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कविता: तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

raghvendra
Published on: 10 Aug 2018 11:00 AM GMT
कविता: तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
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कैसर-उल जाफरी

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे

तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो

कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे

वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब

ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे

न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में

वो मुँह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे

तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर

कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

तुम आँख मूँद के पी जाओ जिंदगी ‘कैसर’

कि एक घूँट में मुमकिन है बद-मज़ा न लगे

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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