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संक्रमण रोकने वाले जींस को ब्लॉक कर देता है कोरोना, नए अध्ययन में हुआ खुलासा
दुनिया भर में कोरोना संकट गहराने के बाद वैज्ञानिक इस वायरस के हमले के संबंध में अध्ययन करने में जुटे हुए हैं। इस बीच अमेरिका में किए गए एक शोध बताया गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने वाले जींस को ब्लॉक कर रहा है।
नई दिल्ली: दुनिया भर में कोरोना संकट गहराने के बाद वैज्ञानिक इस वायरस के हमले के संबंध में अध्ययन करने में जुटे हुए हैं। इस बीच अमेरिका में किए गए एक शोध बताया गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने वाले जींस को ब्लॉक कर रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस उस जींस पर हावी हो रहा है जो शरीर में वायरस की संख्या बढ़ाने से रोकते हैं और इम्यून सिस्टम को अलर्ट करते हैं।
जींस को ब्लॉक करने के बाद तेजी से संक्रमण
न्यूयॉर्क के आइकॉन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने यह अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि संक्रमण से बचाने वाले जींस को ब्लॉक करने के बाद यह वायरस तेजी से इंसान के शरीर में अपनी संख्या बढ़ाता है और फिर शरीर के विभिन्न अंगों तक इसकी पहुंच हो जाती है। इस अध्ययन में बताया गया है कि इंसान के शरीर में दो जीन का एक समूह होता है। एक जीन शरीर में वायरस की संख्या बढ़ाने से रोकता है जबकि दूसरा जीन इम्यून सिस्टम को अलर्ट करके वायरस मारने का संदेश देता है। इंसानी शरीर में कोरोना वायरस का संक्रमण होने के बाद यह वायरस इन दोनों जीन को जकड़ लेता है। शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच जाने के बाद वायरस का हमला और तेज हो जाता है।
फेफड़ों में पहुंचकर बढ़ाता है संख्या
सेल जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि संक्रमण का शिकार होने वाले लोगों में कोरोना फेफड़ों में पहुंचकर अपनी संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है। फेफड़ों में पहुंचने के बाद शरीर में वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है और इम्यून सिस्टम की अलग-अलग कोशिकाएं अपना काम करने में नाकाम साबित होती हैं और फिर यह वायरस बेकाबू हो जाता है।
इम्यून सिस्टम ही हो जाता है खिलाफ
शोधकर्ता और वायरस विशेषज्ञ डॉक्टर बेंजामिन टेनोवर का कहना है कि इंसानी शरीर में वायरस का संक्रमण बढ़ने के बाद कई बार इम्यून सिस्टम शरीर के खिलाफ काम करने लगता है। इसे साइटोकाइनिन स्टॉर्म कहते हैं। उनका कहना है कि कोरोना वायरस इंसानी शरीर में जैसा असर दिखा रहा है वैसा मैंने पिछले 20 साल के दौरान नहीं देखा।
दवाओं से रोका जा सकता है संक्रमण
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस वायरस के हमले के कारण कई मरीजों की स्थिति नाजुक हो जा रही है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की नौबत आ जा रही है। वेंटिलेटर पर पहुंचे मरीजों को ऐसे इलाज की जरूरत है जो वायरस को कंट्रोल करें और शरीर के विभिन्न अंगों तक उसका संक्रमण ना फैलने दें। ऐसे मरीजों को इंटरल्यूकिन-6 और इंटरल्यूकिन-1 इनहिबिटर जैसे ड्रग दिए जा सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये दवाएं इम्यून सिस्टम को सुधारने का काम करेंगई और इनके जरिए सूजन और संक्रमण को रोका जा सकता है।