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कोविड-19 से मौतेंः असली गिनती कभी पता नहीं चलने वाली

कोविड-19 से असल में कितनी मौतें हुईं हैं इसकी निश्चित संख्या कभी पता नहीं चल पाएगी। 2009 में एच1एन1 महामारी से मरने वालों की संख्या 2011 में प्रकाशित की गई थी। कोविड-19 का दायरा बहुत व्यापक है सो गिनती की सच्चाई शायद कभी न पता चल सके।

राम केवी
Published on: 25 May 2020 11:20 AM GMT
कोविड-19 से मौतेंः असली गिनती कभी पता नहीं चलने वाली
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नई दिल्ली। कोविड-19 से होने वाली मौतों की गिनती कौन कर रहा है, इस सवाल का निश्चित जवाब नहीं है। अमेरिका में इस सवाल को लेकर एक्स्पर्ट्स में बहस छिड़ी हुई है। वजह ये है कि बीमारों और मौतों के बारे में गाइडलाइंस लगातार बदलती जा रहीं हैं।

ऐसे में जो लोग बीमार पड़े लेकिन न वो अस्पताल गए और न उनकी कोरोना टेस्टिंग हुई और उनकी घर पर ही मौत हो गई तो ऐसे में मौत का कारण कोरोना था कि नहीं, ये पता ही नहीं चल पा रहा है। ऐसे में डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह आमतौर पर हार्ट फेलियर लिख दी जाती है। यानी ऐसे किसी भी व्यक्ति की मौत जिसकी कोरोना टेस्टिंग नहीं हुई थी वह कोरोना के आंकड़े में नहीं लिखी जा रही है। असलियत ये है कि विश्व भर में ऐसी मौतें बड़ी संख्या में हैं।

अब मौतों पर बढ़ा बवाल

अमेरिका में कोरोना से मौतों के आंकड़ों पर काफी विरोधाभास है। मिसाल के तौर पर, फ्लॉरिडा के मेडिकल एक्सामिनर्स कमीशन ने राज्य के अधिकारियों पर मौतों की संख्या दबाने का आरोप लगाया है। पेंसिल्वानिया में मौतों की संख्या कभी ज्यादा तो कभी कम दिखाई जाने के बाद स्टेट सीनेट ने जांच के आदेश दे दिये। आलम ये है कि प्रेसिडेंट ट्रम्प तक ने अमेरिका में हुई मौतों के आंकड़ों पर संदेह जताते हुए कहा है कि ये आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर दिखाये जा रहे हैं।

दरअसल जब तक हर मरीज की कोरोना जांच न हो जाए या हर मौत के बाद शव की जांच न हो जाए तब तक पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि बीमारी या मौत की क्या वजह थी।

अमेरिका में मृत्यु प्रमाणपत्र डाक्टर तथा पंजीयन अधिकारियों द्वारा जारी किया जाता है। पंजीयन अधिकारी नगर निगम जैसी व्यवस्था में काम करते हैं। इस व्यवस्था में मौत की जांच का सवाल नहीं उठता है जब तक कि किसी तरह का संदेह न हो।

कोविड-19 से असल में कितनी मौतें हुईं हैं इसकी निश्चित संख्या कभी पता नहीं चल पाएगी। 2009 में एच1एन1 महामारी से मरने वालों की संख्या 2011 में प्रकाशित की गई थी। कोविड-19 का दायरा बहुत व्यापक है सो गिनती की सच्चाई शायद कभी न पता चल सके।

लंदन स्कूल ऑफ इक्नोमिक्स के डॉ अल्बर्टो मारिनो का कहना है कि बहुत से लोग जिनको मामूली फ्लू होता है वे सभी लोग डाक्टर के पास नहीं जाते। ऐसे लोग यदि किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हैं या बूढ़े हैं तो उनकी मौत में फ्लू की कितनी बड़ी भूमिका थी ये पता नहीं चल पाता। यही बात कोविड-19 पर लागू होती है।

नीलमणिलाल की रिपोर्ट

राम केवी

राम केवी

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