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चुनाव में चढ़ा अपराधों का ग्राफ, सवाल पूछ रहे राजग में शामिल दल
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के साथ पुलिस-प्रशासन की सख्ती दिखनी चाहिए। एक तरफ अपराधियों में पुलिसिया मुस्तैदी का डर होना चाहिए तो दूसरी तरफ प्रशासनिक सिस्टम के दुरुस्त हालात। मगर, दोनों में से कुछ नहीं दिख रहा है। पुलिस का डर नहीं होने के कारण बिहार में अप्रैल बेहद खराब गुजरा। पुलिसिया भाषा में विवाद आदि के कारण ‘सामान्य’ हत्याएं तो हर जिले में हुई ही, हाई प्रोफाइल मर्डर और सरकार के खिलाफ माहौल बनाने वाली घटनाएं भी लगातार सामने आईं। पटना में 15 साल की एक लडक़ी की अपार्टमेंट में हत्या हुई तो जिले की मांग कर रहे पटना के बाढ़ में नेशनल खिलाड़ी को भून डाला गया।
आंखों में सरिया डालकर नालंदा में पत्रकार पुत्र की हत्या की गई तो गैंगरेप नहीं कर पाने के गुस्से में एसिड से नहलाकर भागलपुर में अपराधियों ने किशोरी का जीवन बर्बाद कर दिया। पुलिसिया डर नहीं होने के कारण यह घटनाएं बिहार के डीजीपी को परेशान करती रहीं तो भागलपुर और गया में प्रशासनिक तंत्र के जागे नहीं रहने के कारण मुख्य सचिव भी घिरे। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में लगातार दावे कर रही बिहार सरकार की एसडीआरएफ भागलपुर के सुल्तानगंज और पटना के दानापुर में गंगा में डूब रहे चार युवाओं को बचाने तक समय पर नहीं पहुंच सकी।
18 अप्रैल को बिहार के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, बांका और भागलपुर में मतदान कराने की जब तैयारी चल रही थी, उसी समय पटना जिले के बाढ़ में 17 अप्रैल को नेशनल रग्बी प्लेयर जैकी कुमार चंद्रवंशी को उसके स्कूल के सामने भून डाला गया। नालंदा में दैनिक अखबार के जिला प्रभारी पत्रकार के 15 वर्षीय बेटे चुन्नू कुमार की आंखों में सरिया डालकर हुई हत्या के दो दिनों के बाद ही हुई इस घटना ने डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को जवाब देने लायक भी नहीं छोड़ा। पत्रकारों और उनके परिजनों की सुरक्षा को लेकर अप्रैल में ही डीजीपी ने सभी जिले के पुलिस कप्तानों को अलग से चिट्ठी भेजी थी, इसलिए पत्रकार पुत्र की हत्या के बाद वह खुद परेशान थे।
ऐसे में बाढ़ में उभरते खिलाड़ी की सरेराह दिनदहाड़े हत्या से सरकार का परेशान होना लाजिमी था।
इधर चुनाव वाले जिलों में पुलिस-प्रशासन की मुस्तैदी की बात भी बेकार साबित हुई, जब भागलपुर में 18 अप्रैल को मतदान की तैयारी कराने के दौरान 15 अप्रैल को एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बिहार सरकार के सिस्टम की बलि चढ़ गया। साहिबगंज घाट पर जब आपदा प्रबंधन का एसडीआरएफ यूनिट सामने नहीं दिखा तो गंगा में डूबते दोस्त को बचाने के लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियर सोमेन उर्फ सोमू खुद कूद गया। दोस्त को बचाने में कामयाब रहा, लेकिन अपनी जिंदगी नहीं बचा सका। प्रशासनिक सिस्टम भागलपुर में भी इतना मुस्तैद था कि आपदा प्रबंधन की टीम को 10 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज घाट तक पहुंचने में पांच घंटे लग गए।
किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, बांका और भागलपुर में मतदान के बाद पुलिस बल 23 अप्रैल को होने वाले मतदान के लिए झंझारपुर, सुपौल, अररिया, खगडिय़ा, मधेपुरा की ओर बढ़ा तो भागलपुर जैसे बड़े जिले में पुलिस का डर नहीं नजर आया। तभी तो भागलपुर शहर के अलीगंज स्थित गंगा विहार कॉलोनी में घर के अंदर घुसकर गैंगरेप का प्रयास किया गया और विफल होने पर लडक़ी की मां के सामने उसे एसिड से नहला दिया गया। इस घटना के आरोपियों को नरक तक पहुंचाने का दावा करने वाले डीजीपी के सामने इसके बाद भी लगातार बड़ी घटनाएं सामने आती रहीं। पटना के मंदिरी में एक अपार्टमेंट के अंदर किशोरी की हत्या ने सरकार और सिस्टम को जवाब देने लायक नहीं छोड़ा। पुलिसिया तंत्र की नाकामी के साथ ही पटना में ही प्रशासनिक विफलता भी सामने आई। आपदा प्रबंधन टीम की नाकामी के कारण दानापुर के पानापुर घाट पर गंगा में तीन दोस्त डूब गए।
घटनाओं के कारण अंदर ही अंदर परेशानी में राजग
भागलपुर के तेजाब कांड, बाढ़ के नेशनल प्लेयर हत्याकांड, पटना के अपार्टमेंट मर्डर केस, नालंदा के पत्रकार पुत्र की जघन्य हत्या और गंगा में होनहारों की मौत को सरकार अब संजीदगी से देख रही है। सरकार से ज्यादा सरकार में शामिल राजनीतिक दल इसके लिए परेशान हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान हुई इन घटनाओं ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दलों को परेशान कर रखा है। भारतीय जनता पार्टी के नेता जदयू नेताओं से भी जानना चाह रहे कि आखिर बिहार में यह अचानक क्या हो गया है कि ऐसी घटनाओं का ग्राफ इतनी तेजी से बढ़ा। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के एक सदस्य कहते हैं कि हम बिहार में नीतीशजी के साथ हैं लेकिन चुनाव के दौरान हो रही घटनाओं से ऐसा लग रहा है कि सरकारी तंत्र राजग को जनता के सामने खड़े होने लायक देखना नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि भाजपा इसपर सीधे मुख्यमंत्री को नहीं घेर रही है और न घेरना चाहती है, लेकिन मुख्यमंत्री पुलिस-प्रशासन के साथ सख्त हो जाएं तो असर दिखेगा।