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151 वां जन्मदिन: कॉर्नेलिया सोराबजी, पहली महिला वकील

raghvendra
Published on: 17 Nov 2017 5:21 PM IST
151 वां जन्मदिन: कॉर्नेलिया सोराबजी, पहली महिला वकील
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गूगल अपने सर्च पेज लगातार महान शख्सियतों के ‘डूडल’ डालता रहा है। लोगों को कई बार यहीं से इतिहास के बारे में ऐसी जानकारी मिलती है जिसके बारे में इतिहास की किसी किताब में खोजने पर भी मुश्किल से नाम मिलता है। इसी क्रम में गूगल ने १५ नवंबर को कॉर्नेलिया सोराबजी का 151 वां जन्मदिन मनाया।

कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर 1866 को नासिक (महाराष्ट्र) में एक पारसी परिवार में हुआ था। वह पहली महिला थीं जिन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की और वो भारत व ब्रिटेन में वकालत करने वाली पहली महिला थीं। कॉर्नेलिया ने ऑक्सफोर्ड में जब दाखिला लिया था तब महिलाएं वहां पढ़ तो सकती थीं लेकिन उन्हें डिग्री नहीं दी जाती थी। सोराबजी बॉम्बे यूनिवॢसटी से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला थीं।

यह प्रतिबंध 1920 में हटाया गया था। कॉर्नेलिया वकालत की पढ़ाई के साथ महिलाओं के अधिकार आंदोलनों से भी जुड़ी रहीं। उनकी माता ने पुणे में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूलों की स्थापना की थी।

असल में कॉर्नेलिया इंग्लैंड गईं थीं मेडिकल की पढ़ाई करने। लेकिन महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने वकालत पढऩे का फैसला किया। ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उन पर कई बार दबाव बनाया गया कि वो ईसाई धर्म अपना लें, पर जब वो कहती कि वो ईसाई धर्म से ही हैं तो कोई उनपर विश्वास नहीं करता था।

जब वो सिविल लॉ में स्नातक की परीक्षा दे रही थीं तो लंदन के परीक्षक ने एक महिला की परीक्षा लेने से मना कर दिया और उसके बाद हॉस्टल की वॉर्डन के सामने उन्हें परीक्षा देनी पड़ी। इन सब के बाद जब महिलाओं के डिग्री लेने पर से प्रतिबंध हटा तब भी उन्हें डिग्री नहीं दी गई क्योंकि उन्होंने सभी के साथ बैठकर परीक्षा देने की अनुमति के लिए लड़ाई की थी।

कॉर्नेलिया के कदमों पर चलकर कई महिलाओं ने कानून की पढ़ाई की लेकिन उन्हें 1919 तक किसी भी कोर्ट में एक वकील के रूप में काम करने की अनुमति नहीं थी। कॉर्नेलिया कार्नेलिया 1894 में भारत लौटीं। अंतत: 1907 के बाद कार्नेलिया को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया।

एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर रिटायर हुयीं। उन्होंने पर्दानशीं महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए भी लंबी लड़ाई लड़ी।

वर्ष 1954 में कार्नेलिया की मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है।

वकालत से हटकर उन्होनें कई किताबें लिखीं - सन बेबीज, लव एंड लाइफ बियोंड, पुरदाह, गोल्ड मोहर आदि। उन्होंने अपनी आत्मकथा - बिटवीन द ट्वाईलाइट्स भी लिखी।

२०१६ में कॉर्नेलिया की 150 वीं जयंती के अवसर पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने कॉर्नेलिया सोराबजी के नाम से स्कॉलरशिप की शुरुआत की। कॉर्नेलिया सोराबजी लॉ प्रोग्राम ऑक्सफोर्ड के भारतीय सेंटर में पोस्ट डॉक्टरेट और पोस्ट डॉक्टरल प्रोग्राम चलाया जाता है। इस प्रोग्राम में भारतीय स्नातक छात्र हिस्सा लेते हैं। इस स्कॉलरशिप को पाने वाली पहली महिला दिव्या शर्मा चंडीगढ़ से हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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