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पुस्तक समीक्षा: सभी उपनिषदों का निचोड़ है प्राणिधान

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 2:01 PM IST
पुस्तक समीक्षा: सभी उपनिषदों का निचोड़ है प्राणिधान
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पुस्तक का शीर्षक ‘प्रणिधान’ सामान्य पाठकों के लिए तो अत्यंत ही कठिन और बिलकुल ही नया जान पड़ेगा. बौद्धिक वर्ग के कुछ लोगों के लिए भी इसका अर्थ समझना कठिन होगा। ‘मानक हिन्दी कोश’ (हिन्दी साहित्य सम्मलेन , प्रयाग) के अनुसार इसका अर्थ है ‘पूरी भक्ति और श्रद्धा से की जाने वाली उपासना या मन को एकाग्र कर लगाया जाने वाला ध्यान’ जो पुस्तक की विषय-वस्तु को देखते हुए बहुत उपयुक्त है।

पुस्तक के प्रारम्भ में लेखक ने ‘मंतव्य’ शीर्षक से 7 पृष्ठों की भूमिका लिखी है जिसमें अत्यंत ही सरल भाषा में उपनिषदों के सम्बन्ध में बतलाया गया है। लेखक के शब्दों में ‘यह पुस्तक न तो उपनिषदों की व्याख्या है और न जीवन दर्शन।’ लेखक का पुस्तक लिखने का अभिप्राय मनुष्य के उस अंतर्द्वन्द्व का समाधान खोजना है जिससे वह यह निर्णय नहीं कर पाता कि जीवन का वासतविक दु:ख और आनंद क्या है और उसे पाने की जीवन शैली क्या है।

पुस्तक में ‘विज्ञान और अध्यात्म’, ‘कर्मफल का सिद्धांत’, ‘कर्म का स्वरूप’, ‘जीव, आत्मा और परमात्मा’, ‘आनंद और मोक्ष’ तथा ‘लोक जीवन की शैली’ शीर्षक छह अध्यायों में उपनिषदों का सार सहज-सरल भाषा में दिया गया है। प्रत्येक अध्याय के अंत में सन्दर्भ के माध्यम से उपनिषद का वह सूत्र मूल संस्कृत के साथ ही हिंदी में उसका अर्थ भी दे दिया गया है। इससे सामान्य पाठक को लेखक का अभिप्राय समझाने में आसानी होती है।

लेखक ने ईशावास्योपनिषद से लेकर श्वेताश्वतारोप्निषद तक 11 उपनिषदों का अर्थ और उनके मूलभूत सिद्धांतों को निष्पादित करने का कार्य किया है और इस पुस्तक को ‘सभी उपनिषदों का निचोड़’ कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। पुस्तक की विशेषता यह भी है कि यह किसी पंडित या धर्माचार्य द्वारा नहीं वरन एक इलेक्ट्रानिक इंजीनियर द्वारा लिखी गयी है।

लेखक ने जनसाधारण को उपनिषदों के सूत्रों से परिचय कराने का प्रयास किया है। आधुनिक जीवन शैली की आपाधापी में व्यस्त लोगों के लिए यह पुस्तक इसलिए भी उपयोगी है कि वे इससे जीवन की विसंगतियां, जीवन का लक्ष्य और उससे सम्बंधित प्रश्नों का उत्तर पा सकेंगे।

पुस्तक के आवरण पृष्ठ के चित्र का परिचय भी दे दिए जाने से पाठकों को पुस्तक का विषय समझाने में आसानी होगी। इसमें चित्रित दो पक्षी परमात्मा और आत्मा के द्योतक हैं। विपरीत दिशाओं में उनकी उड़ान परमात्मा से आत्मा के बिलगाव का प्रतीक है। याचक मुद्रा में उठे दोनों हाथ उनके मिलन के आकांक्षी हैं। आकांक्षा की पूर्ति ज्ञान से संभव है जिसका प्रतीक सूर्य की आभा (प्रकाश) है।

चूंकि लेखक का उद्देश्य सर्वसाधारण को ‘आनन्दमय और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने का उपनिषदीय दृष्टिकोण’ से परिचित कराना है अत: पुस्तक का मूल्य यथासंभव कम रखा जाता ताकि सामान्य जन इसे खरीद सकते, पर 92 पृष्ठ की पेपरबैक पुस्तक का मूल्य 220 रु. रखा जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।

महेंद्र राजा जैन

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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