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महाकुंभ: मिथिला, अंग और मगध की संगम स्थली सिमरिया 

raghvendra
Published on: 28 Oct 2017 2:56 PM IST
महाकुंभ: मिथिला, अंग और मगध की संगम स्थली सिमरिया 
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बिहार: प्रयाग में 2019 में कुंभ आयोजित होगा लेकिन एक महाकुंभ बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया धाम में चल रहा है। 17 अक्टूबर से शुरू हुआ ये महाकुंभ 16 नवंबर तक चलेगा। सिमरिया धाम में पूरे कार्तिक मास में बिहार व देश-विदेश के श्रद्वालु आते हैं और गंगा तट पर पर्ण कुटी बना कर रहते हैं। यहां होने वाले कल्पवास के बारे में कहा जाता है कि सीमा माता को जब भगवान राम मिथिला से विदा कर ले जा रहे थे तभी मिथिला के सीमा के अंत में गंगा घाट किनारे एक रात पर्ण कुटिर बना कर गुजारी थी।

जाते समय भगवान राम से सीता ने आशीर्वाद लिया था कि यहां जो एक माह तक पर्ण कुटिर बना कर गंगा सेवन करेगा उन्हें पुण्य और मोक्ष प्राप्त होगा। माना जाता है कि आदिकाल से ही सिमरिया तट पर कल्पवास होता आ रहा है। देश के तमाम अखाड़ों के महंत यहां महाकुंभ में हिस्सा ले रहे हैं। कहा जाता है कि देश में बारह कुंभ स्थली हैं जिनमें से चार जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है और बाकी के आठ कुंभ स्थल गौण हैं। वर्ष 2011 में भी यहां तुलार्क अर्धकुंभ का आयोजन किया गया था।

कुंभ की कथा

मान्यता है कि महर्षि कश्यप के साथ दक्ष की दो कन्याओं कद्रू व विनीता का विवाह हुआ था। दोनों के बीच ईष्र्या भाव रहता था। विनीता के दो पुत्र अरुण व गरुड़ थे। अरुण सूर्य भगवान के रथ सारथी थे। गरुड़ अपनी मां विनीता को दासत्व से मुक्त कराने का उपाय सौतेली मां कद्रू से पूछते हैं। कद्रू अपने पुत्र नागवृन्द को अमर करने के उद्देश्य से देवलोक में रखे अमृतघट लाने की मांग करती है।

गरुड़ अपनी मां को मुक्ति के लिये देवलोक जाते हैं और अमृतघट लेकर चल देते हैं। यह दृश्य देवराज की पत्नी शचि देख लेती है और अपने पति को गरुड़ से लड़ाई के लिये बाध्य करती है। युद्व के दौरान जहां-जहां अमृत घट रखा जाता है, वह स्थान कुंभस्थली के रूप में विख्यात होता है। यह लड़ाई बारह दिनों तक चलती है जो मानव के बारह वर्ष के बराबर है। इसलिये जिन-जिन जगहों पर अमृत घट रखा गया वहां बारह वर्ष के बाद कुंभ का योग होता है। इसी आधार पर राशि सूर्य - चन्द्र एवं गुरु का योग बनता, वही मुहूर्त कुंभ योग होता है।

सिमरिया कुंभ

सिमरिया में सूर्य, चंद्र, गुरुऔर योग का तुला संक्रांति का योग बनता है जिसे यहां कार्तिक में महाकुंभ का योग बताया जाता है। बालकाण्ड के अनुसार, जनकपुर जाने के दौरान भगवान राम से विश्वामित्र ने कहा था कि यहीं वह देश है जहां पूर्वकाल में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मंथन में सहायक सामग्रियों तथा ऋग्वेद मंडल 10, सूक्त 136 मंत्र 5 में वर्णित तथ्यों में ज्ञात होता है कि आदिकुंभ स्थली मिथिला की सीमातट पर स्थित सिमरियाधाम ही है।

मान्यता है कि राजा विदेह के समय से ही सिमरिया गंगा नदी तट पर कल्पवास मेले की परंपरा चली आ रही है। सिद्धाश्रम प्रमुख स्वामी चिदात्मन जी महाराज कहते हैं कि वैदिक पौराणिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक तथ्यों में आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम का साफ संकेत है। इस स्थल पर अनादिकाल से चली आ रही कल्पवास की लंबी परंपरा रही है। जनक वंश के अंतिम राजा कराल जनक तक यहां कल्पवास आयोजन होता रहा है।

इस महाकुंभ में तीन शाही स्नान तय हैं जो 17 अक्टूबर, 29 अक्टूबर और 08 नवंबर को होंगे। यहां रोजाना श्रद्वालुओं के लिये गंगा आरती का आयोजन होता है। कुंभ सेवा समिति की ओर से रोज शाम को भजन, रामलीला, रासलीला, शास्त्र मंथन का आयोजन किया जाता है। शास्त्र मंथन में 12 दिन अलग-अलग विषयों पर मंथन में देश के बड़े-बड़े विद्वानों के द्वारा भाग लेने की बात कही गई है।

महाकुंभ को भले ही सरकार व अखाड़ा परिषद ने मान्यता नहीं दी है लेकिन जिस तरीके से साधु संत व सरकार यहां व्यवस्था कर रही है, आने वाले समय में इसे भी मान्यता मिलना तय माना जा रहा है। राज्य सरकार ने इसकी महत्ता को देखते हुए इसे राजकीय मेला घोषित कर रखा है। महाकुंभ का समापन 16 नवंबर को होगा।

सिमरिया कुंभ का इतिहास बताता है कि राजा हर्षवर्धन 7वीं शताब्दी के आस-पास इसी रास्ते से ओडिशा तक जीत की यात्रा में निकले थे। पुलकेशिन द्वितीय से हार के बाद प्रयाग में 75 दिन का वास कर कुंभ की शुरुआत की थी, जिसके बाद हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और कालातंर में नासिक में कुंभ की शुरुआत की गई।

महाकुंभ केवल आध्यात्मिक अवचेतना का आधार मात्र ही नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय संरचना का ऐतिहासिक केन्द्र बिन्दु है। सिमरिया सिद्ध आश्रम के स्वामी चिदात्मनजी महाराज ने 2011 में इसे शास्त्रसम्मत कहते हुए अर्ध कुंभ की शुरुआत की थी।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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