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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: सर्वप्रथम अमेरिका में फूटी थी बराबरी की चिंगारी
नारियों में अपरिमित शक्ति और क्षमताएं विद्यमान हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अपने अद्भुत साहस, अथक परिश्रम तथा दूरदर्शी बुद्धिमत्ता के आधार पर वे विश्वपटल पर अपनी सशक्त पहचान बनाने में कामयाब रही हैं। मानवीय संवेदना, कस्र्णा, वात्सल्य जैसे भावों से परिपूर्ण अनेक नारियों ने युग निर्माण में अपना महती योगदान दिया है।
पूनम नेगी
लखनऊ : नारियों में अपरिमित शक्ति और क्षमताएं विद्यमान हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अपने अद्भुत साहस, अथक परिश्रम तथा दूरदर्शी बुद्धिमत्ता के आधार पर वे विश्वपटल पर अपनी सशक्त पहचान बनाने में कामयाब रही हैं। मानवीय संवेदना, कस्र्णा, वात्सल्य जैसे भावों से परिपूर्ण अनेक नारियों ने युग निर्माण में अपना महती योगदान दिया है।
समानता के अधिकार की है जरूरत
सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का ही है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालांकि तथाकथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है। समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते हैं तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह भेदभाव समूची नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही हक पाने की अधिकारिणी है जो सम्मान समाज पुरुषों को प्रदान करता है। नारी को आरक्षण की नहीं समानता के अधिकार और उचित सुविधाओं की जरूरत है, उनकी प्रतिभा और महत्त्वकांक्षाओं को सम्मान मिले और सबसे बढ़ कर यह कि उन्हें बराबरी का दर्जा मिले।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
इन्हीं स्त्री हितों के लिए आवाज मुखर करने के लिए अब से करीब सौ साल पहले महिला दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। महिला दिवस यानी एक दिन महिलाओं के नाम। स्त्री शक्ति को सलाम करने के नाम। औरतों के संघर्ष, उनकी उपलब्धियों, चुनौतियों और लगातार आगे बढ़ने के हौंसले के नाम। यह दिन है आठ मार्च। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस। पूरी दुनिया में इस दिन को स्त्री के आजादी के जज्बे के साथ मनाया जाता है। औरतों के लिए बेहतर समाज के सपने को फिर से जगाया जाता है।
तरक्की का है प्रतीक
दुनिया भर में, चाहे वह किसी भी देश की महिला हो, किसी भी धर्म को मानने वाली महिला हो, उसकी संस्कृति कुछ भी हो, लेकिन उनमें एक अपनापन है, उनकी समस्याओं में समानता है, उनके मुद्दे, उनका दुख, उनका संघर्ष और उनकी उपलब्धियां कमोबेश एक जैसी हैं। यानी महिलाओं की दुनिया का फलक अंतर्राष्ट्रीय है। महिला दिवस अब एक अंतर्राष्ट्रीय परिघटना है। लगभग सभी विकसित और विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं की उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तरक्की दिलाने वाले दिन के रूप में याद किया जाता है।
स्त्री सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए इस दिन को दुनिया भर में एक बराबरी के जज्बे के साथ मनाया जाता है। इस दिवस पर स्त्री के अधिकारों और अन्याय के खिलाफ न्याय की बातें तो हम हर बार विभिन्न रूपों में करते ही रहते हैं। आइए हम इस दिवस से जुड़े इतिहास की चर्चा करते हैं।
पहली बार मनाया गया महिला दिवस
महिला दिवस का इतिहास बहुत पुराना है। महिला अधिकारों की चिंगारी सबसे पहले आज की विश्व शक्ति अमेरिका में 1857 में तब फूटी, जब वहां के न्यूयॉर्क शहर में कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्री की महिलाओं ने बराबरी का बिगुल फूंका। महिला मजदूरों ने समान मजदूरी के लिए समान वेतन, काम करने की मानवीय स्थितियों के बारे में संघर्ष किया। यह उस समय की बात है जब श्रमिक महिलाओं के काम करने की स्थितियां बेहद अमानवीय थी। उन्हें घंटों-घंटों काम करना पड़ता था और इसके बावजूद उन्हें पुस्र्षों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता था। इस लड़ाई में उन्हें शुरुआती जीत मिली। पहली बार सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने 28 फरवरी को पूरे अमेरिका में महिला दिवस को मनाया।
इस दिन घोषित किया ये दिवस
ये वह दौर था जब तमाम देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था। सरकारी नौकरियां उनके लिए नहीं थी, वेतन में तो गैर-बराबरी थी ही। ऐसे माहौल में स्त्री शक्ति ने, चल रहे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। वर्ष 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल ने कोपेनहेगन में 8 मार्च को महिला दिवस के तौर पर घोषित किया। इसके बाद यह चिंगारी दुनिया भर में फैलती गई। वर्ष 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्रलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव को खत्म करने की मांग उठी।
ऐसे तय हुआ एजेंडा
फ्रांसिसी क्रांति के स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारे ने महिला आंदोलन को और मजबूत किया। एक मजबूत महिला नेता के तौर पर हमारे सामने आईं क्लारा जेटकिन, जिन्होंने नारी मुक्ति के सवाल को बहुत संगठित ढंग से सामने रखा। क्लारा जेटकिन ने अपने अपने लेखनी और अपने भाषणों में इस बात को स्पष्टता से रखा कि नारी मुक्ति का सवाल पूरे समाज की मुक्ति और विकास से जुड़ा हुआ है। साथ ही यह भी कहा कि औरतों की आजादी का मतलब पुरुष विरोध से नहीं है। उन्होंने कहा, हमारी लड़ाई औरतों को गुलाम समझने वाली सोच से। इस तरह से महिला दिवस का एजेंडा भी तय हुआ।
इसके बाद से नारी मुक्ति की मशाल दुनिया भर में बुलंद हो गई। वर्ष 1975 से संयुक्त राष्ट्र ने भी दुनिया भर में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाना प्रारंभ कर दिया।