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कविता : क्यों हर इक की कृपा मुझपर, बरस जाती है रह-रह कर...
क्यों हर इक की कृपा मुझपर,
बरस जाती है रह-रह कर !
मैं सोऊँ तो जगा देता,
मैं बैठूं तो उठा देता ।
खड़ा होता मैं पलभर, वो
बढ़ा देता कदम खरतर!
अहैतुक दे रहा कोई---
अजाने रूप धर-धर कर !!1!!
मुझे रुकने की आदत है,
मगर हमराह गतिमय है!
वही चैतन्य भर देता --
मैं होता चूर जब थककर ।
मैं पड़ रहता जो आलस में,
चला देता कोई आकर ।।2।।
वही हमराह-जो चिरकाल से
साथी हमारा है;
थके-हारे, दु:खी-वंचित,
सभी का हृदयतारा है!
सभी में व्यक्त है, सबमें
सुसंगत काल रमता है;
वही आनन्दमय! आनन्द-
जो भरता हमें पाकर ।।3।।
क्यों हर इक की कृपा मुझपर
बरस जाती है रह - रह कर !
अहैतुक दे रहा कोई---
अजाने रूप धर-धर कर !!
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