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जन्मदिन दीपा मेहता : ' फॉयर ' , 'अर्थ ' और ' वॉटर ' ( तत्वों की त्रयी ) फ़िल्म

'फॉयर ' , 'अर्थ ' और ' वॉटर ' ( तत्वों की त्रयी ) फ़िल्म बनाने वाली निर्माता , निर्देशक और पटकथा लेखक दीपा मेहता जी की याद आने के भी अपने संदर्भ हैं । वह टोरंटो , ओंटारियो, कनाडा रहती हैं। आज एक जनवरी को उनका जन्मदिन है। काशी मैं , ' वॉटर ' फ़िल्म की शूटिंग कवर करने गया था

Anoop Ojha
Published on: 1 Jan 2018 5:42 PM IST
जन्मदिन दीपा मेहता :  फॉयर  , अर्थ  और  वॉटर  ( तत्वों की त्रयी ) फ़िल्म
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जन्मदिन दीपा मेहता : ' फॉयर ' , 'अर्थ ' और ' वॉटर ' ( तत्वों की त्रयी ) फ़िल्म

राघवेंद्र दुबे राघवेंद्र दुबे

'फॉयर ' , 'अर्थ ' और ' वॉटर ' ( तत्वों की त्रयी ) फ़िल्म बनाने वाली निर्माता , निर्देशक और पटकथा लेखक दीपा मेहता जी की याद आने के भी अपने संदर्भ हैं । वह टोरंटो , ओंटारियो, कनाडा रहती हैं। आज एक जनवरी को उनका जन्मदिन है। काशी मैं , ' वॉटर ' फ़िल्म की शूटिंग कवर करने गया था । उनके साथ रहा । नारी मुक्ति की चेतना एक बार फिर, अंधी आस्था पर टिके निजाम से, आतताई शर्तों पर सुलह के लिए मजबूर कर दी गयी है। शाहबानो फैसले पर एतराज वालों की प्रकृति के हिन्दू संस्करणों ने ही ' वॉटर ' पर फॉयर किया है। यथार्थजीवी रचनात्मकता का सतीत्व खतरे में है। दीपा मेहता की ' वॉटर ' को लेकर उठा विवाद खत्म नहीं हुआ। हालांकि काशी की आम जनता और जनपक्षधर सृजनशीलता ने ' वॉटर ' का साथ दिया है , फिर भी भगवा उपद्रव के नाते फ़िल्म की शूटिंग रोक देनी पड़ी। मालूम हो कि दीपा मेहता के' वॉटर ' का कथ्य काशी की वह विधवा औरत है जो मन मारकर अपनी देह में है ।देह में गैरहाजिर उसकी आत्मा समझौतों और दबाव में जीने को मजबूर कर दी गयी है। स्क्रिप्ट में एक पात्र मंसा राम( पंडित जी )का संवाद है --

'हमारे धर्मग्रथों में विधवा के सामने दो ही विकल्प हैं । या तो वे सांसारिक बातों को छोड़ें या पति के साथ जीवित जल कर मर जाएं ..'स्थानीय सोनारपुरा और बंगाली टोले में विवर्ण त्वचा के ढांचे में बस औरत कहलाती , इस कथानक की कई पात्र हैं। इस संवाददाता की एक महिला से बात होती है। घुटन के माहौल को थोड़ा हिला देने की गरज से ,पूछे गए एक सवाल पर उसने बताया कि, उसके जैसी कई महिलाएं फिर कलकत्ता जाने के लिए मजबूर कर दी गईं ।उनके मकान दबंगों ने कब्जा लिये। ऐसी औरतें अब सहारा मांगती हैं क्योंकि सहारे में आस्था रखती हैं। इनमें से कोई फिसल गयी या कुचक्र की शिकार औरत ही दीपा का सब्जेक्ट या कथ्य है । अस्सी मोहल्ले में फ़िल्म की इसी स्क्रिप्ट के खिलाफ कुछ लोगों का आमरण अनशन चल रहा है। अनशनकारियों का कहना है कि तुलसी दास और रामचरित मानस के प्रति हिन्दू समाज की अनन्य श्रद्धा है। जिस घाट पर तुलसी दास ने मानस की रचना की उसी घाट पर विधवा आश्रम में अनाचार दिखाकर, आखिर दीपा मेहता क्या संदेश देना चाहती हैं ? फ़िल्म की कथा कहती है कि विधवा आश्रम चलाने के लिए वेश्यावृति कराई जाती है। उधर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ' छात्रसभा ' , ' आइसा ' और' एसएफआइ ' तथा ' कला संकाय ' के छात्रों से भी बातचीत होती है ।

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वे कहते हैं --वॉटर , ढेर सारी सच्ची खबरों का नाटकीय कथ्य ही तो है। इसमें सचमुच के समाज को इस तरह प्रस्तुत कर दिया गया है कि हम चकित रह जाएं। वाराणसी, वॉटर के समर्थन और विरोध के कुरुक्षेत्र में बदल गया है ।' .. लेकिन , धर्म के अलंबरदारों को अलसुबह गंगा स्नान के लिए जाते लोगों को, दीवारों पर कामुकता बढ़ाने वाली दवाइयों के विज्ञापन या ब्लू फिल्मों के पोस्टर का चिढाना नहीं दिखता ...।' - कहा दीपा मेहता ने ।

आपकी फ़िल्म क्रूर सच के ज्यादा करीब है, इसलिए कुछ लोगों को अखर गयी ?-- ' .. यहां सिनेमाहालों में ब्लू फिल्में भी दिखायी जाती हैं, उनके खिलाफ कभी कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । मैं बार - बार कहती हूं कि स्क्रिप्ट में काशी की गरिमा के खिलाफ कुछ भी नहीं है। स्क्रिप्ट उस पुरुष आत्मकेंद्रियता की ओर संकेत करती है, जो औरत को बस उपभोक्ता वस्तु मानता है। क्या आप ' अर्थ ' , ' ' फॉयर ' और ' वॉटर ' के बाद , तसलीमा नसरीन पर भी फ़िल्म बनाने वाली हैं ?--- नो कमेंट अस्सी ( वाराणसी )स्थित डॉ. के .एन . पांडेय के आवास पर इनडोर शूटिंग के लिए सजा सेट रखा रह गया। मुंडेर पर विधवा की सफेद साड़ियां सूख रही हैं और उसकी हैसियत , इस मुंडेर से उस मुंडेर तक फिसलती जा रही है । आंगन का चूल्हा ठंडा पड़ा है। तुलसी के चौरे पर गड़ी अगरबत्तियों का गुच्छा , धीरे - धीरे सुलग रहा है । नंदिता दास एक कोने खड़ी हैं। जांत में शबाना आजमी ने बमुश्किलन दो मुठ्ठी गेहूं भरा था। आंगन में उदासी लटकी हुई थी और हवा में जाने किस - किस आकांक्षा की नमी गाढ़ी हो रही थी । सुश्री दीपा ने कहा.... बस करिये .., और फिर आंख छलछला आयी थी । काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष पूरी दुनिया में ख्यात पर्यावरणविद् और संकट मोचन मन्दिर के महंत पंडित वीरभद्र मिश्र , के यह कह देने के बाद भी कि , दीपा मेहता द्वारा दिखायी गयी ' वॉटर ' की स्क्रिप्ट में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है , फ़िल्म को लेकर उठा विवाद अभी ठंडा नहीं हुआ है ।

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अबोध - आत्मवंचक आस्था और यथार्थजीवियों के बीच सीधा मुकाबला यानि फ़िल्म वॉटर को लेकर उठा विवाद अब ग्लोबल है । फ़िल्म की शूटिंग फिर रोक दी गयी है । कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ. वेळीग्रीन ने संस्कार भारती और विहिप के कार्यकर्ताओं द्वारा , वॉटर फ़िल्म का पूरा सेट उखाड़ कर , गंगा में फेंक देने का दृश्य , सीएनएन और बीबीसी से प्रसारित समाचार में टीवी पर देखा था । ' ... जब अमेरिका से आ रहा था , हालांकि यह नहीं जान पाया कि यह वही तुलसी घाट है ... ।' -- कहा उन्होंने।आस्ट्रेलिया की सू लेनाक्स कहती हैं --' ... दीपा हृदय को छू लेने वाली कथाकार हैं। फॉयर मैंने देखी थी। कुछ सवाल उठाती फ़िल्म है। इन सवालों की रोशनी में हमें खुद से भी थोड़ा मुखातिब हो लेना चाहिए ..।' पंडित वीरभद्र मिश्र , दुनिया के उन सात लोगों में से एक हैं जिन्हें टाइम मैगजीन द्वारा कराई गयी ओपिनियन पोल में 4वें नम्बर पर रखकर , ' हीरो ऑफ द प्लैनेट / फ्रेश वॉटर ' , की अत्यंत सम्मानजनक उपाधि देकर , ' मिलेनियम पर्सनालिटी ' चुना गया है ।

आपने वॉटर फ़िल्म की स्क्रिप्ट देखी ?

-हां , सुश्री दीपा मेहता ने शुक्रवार 4 फरवरी ,2000 को अपनी फिल्म वॉटर के विषय में हमसे और काशी विद्वत परिषद के प्रमुख प्रो. शिवजी उपाध्याय से भेंट की। इस फ़िल्म के वाराणसी में शूटिंग से नगर में विवाद के संबन्ध में चर्चा हुई। दीपा जी और उनके सहयोगियों ने हमें वॉटर फ़िल्म की स्क्रिप्ट दिखाई। पूरी स्क्रिप्ट को मनोयोग से पढ़ने पर हमें स्पष्ट हुआ कि फ़िल्म में भारतीय संस्कृति , गंगा जी और काशी के प्रति कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है।.. स्क्रिप्ट में दिखाया गया है कि विधवाएं भीख मांगती हैं । सद्य: विवाहिता कुछ युवा विधवाओं के पैर फिसल जाते हैं । वे देह की मांग नहीं अस्वीकार कर पातीं और ऐसे चंगुल में फंस जाती हैं , जहां उनके यौन शोषण का सिलसिला शुरू हो जाता है । ऐसा हो सकता है । होता रहा है। यह क्रूर सच है लेकिन आपत्ति जनक तो नहीं । मैंने दीपा जी के साथ 6 - 7 घण्टे बिताये थे । शबाना जी ने सिर घुटा लिया था , चाहता था कहना - तबतक टोपी पहन लें या गमछा डाल लें । शबाना आजमी और नंदिता दास , अगर फिल्मों को भी कला माध्यम माना जाए , मैं मानता हूं , तो , उसकी निधि हैं । जिन्हें विश्व सिनेमा की समझ होगी , शबाना , स्मिता और नंदिता , उसकी पसंद जरूर होंगी ।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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