कवियत्री और लेखिका के साथ भोजपुरी की मैना थीं 'मैनावती'

tiwarishalini
Published on: 25 Nov 2017 7:48 AM GMT
कवियत्री और लेखिका के साथ भोजपुरी की मैना थीं मैनावती
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sanjay tiwari संजय तिवारी

वह भोजपुरी की मैना ही थीं। हमेशा गाती हुई, गुनगुनाती हुई, कुछ रचती हुई, कुछ बसती हुई। उन्होंने भोजपुरी की लोकपरंपरा को गीतों में पिरोने का काम किया। लोकपरंपरा में भारतीय सामजिक परिवेश में रहन-सहन, जीवन-मरण से लेकर हर परिवेश को उन्होंने बड़ी ही कुशलता से अपनी रचनाओं में भी उकेरा है। वह जितनी अच्छी कवियत्री और लेखिका थी, उससे भी मधुर उनका स्वर था। प्रारम्भ में मैनावती देवी श्रीवास्तव ने म्यूजिक कंपोजर के रूप में आकाशवाणी में काम किया। गोरखपुर में जब दूरदर्शन का क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हुआ तब भी पहला स्वर उनका ही था।

हिन्दी के मंचों पर वे हमेशा भोजपुरी की सशक्त प्रतिनिधि बनकर उपस्थित रहती थीं। यह दीगर बात है कि उन्हें कोई पद्म सम्मान इसलिए नहीं मिला क्योकि उनका मूल्यांकन इस रूप में करने वाला कोई नहीं था, लेकिन यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि शारदा सिन्हा के बाद यदि किसी स्वर ने भोजपुरी को समृद्ध किया तो वह मैनावती देवी का ही स्वर था। यहां उन क्षणों की बरबस याद आती है जब गोरखपुर का साहित्य जगत बहुत समृद्ध हुआ करता था। उन दिनों यहां बहुत कवि सम्मेलन हुआ करते थे।

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अखिल भारतीय स्तर के इन आयोजनों में मैनावती देवी का स्वर हर कहीं उपस्थित होता था। माधव मधुकर की परंपरा से लेकर राजेश राज तक की काव्य यात्रा में मैनावती देवी सशक्त सम्बल के रूप में उपस्थित थीं। उनकी एक कविता यहां उद्धृत करने का मन हो रहा है-

जहां मेढिय़े खेतवा चरि जाला

का करिहें भइया रखवाला।

जहां नदिये पानी पी जाई,

जहां पेड़वे फलवा खा जाई,

जहवां माली गजरा पहिरे

ऊ फूल के बाग उजरि जाला।

जहां गगन पिये बरखा पानी,

धरती निगले सोना-चानी,

जहवां भाई-भाई झगड़े

उहवें सब बात बिगडि़ जाला।

जहां मेढिय़े खेतवा चरि जाला

का करिहें भइया रखवाला।

लोकगीतों से सामाजिक जीवन को मानव पटल पर उतारने वाली लोकगायिका मैनावती देवी श्रीवास्तव का जन्म बिहार के सिवान जिले के पचरूखी में एक मई 1940 को हुआ था। उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने लोकगायन की शुरुआत गोरखपुर से 1974 में आकाशवाणी गोरखपुर की शुरुआत के साथ की। आकाशवाणी गोरखपुर की शुरुआत मैनावती देवी के गीतों से ही हुई। उनके गीतों के बाद से ही भोजपुरी संस्कृति को एक अलग पहचान मिली। उन्होंने लोकगीतों के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार पर काफी काम किया।

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लोकपरंपरा में भारतीय सामाजिक परिवेश में रहन-सहन, जीवन-मरण से लेकर हर परिवेश को उन्होंने बड़ी कुशलता से अपनी रचनाओं में भी उकेरा है। वह कवियत्री और लेखिका भी थीं। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर की डिग्री ली थी। उनकी विरासत को उनके पुत्र राकेश श्रीवास्तव देश दुनिया में आगे बढ़ा रहे है।

मैनावती देवी की प्रकाशित पुस्तकों में 1977 में गांव के दो गीत (भोजपुरी गीत), श्री सरस्वतीचालीसा, श्रीचित्रगुप्त चालीसा, पपिहा सेवाती(भोजपुरी गीत), पुरखनके थाती (भोजपुरी पारंपरिक गीत) तथा अप्रकाशित पुस्तकों में कचरस (भोजपुरी गीत), याद करे तेरी मैना (गीत), चोर के दाढ़ी में तिनका (कविता) और बेघरनी घर भूत के डेरा (कहानी) जैसी रचनाएं रही हैं। 1974 से लोकगायन की शुरुआत करने वाली मैनावती देवी को पहला सम्मान 1981 में लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के 94वें जन्मदिवस के अवसर पर भोजपुरी लोक साधिका का मिला। 1994 में भोजपुरी शिरोमणि का सम्मान मिला।

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इसके बाद उन्हें अनेक सम्मान मिले। उनमें भोजपुरी रत्न सम्मान, 2001 में भोजपुरी भूषण सम्मान, 2005 में नवरत्न सम्मान, 2006 में 2012 में लोकनायक भिखारी ठाकुर सम्मान, लाइफटाइम एचीवमेन्ट अवार्ड तथा गोरखपुर गौरव जैसे सम्मान शामिल हैं। जिस रचनाधॢमता के साथ उन्होंने भोजपुरी को स्थापित किया है वह विलक्षण है। इस रचनाकार के बिना भोजपुरी और गोरखपुर के रचना संसार का इतिहास पूरा नहीं हो सकता। ऐसी मैना को सादर श्रद्धांजलि।

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