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नन्हीं सी जान है और खतरे हजार हैं: 24 घंटे रिस्क जोन में है आपका बच्चा

tiwarishalini
Published on: 15 Sept 2017 5:38 PM IST
नन्हीं सी जान है और खतरे हजार हैं: 24 घंटे रिस्क जोन में है आपका बच्चा
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सुधांशु सक्सेना की स्पेशल रिपोर्ट

लखनऊ: हमारा मकसद आपको डराना नहीं, लेकिन सावधान करना जरूर है क्योंकि नन्ही सी जान है और खतरे हजार हैं। घर से लेकर स्कूल तक, बेड से लेकर पार्क तक हर जगह बच्चों को खतरा ही खतरा है। पिछले दो महीनों से जो खबरें आ रही हैं, वे चेतावनी हैं कि अब सावधान हो जाइए। बच्चों के लिए खतरे चारों ओर हैं। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक हर समय खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। यहां तक कि सोने के बाद भी खतरे बच्चों का पीछा कर रहे हैं। खतरे की शुरुआत सुबह उस समय ही हो जाती जब बच्चा स्कूल जाता है।

बच्चे बस के ड्राइवर व कंडक्टर से जल्दी घुल-मिल जाते हैं। पहला खतरा ड्राइवर है कि वो गाड़ी तेज या खतरनाक ना चला रहा हो। स्कूल पहुंचते ही वे शिक्षक खतरा हैं जो बच्चों को निर्दयता की हद तक पीट सकते हैं। फिर बच्चों के साथियों में कोई बच्चा हिंसक प्रवृत्ति या किसी मनोरोग के चपेट में तो नहीं है। फिर यहां सब सही है तो चिंता यह कि कहीं किसी वहशी की नजर तो आप के बच्चे पर नहीं है।

इस खबर को भी देखें: बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में यूपी का पांचवा स्थान

गुरुग्राम के रायन स्कूल की घटना हम सबके सामने हैं। फिर स्कूल से छूटा बच्चा सीधे घर आने के बजाय किसी सिगरेट या बीयर की दुकान पर तो नहीं जा रहा है। बच्चा सुरक्षित आ भी गया तो ब्लू व्हेल जैसे जानलेवा खेल नौनिहालों के लिए एक नई मुसीबत बनकर उभरे हैं। पूरी दुनिया में इस गेम के चलते बच्चों ने आत्महत्या की है। लखनऊ के खुर्रमनगर इलाके के एक निजी स्कूल के बच्चों के हाथों की जांच से पता चला कि 40 बच्चे इस गेम की गिरफ्त में हैं। कानपुर में इस जानलेवा गेम से बचे बच्चे ने बताया कि उसके कई और बच्चे इस गेम की गिरफ्त में हैं। सबकुछ ठीक रहा तो आपके आसपास परिचित या रिश्तेदार कहीं बच्चे का शारीरिक शोषण न कर लें।

फास्टफूड के नाम पर कहीं आपका बच्चा इन्हाइजेनिक खाना तो नहीं खा रहा और सबकुछ ठीक रहा तो कहीं कोई बीमारी बच्चे को घेरने को तैयारी तो नहीं कर रही। डेंगू, स्वाइन फ्लू आदि बीमारियों तमाम इलाकों को अपनी चपेट में ले रखा है। याद रखिए कि आपके अमीर या गरीब होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता। अमीर होंगे तो डेंगू की ज्यादा संभावना और गरीब होंगे तो मलेरिया की। खतरे केवल रायन जैसे महंगे स्कूलों में नहीं है, सरकारी स्कूलों में भी हैं। गरीबों के बच्चों पर तो पैदा होते ही संकट है। बच्चे ऑक्सीजन के अभाव में भी मर रहे हैं। इसलिए हम अपने पाठकों को सिर्फ बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से सतर्क करना चाहते हैं क्योंकि सतर्कता ही हमारे नौनिहालों का सुरक्षा कवच है।

ब्लू व्हेल गेम बना बच्चों की जान का दुश्मन

घर से लेकर स्कूल तक नौनिहालों के लिए हर कदम पर खतरा है। ताजा खतरा ब्लू व्हेल के नाम से तेजी से वायरल हुए ऑनलाइन गेम का है। बच्चों की साइकोलॉजी से खेलने वाले इस जानलेवा खेल ने अभी तक विश्व के अलग अलग देशों के करीब 200 से अधिक बच्चों की सांसें छीन ली हैं। ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क मतलब मौत को गले लगाना। यही इस गेम की चपेट में आने वाले नौनिहालों का लक्ष्य बनता जा रहा है।

राजधानी में अब तक इससे दो मौतें हो चुकी हैं। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्लू व्हेल गेम अब कई और नामों से इंटरनेट पर अपनी जगह बना रहा है। इस गेम पर लगी पाबंदियों के बाद अब इसे कई और नाम से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। यूनीसेफ की एडवाइजरी के मुताबिक इस गेम को ‘ए साइलेंट हाउस’, ‘ए सी आफ व्हेल्स’ और ‘वेक मी अप एट 4:20 ए एम’ नामों से प्रचारित किया जा रहा है।

ब्लू व्हेल से राजधानी की पहली मौत

राजधानी में ब्लू व्हेल गेम से मौत का पहला वाकया लखनऊ के इंदिरानगर क्षेत्र में सामने आया। बीती 7 सितंबर को अपने मामा के घर रहकर पास के ही निर्मला कांवेंट स्कूल में कक्षा 8 में पढऩे वाले आदित्य वर्धन ने ब्लू व्हेल गेम खेलते हुए फांसी लगाकर मौत को गले लगा लिया। आदित्य के मामा आर.के.सिंह ने बताया कि कि आदित्य एक दिन पहले तक एकदम नार्मल लग रहा था। हमलोगों को कोई शक ही नहीं हुआ कि वह इस जानलेवा गेम के चंगुल में है।

बेसिक हेल्थ वर्कर की सांसें ब्लू व्हेल ने छीनी

राजधानी में एक सप्ताह के अंदर ही ब्लू व्हेल का एक और जानलेवा वाकया सामने आया है। इसमें 12 सितंबर को ही राजधानी के कृष्णानगर में बेसिक हेल्थ वर्कर मनीष कुरील के 15 वर्षीय बेटे ने इस गेम के चलते जान दे दी। इससे अलर्ट हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जब खुर्रम नगर के स्कूल में बच्चों के हाथों की जांच की तो ज्यादातर पर कट के निशान मिले। इसके बाद उनके अभिभावकों को बुलाकर काउंसिलिग की गई, लेकिन बड़ी बात यह है कि खतरा अभी तक पूरी तरह टला नहीं है। ये दो केस तो महज बानगी भर हैं और ये इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अभिभावकों को काफी सतर्क होने की जरूरत है।

टीचर ने दो मिनट में बच्चे को जड़े 40 थप्पड़

राजधानी के वृंदावन कालोनी के सेक्टर एक में स्थित सेंटर जॉन विएनी प्राइवेट स्कूल है। यहां उतरेठिया के ही गुप्ता बुक डिपो के मालिक परविंद गुप्ता की बेटी नित्या और बेटा रितेश पढ़ते हैं। परविंद ने बताया कि उनकी बेटी नित्या यूकेजी और बेटा कक्षा 3 में पढ़ते हैं। बीते 29 अगस्त को उनका बेटा रितेश स्कूल गया था और सबसे पहली सीट पर बैठा था। स्कूल में महिला टीचर रितिका बच्चों को रोल नंबर बताकर कुछ बताने लगीं। जब रितिका ने उनके बेटे रितेश का रोल नंबर पुकारा तो वह खड़ा नहीं हुआ। बस इतनी सी बात पर टीचर भडक़ गईं और बच्चे को बेरहमी से पीटने लगीं। उन्होंने रितेश पर थप्पड़ों की बारिश कर दी और जब बच्चा चक्कर खाकर जमीन पर गिर गया तो उसका कॉलर पकडक़र ब्लैक बोर्ड में सिर लड़ा दिया।

इस दौरान मैडम के बड़े नाखूनों से बच्चे के गाल और गर्दन पर खरोंचे भी आईं। उसका पूरा मुंह सूज गया। बच्चे पर अपना गुस्सा उतारने के बाद मैडम क्लास से चली गईं। पूरी घटना सीसीटीवी में कैद हो गई। जब बच्चा घर आया तो उसकी मां अर्चना ने निशान देखकर रितेश से पूछताछ की तो उसने पूरी घटना बताई। इस पर परिजनों ने स्कूल पहुंचकर फादर रोनाल्ड रोड्रीजफ से शिकायत की। फादर रोनाल्ड ने बताया कि इस घटना की जानकारी होने पर टीचर को निलंबित कर दिया गया है।

अध्यापक ने तोड़ डाला कक्षा 2 के बच्चे का हाथ

राजधानी के मेाहनलालगंज के ग्राम गदियाना के रहने वाले संतराम ने बताया कि उनका बेटा अजय गांव के ही प्राथमिक स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ता है। अजय जब बीती 6 सितंबर को अपने सरकारी स्कूल गया तो वहंा पर सहायक अध्यापक अखिलेश कुमार ने अजय से एक सवाल पूछा। अजय इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। इससे नाराज होकर अध्यापक अखिलेश कुमार ने अजय को उठाकर पटकने के साथ ही लात-घूंसों की बारिश कर दी। इसके बाद उसी स्कूल की हेड मास्टर सुमीरा ने भी बच्चे को मारपीट कर स्कूल से भगा दिया। इससे अजय का दाहिना हाथ टूट गया।

स्कूली कर्मचारियों ने सात महीने तक किया बच्ची का यौन शोषण

राजधानी के वृंदावन कालोनी स्थित एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल की प्री प्राइमरी में पढऩे वाली पांच साल की बच्ची का स्कूल के कर्मचारियों ने सात महीने तक यौन शोषण किया। हैवानियत की हद इस कदर थी कि बच्ची को स्कूल के कर्मचारी डरा धमकाकर चुप कराते रहे और सात महीने तक वहशियाना को अंजाम देते रहे। इस बात का खुलासा बच्ची को संक्रमण होने के बाद हुआ। अभिभावको के लंबे संघर्ष के बाद पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की।

हुक्का बार में मिले स्कूली बच्चे, ओवरलोडिंग से चोटिल हुए नौनिहाल

खाद्य सुरक्षा की अधिकारी शशि पांडे ने बताया कि उन्होंने राजधानी के कई हुक्का बारों पर छापा मारा। बिना अनुमति चल रहे इन हुक्का बार में मौके पर कई स्कूली बच्चे मिले। जांच में पाया गया कि फ्लेवर्ड हुक्के के नाम पर नई पीढ़ी को नशे का आदी बनाने की तैयारी भी हुक्का बार में चल रही थी। इन्हें तत्काल सीज किया गया। हमारी कार्रवाई जारी रहेगी। सिटी मांटेसरी स्कूल की महानगर शाखा के एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्कूल से चंद कदमों की दूरी पर एक शराब की दुकान है जहां अक्सर शराबियों का जमावड़ा लगा रहता है। इसके लिए प्रशासन और पुलिस से कई बार कार्रवाई के लिए कहा गया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। ऐसे में स्कूली बच्चों पर इन शराबियों से किसी अप्रिय घटना की आशंका बनी रहती है।

एआरटीओ अंकिता शुक्ला ने बताया कि राजधानी में आए दिन स्कूली वाहनों की ओवरलोडिंग के चलते कई घटनाएं सामने आती हैं। इस मामले में हम प्रभावी कार्रवाई कर रहे हैं। हम समय-समय पर स्कूल के खटारा वाहनों से लेकर ओवरलोडेड वैनों पर कार्रवाई करते रहते हैं। इससे कुछ हद तक बच्चों की स्कूली वाहनों में ओवरलोडिंग पर लगाम तो लगती है,लेकिन स्कूल प्रशासन की शह पर यह खेल फिर शुरू हो जाता है, लेकिन हम अपनी कार्रवाई करते रहेंगे।

यह छह केस महज बानगी भर हैं।

सच तो यह है कि कभी ब्लू व्हेल तो कभी गुरुओं के जरिये नौनिहालों का शोषण घर से लेकर स्कूल तक बदस्तूर जारी है। सिर्फ यहीं पर मामला खत्म नहीं होता बल्कि कई रिश्तों की मर्यादा तार- तार करके आपके नौनिहाल को कोई भी परिचित, पड़ोसी, स्कूल के रिक्शेवाले से लेकर वैन वाले तक कोई भी शोषण या क्रूरता का शिकार बना सकता है। इस सबसे अपने बच्चे को बचाने के लिए केवल सतर्कता ही इसका उपाय है।

सरकार बनाएगी नियमावली, होगा वेरीफिकेशन

उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम डॉ.दिनेश शर्मा कहना है कि बच्चों को लेकर हम एक नियमावली बनाने जा रहे हैं। इसमें स्कूल में पढऩे आए बच्चों की सुरक्षा के नियम होंगे, जिसे सभी सरकारी और निजी स्कूल को मानना होगा। इसमें स्कूल के प्रत्येक कर्मचारी के पुलिस वेरीफिकेशन से लेकर स्कूल ले जाने वाले रिक्शे वाले, वैन वालों तक का वेरीफिकेशन कराया जाएगा। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि स्कूल में बच्चों की सूरक्षा के समुचित साधन हों। इसका भौतिक सत्यापन समय-समय पर संबंधित शिक्षा अधिकारियों से कराया जाएगा। इसके साथ ही अधिकारियों को गुड टच और बैड टच के लिए बच्चों को जागरूक करने का काम भी मानीटर करना होगा।

बच्चों की सुरक्षा के लिए एडवाइजरी जारी

लखनऊ के डीआईओएस डॉ.मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि हमने बच्चों की सुरक्षा को लेकर एडवाइजरी जारी की है। सबसे पहले ब्लू व्हेल से निपटने के लिए बच्चों का स्कूल में मोबाइल लाने पर रोक लगा दी गई है। ये निर्देश तत्काल प्रभाव से जारी कर दिए गए हैं। कई बार बच्चे सहपाठियों को देखकर भी इस खेल की चपेट में आ जाते हैं, जिसके गंभीर परिणाम होते हैं। जहां तक शोषण और सुरक्षा का सवाल है, उसके लिए हमने हर स्कूल में बच्चों को जागरूक करने के निर्देश दिए हैं।

हर स्कूल में हर उम्र के बच्चों को उसकी समझ के हिसाब से गुड और बैड टच की अवेयरनेस क्रिएट करने को कहा गया है। इसके अलावा जब हमारे पास किसी टीचर द्वारा बच्चों को बुरी तरह पीटने की जानकारी आती है तो हम कड़ी कार्रवाई करते हैं और अध्यापक को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हैं।

पैरेंटस एसोसिएशन के संरक्षक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि स्कूल और सरकार दोनों ही घटना होने के बाद जागते हैं। हम अपने स्तर पर अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखने, मोबाइल में चाइल्ड लॉक लगाने से लेकर समय-समय पर हेल्दी काउंसिलिंग करने की सलाह दे रहे हैं।

अपराध करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो

आवाम मूवमेंट की संरक्षक रफत फातिमा ने बताया कि स्कूलों को बच्चों के दूसरे घर का द$र्जा दिया गया है। इसके चलते हम पद यात्रा और अन्य जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए पैरेंटस को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। इसके साथ ही सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि इन अपराधों को रोकने के लिए सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।

पैरेंटस नहीं दे पा रहे बच्चों को पर्याप्त समय

मनोवैज्ञानिक डॉ. एच.के.अग्रवाल ने बताया कि पहले माता-पिता बच्चों को समय देते थे। उनसे सीधा संवाद स्थापित करते थे। टेक्नॉलॉजी के अलावा बच्चे मोहल्ले में दूसरे बच्चों के साथ खेलते थे। इसके बाद घर आकर माता-पिता के साथ समय बिताते थे। आजकल व्हाट्सएप और फेसबुक के जमाने में मां-बाप बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे रहे हैं। इसलिए बच्चे एकांत में मोबाइल पर गेम खेलने से लेकर अपने परिचितों के शोषण के शिकार हो रहे हैं।

इसलिए मां बाप को अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए उन्हें समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देने के साथ ही रोज दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए ताकि बच्चे अपनी समस्या, उनके साथ हो रही गतिविधियों की जानकारी सही समय पर मां बाप को दे सकें। इसके अलावा अगर आपका बच्चा अकेले में मोबाइल पर या यूं ही समय बिताना ज्यादा पसंद कर रहा है या अचानक उसके खानपान में बदलाव दिखे या किसी परिचित के आने पर घर में कहीं छिप जाए तो आप तुरंत सावधान हो जाएं और उससे बात करें। आपका कम्युनिकेशन गैप आपके नौनिहाल के लिए खतरनाक हो सकता है।

बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखें

राजधानी में ब्लू व्हेल का शिकार हुए आदित्य के मामा आर.के. सिंह ने बताया कि आदित्य ब्लू व्हेल के शिकंजे में था। यह बात उन्हें उसके दोस्तों से पता चली। इसके अलावा आदित्य मोबाइल पर गेम में ज्यादा व्यस्त रहता था। हमें लगा कि सबकुछ सामान्य है,लेकिन वह अंदर ही अंदर इस जानलेवा खेल ब्लू व्हेल के चंगुल में फंस गया है, इसका पता ही नहीं चला। हम दूसरे अभिभावकों को यही राय देना चाहते हैं कि आप अपने बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखें और अकेले में आपका बच्चा क्या कर रहा है, इसकी जानकारी जरूर रखें। तभी आप अपने बच्चे को सुरक्षित रख पाएंगे।

साइबर एक्सपर्ट बोले-बच्चों की मानिटरिंग जरूरी

साइबर एक्सपर्ट अनुज अग्रवाल ने बताया कि यह टेक्नॉलॉजी का जमाना है। स्मार्ट क्लासेज के इस दौर में हम बच्चों को टेक्नॉलॉजी से दूर नहीं रख सकते। ऐसे में केवल अपने बच्चों की टेक मॉनिटरिंग करने की जरुरत है। हमें अपने बच्चों को मोबाइल और कंप्यूटर की दुनिया में जाने देने के साथ-साथ उसकी पॉजिटिविटी पर फोकस करना चाहिए। उन्हें टेक फ्रेंडली होने दें, लेकिन साथ ही उनकी सर्च हिस्ट्री पर भी नजर रखें। आप बच्चे को मोबाइल अनलॉक करके एक लिमिटेड समय के लिए ही दें और उससे उस समय में की गई गतिविधि की एक दोस्त बनकर बातचीत के माध्यम से जानने की कोशिश करें। उसे अगर गेम ही खेलना है तो पॉजिटिव गेम्स की ओर उसका ध्यान ले जाएं।



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tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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