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उन्नाव में निर्णायक भूमिका में होंगे दलित, सवर्ण और मुस्लिम
विभा त्रिपाठी
उन्नाव: उन्नाव लोकसभा सीट पर सभी राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। भाजपा ने एक बार फिर साक्षी महाराज पर भरोसा जताया है जबकि कांग्रेस ने फिर अनु टंडन को टिकट देकर मैदान में उतारा है। सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के कोटे में गई है और सपा ने इस सीट पर पूजा पाल को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। इस लोकसभा सीट पर इस बार दलित, सवर्ण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होंगे। 2177082 मतदाताओं वाले इस लोकसभा क्षेत्र में 13.63 लाख वोट दलित, सवर्ण और अल्पसंख्यक जाति से हैं और यही मतदाता इस सीट पर विजेता का फैसला करेंगे।
वैसे पिछड़ी जाति के मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। इस लोकसभा सीट पर पिछड़ी जाति की हिस्सेदारी 8.14 लाख है मगर भाजपा और सपा दोनों प्रमुख दलों ने पिछड़ी जाति के उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं। इस कारण इस वोट बैंक में बंटवारा होना तय माना जा रहा है। इस सीट पर हुए पिछले चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो इस सीट पर नौ बार कांग्रेस और चार बार भाजपा का कब्जा रहा। उपचुनाव को लेकर अब तक हुए 18 लोकसभा चुनाव में 12 बार सवर्ण, चार बार अल्पसंख्यक और दो बार पिछड़ी जाति के प्रत्याशी को सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ। पिछले तीन चुनावों में इस सीट पर 2004 और 2009 में सवर्ण तथा 2014 में पिछड़ी जाति के प्रत्याशी साक्षी महाराज की जीत हुई थी। लोकसभा चुनाव में जाति के आधार पर बंटते वोटों की गणित से राजनीति किसी भी ओर करवट बदल सकती है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल जातीय गणित साधने में जुटे हुए हैं।
मतदाताओं को लुभाने का दौर
प्रचार अभियान तेज होने के साथ ही पार्टी के परंपरागत वोटरों के अलावा अन्य बिरादरी के मतदाताओं को लुभाने का दौर चल रहा है। बड़े सियासी दल अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ऐसी जाति के मतदाताओं को अपनी ओर करने में लगे हैं जो छोटी संख्या में मौजूद हैं ताकि वह विरोध की भरपाई कर सकें। मुस्लिम मतदाताओं पर भी लोग नजर गड़ाए हैं। भाजपा को इस वर्ग के मतदाताओं से ज्यादा उम्मीद नहीं है। यही कारण है कि पार्टी मुस्लिम मतदाताओं की भरपाई दलित और पिछड़ी जाति के मतदाताओं से करने की फिराक में हैं। सपा और कांग्रेस दोनों के मजबूत उम्मीदवारों के चलते मुस्लिम मतदाताओं का रुख अभी तक साफ नहीं हो सका है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुस्लिम मतों में बंटवारा होना तय है। यदि यह बंटवारा अच्छी तरह हुआ तो निश्चित रूप से इसका फायदा भाजपा को मिलेगा।
मतदाताओं को लुभाने का दौर
1999 के लोकसभा चुनाव में पहली बार यहां से पिछड़ी जाति का सांसद चुना गया था। 2004 और 2009 के चुनाव में अगड़ी जाति का सांसद बना। 2004 के चुनाव में बृजेश पाठक और 2009 में अनु टंडन यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं।
2014 में एक बार फिर यहां की जनता ने पिछड़ी जाति के प्रत्याशी साक्षी महाराज को जिताया। पिछड़़ी जाति के मतदाताओं की संख्या इस सीट पर सबसे अधिक है। ऐसे में दो बड़े सियासी दलों सपा और भाजपा ने अबकी पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी पर दांव लगाया है। कांग्रेस ने अगड़ी जाति की अनु टंडन को मैदान में उतारा है। पिछड़ी जाति के मतदाता बंटे तो अबकी दलित, सवर्ण और मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका अहम होगी और यही मतदाता चुनाव में हार-जीत का फैसला करेंगे।