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बांसगांव (सु) सीट पर कभी नहीं खुला बसपा का खाता
धनंजय सिंह
लखनऊ: आजादी के करीब डेढ़ दशक बाद अस्तित्व में आए बांसगांव सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र ने सभी दलों को मौका दिया है, लेकिन दलित राजनीति से उभरी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) यहां कभी नहीं जीत सकी। हालांकि कुछ चुनावों बसपा मजबूत जरूरी दिखी मगर उसके खाते में जीत कभी नहीं आई।
इस सीट पर बसपा दलित वोटरों को एकजुट करने में कभी कामयाब नहीं हो पाई। वर्ष 1989 से वर्ष 2014 तक के हर लोकसभा चुनाव में बसपा इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई में रही। अब महागठबंधन के सहारे बसपा एक बार फिर मैदान में है।
1962 में अस्तित्व में आई सीट
बांसगांव लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित लोकसभा सीट है। वर्ष 1962 में अस्तित्व में आई गोरखपुर जिले की इस लोकसभा सीट पर पहली जीत कांग्रेस की हुई थी। 1989 में बसपा ने पहली बार यहां अपना चुनावी भाग्य आजमाया। वीपी सिंह की लहर में बसपा नेता मोलई प्रसाद यहां से चुनाव मैदान में उतरे। पहले ही चुनाव में बसपा को 85 हजार से अधिक वोट मिले।
हालांकि, यहां की जनता पर लहर का कोई असर नहीं हुआ और उसने अपने पुराने नेता पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद पर भरोसा जता दिया। वर्ष 1991 के रामलहर में पहली बार भाजपा ने यहां अपना खाता खोला। राजनारायण पासी सांसद बने और कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद चुनाव हार गए। इस बार भी बसपा प्रत्याशी मोलई प्रसाद को 80,791 वोट पर संतोष करना पड़ा।
महावत बदलना भी काम नहीं आया
वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा के तत्कालीन दबंग विधायक ओमप्रकाश पासवान की पत्नी सुभावती पासवान पर जनता ने भरोसा जताया। इस बार बसपा के मोलई प्रसाद 1,02,746 वोट पाकर फिर संसद जाने से रह गए। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अपने महावत को बदला और ई. विक्रम प्रसाद पर दांव लगाया मगर परिणाम पुराना ही रहा और बसपा फिर यहां से हार गई।
एक साल बाद फिर हुए चुनाव में बसपा ने सदरी पहलवान पर दांव लगाया, लेकिन जीत का जश्न बसपा के हिस्से में नहीं आया। 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने पूरे दमखम के साथ चुनावी रणनीति बनाई। सदल प्रसाद चुनावी समर में उतरे, लेकिन क्षेत्रीय जनता ने एक बार फिर अपने पुराने नेता महावीर प्रसाद पर भरोसा जता दिया। इस बार बसपा दूसरे नंबर पर रही। वर्ष 2009 में बसपा के कद्दावर नेता श्रीनाथ एडवोकेट को भी दूसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2014 में बसपा ने फिर सदल प्रसाद पर दांव आजमाया, लेकिन इस बार भी दूसरा स्थान पहले में नहीं बदल सका।