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स्काउटिंग: एक अद्वितीय शैक्षिक आंदोलन, बेडेन पॉवेल की जयंती पर विशेष

sujeetkumar
Published on: 22 Feb 2017 3:22 PM IST
स्काउटिंग: एक अद्वितीय शैक्षिक आंदोलन, बेडेन पॉवेल की जयंती पर विशेष
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पूनम नेगी

लखनऊ: सेना में ‘स्काउट’ शब्द का अर्थ होता है ‘गुप्तचर’। आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन पावेल को है। लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल था, जिनका जन्म 22 फरवरी, 1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माता श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की।

सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुंचा सकते हैं। बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।

भारत में स्काउटिंग- गाइडिंग

लार्ड बेडेन पावेल की पुस्तक ‘स्काउटिंग फॉर ब्वॉयज’ का प्रभाव विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ भारत पर भी पड़ा। जिसके फलस्वरुप भारत में भी स्काउटिंग शुरु करने का प्रयास किया जाने लगा। सन् 1910 में भारत में स्काउटिंग के आरम्भ होने पर इसमें केवल अंग्रेज तथा एंग्लो इंडियन बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता था। सन् 1913 में पं. श्रीराम वाजपेयी ने शाहजहांपुर में भारतीय बच्चों के लिए स्काउटों का एक स्वतंत्र दल खोला। सन् 1913 के उपरान्त एक के बाद एक दल खुलने लगे। सन् 1916 में पूना में लड़कियों को भी पहली बार गर्ल स्काउट (गाइड) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

सन् 1916 में एनी बेसेंट ने मद्रास में ‘इण्डियन ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की नींव रखी। सन् 1917 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने पं. हृदयनाथ कुँजरू और पं. श्रीराम वाजपेयी के सहयोग से इलाहाबाद में ‘अखिल भारतीय सेवा समिति ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की स्थापना की । सन् 1920 तक भारत में स्काउटिंग के कई स्वतंत्र संगठन बन चुके थे।

नवयुवकों के लिए यह एक स्वयंसेवी, गैर सरकारी, शैक्षिक आन्दोलन है। जो किसी मूल जाति और वंश के भेदभाव से मुक्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। यह 1907 में संस्थापक लार्ड बेडेन पॉवेल द्वारा संकल्पित किये गये लक्ष्य, सिद्धान्त तथा पद्धित के अनुरूप है। देशभक्त, बहादुर, फुर्तीले, सक्रिय, बुद्धिमान, अग्रगामी तथा दूरदर्शी नागरिकों का निर्माण करने वाली, भाईचारा तथा विश्व- बंधुत्व का पाठ पढ़ानेवाली, समाज- सेवा और ईश्वर के प्रति कर्तव्य- बोध कराने वाली अद्वितीय संस्था है।

आगे की स्लाइड में पढ़ें स्काउटिंग का उद्देश्य...

उद्देश्यः-

स्काउटिंग का उद्देश्य है युवाओं को बेहतर बनाना ताकि वे अपनी ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर सकें। नवयुवकों के विकास में इस तरह योगदान करना जिसमें उनकी पूर्ण शारीरिक, बौद्धिक, समाजिक तथा आध्यात्मिक अन्तः शक्तियों की उपलब्धि हो। व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नागरिकों के रूप में तथा स्थानीय, राष्ट्रीय समुदायों के सदस्यों के रूप में प्राप्त किया जा सके। युवाओं के व्यक्तित्व में छिपे गुणों व नजरिया को विकसित करने के बहु आयामी कार्यक्रम स्काउटिंग के पास है ताकि युवाओं में बाल्यकाल से ही कुशलता व प्रभावी गुणो का बीजारोपण किया जा सके एवं व्यक्तित्व के मूल्यांकन में अभिवृद्धि हो सके। हर व्यक्ति में आगे बढ़ने और प्रतिस्पर्धा करने के सभी गुण विद्यमान हैं, जरूरत है उन्हें तराश कर धारदार और सार्थक बनाने की। जो युवा पीढ़ी को इन्सान बनाने यानि मानवीय गुणधर्मिता को विकसित करने के साथ सुव्यवस्थित कैरियर विकसित करने मे मदद करने की क्षमता रखता है। अपनी अभिरूचि के अनुसार अपने अभ्यास वर्ग व विषय चुनने के साथ मार्गदर्शन व सहयोग देने को भी तत्पर है। स्काउटिंग व्यक्ति में अच्छा नजरिया व सकारात्मक सोच विकसित करने में सक्षम है। कोई भी अनुष्ठान व कार्यक्रम जीवन की परिस्थितियों को तुरन्त परिवर्तित नहीं कर सकता किन्तु इन परिस्थितियों को सहजता व सरलता से सहन करने की प्रवृति और शक्ति प्रदान कर सकता है और ऐसा करने का माद्दा स्काउटिंग में है। यह युवाओं के मन मस्तिष्क को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित कर उसे सकारात्मक ढंग से विकसित करने की क्षमता रखता है।

सिद्धांतः-

(1) ईश्वर के प्रति कर्तव्य का पालन।

(2) दूसरों के प्रति कर्तव्य का पालन।

(3) स्वयं के प्रति अपने कर्तव्य का पालन।

प्रतिज्ञाः-

(1) मैं यथा शक्ति ईश्वर/धर्म और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करूंगा।

(2) दूसरों की सहायता करूंगा।

(3) स्काउट नियमों का पालन करूंगा।

स्काउट नियमः-

(1) स्काउट विश्वसनीय होता है।

(2) स्काउट वफादार होता है।

(3) स्काउट सबका मित्र एवं प्रत्येक दूसरे स्काउट का भाई होता है।

(4) स्काउट विनम्र होता है।

(5) स्काउट पशुपक्षियों का मित्र और प्रकृति प्रेमी होता है।

(6) स्काउट अनुशासनशील होता है और सार्वजनिक संपदा की रक्षा करता है।

(7) स्काउट मितव्ययी होता है।

(8) स्काउट मन, वचन और कर्म से शुद्ध होता है।

नोटः- ‘स्काउट’ के स्थान पर ‘गाइड’ शब्द लगाने से यही ‘गाइड’ नियम हो जाते हैं।

कार्यक्षेत्रः-

(1) चरित्र निर्माण- स्वावलंबन और आत्मविश्वास।

(2) समाज सेवा- दूसरों की सेवा और नित्य एक भलाई का कार्य।

(3) स्वास्थ्य- आरोग्य के नियम।

(4) हस्त कौशल- तरह- तरह के कौशलों का ज्ञान।

(5) धार्मिकता- ईश्वर में विश्वास और अपने धार्मिक नियमों का पालन तथा दूसरों के धार्मिक विश्वासों का सम्मान।

नित्य भलाई का कार्य-

स्काउट/गाइड सदैव सेवा कार्य में लगे रहते हैं, फिर भी उन्हें नित्य एक भलाई का कार्य करना अनिवार्य होता है। इसके लिए स्कार्फ में एक गाँठ लगाई जाती है।

नित्य डायरी लिखना-

स्काउट/गाइड को प्रतिदिन अपने कार्यों एवं दिनचर्या का रिकार्ड रखने के लिए डायरी तैयार करना चाहिए।

स्काउटिंग जीवन के हर पड़ाव पर जरुरी-

स्काउटिंग एक जीवन शैली है। बचपन से वृद्धावस्था तक स्काउटिंग हमारे जीवन में नवीन चेतना का संचार करती है। हर उम्र के व्यक्ति को स्काउटिंग जीवन शैली से जीना चाहिये।

उम्र अनुसार विभाजनः-

3 से 5 वर्ष- बनी- टमटोला

6 से 10 तक- कब- बुलबुल

10 से 17 तक- स्काउट- गाइड

17 से 25 तक- रोवर्स- रेंजर्स

25 से अधिक- प्रशिक्षक, मास्टर तथा स्वैच्छिक समयदानी

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