की तरह।
क्रिसमस यानी क्राइस्ट्स मास। ईसाईयों का यह प्रमुख त्योहार प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन की खुशी में समूची दुनिया में भारी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। समूची दुनिया को प्रेम और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले इस महापुरुष के जन्म की तरह उनका समूचा जीवन अनेक प्रेरक व रहस्यपूर्ण घटनाओं व चमत्कारों से भरा है।
विद्वानों व शोधकर्ताओं की मानें तो ईसाईयों के प्रतिनिधि ग्रन्थ "बाइबिल" में ईसा मसीह के जीवन के 13 से 29 साल के बीच की कहीं कोई जानकारी नहीं मिलती है; मगर रूसी इतिहासकार निकोलस नोकोविच की "द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट", फ्रांसीसी साहित्यकार लुइस जेकोलियत का "कृष्ण और क्राइस्ट का तुलनात्मक अध्ययन", जर्मन शोधकर्ता होल्गर कर्स्टन की "जीसस लिव्ड इन इण्डिया", कश्मीरी इतिहासकार फिदा हसनैन की "फिफ्थ गॉस्पल", भारतीय मनीषी स्वामी परमहंस योगानंद की "द सेकेंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट" व स्वामी अभेदानंद की बांग्ला भाषा में लिखित "ईसा का तिब्बत और कश्मीर भ्रमण" आदि में ईसा मसीह के मध्य जीवन के इन 16-17 सालों की कई रोचक व महत्वपूर्ण जानकारियां दी गयी हैं।
इन सभी लेखकों ने विभिन्न तथ्यों के साथ इस बात की पुष्टि की है कि इस अवधि में ईसा भारत आये थे। वे काफी समय तिब्बत और कश्मीर के बौद्ध मठों में रहे। भारत भ्रमण के दौरान वे पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भी रुके थे। सिंध प्रांत में बुद्ध की शिक्षाओं के अध्ययन के बाद उन्होने पंजाब में जैन साहित्य भी पढ़ा। वहां से वे राजगीर, बनारस समेत कई और तीर्थों का भ्रमण कर नेपाल गये; जहां उन्होंने बौद्ध ग्रंथों तथा तंत्र शास्त्र की शिक्षा ली फिर कई देशों की यात्रा करते हुए अपने वतन लौट गये। स्वामी परमहंस योगानंद लिखते हैं कि उनके जन्म की सूचना पर बेथलेहेम पहुंचे तीन ज्योतिषी भारतीय बौद्ध विद्वान थे, जिन्होंने उनका नाम "ईसा" रखा था।
ईसाई समाज की मान्यता है कि सूली चढ़ाये जाने के तीसरे दिन वे पुनर्जीवित हो गये और अपने शिष्यों को अंतिम गिरि प्रवचन देकर वे सशरीर स्वर्गारोहण कर गये। ईसा के जीवन पर शोध करने वाले विद्वानों का कहना है कि ईसा मसीह ने आत्मिक ज्ञान हिमालय में अर्जित किया था। भारत में सीखी चेतना विज्ञान की गूढ़ साधनाओं के बल पर सूली पर चढ़ाये जाने के बाद भी ईसा जीवित रहे और तीन दिन बाद अपने परिवार के साथ तिब्बत के रास्ते पुन: भारत आ गये और यहीं 80 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई। कश्मीर में उनकी कब्र आज भी मौजूद है