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नहीं रहे स्पेनिश पद्यकार निकानोर सेगुंडोपर्रा, 103 साल की उम्र में थमी धड़कन

यदि पहले पहल कोई राष्ट्रपति ही अपने देशवासियों को एक कवि के निधन की खबर स्वयं दे दे, तो क्या अंदाज लगेगा? उस राष्ट्र में इसे रचना-धर्मिता का सम्मान माना जाए? मेधाकर्म में जनरूचि की गहराई अथवासियासत से ऊपर साहित्य का स्थान पाना?शायद सभी। गत दिनों राष्ट्रपति मिशेल वि

tiwarishalini
Published on: 30 Jan 2018 5:17 PM IST
नहीं रहे स्पेनिश पद्यकार निकानोर सेगुंडोपर्रा, 103 साल की उम्र में थमी धड़कन
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विक्रम राव

यदि पहले पहल कोई राष्ट्रपति ही अपने देशवासियों को एक कवि के निधन की खबर स्वयं दे दे, तो क्या अंदाज लगेगा? उस राष्ट्र में इसे रचना-धर्मिता का सम्मान माना जाए? मेधाकर्म में जनरूचि की गहराई अथवासियासत से ऊपर साहित्य का स्थान पाना?शायद सभी।

गत दिनों राष्ट्रपति मिशेल विश्लेट ने राजधानी सन्तियागो में रूंधे गले से ऐलान किया था कि स्पेनिश पद्यकार निकानोर सेगुंडोपर्रा नहीं रहे। आयु 103 वर्ष थी। नोबेल विजेता पाब्लो नेरूदा के प्रेरक वे रहे। एलेन गिंसबर्ग के साथी थे। पर्राचार बार नेबेल के लिये प्रस्तावित हुये। स्पेनी साहित्य के श्रेष्टतम पारितोष सर्वान्टिस से उन्हें लातिनी द्धीप ने नव़ाजा था।रचनाओं से उन्हें ख्याति इतनी मिली कि दोनों अमरीकाओं तथा यूरोप में अत्यधिक अनूदित साहित्यकार रहे।

पर्रा अकविता के लिये जाने जाते थे। उनकी खौफजनक भौयें और रौबदार कलम (ठुड्डी का स्पर्श करतीं) से उनके अन्दाजे बयां का आभास हो जाता था। अभिधा, लक्षणा व्यंजना से विमुक्त,शब्द के अक्षरार्थ या वाच्यार्थ से जुदा,पर्रा की पंक्तियोंने पद्य को चौपाल पर ला बसाया। मगर बाजारू नहीं। संतियागों विश्वविद्यालय के प्रकाशन निदेशक मतियारी ने सटीक कहा: “कविता को ओलम्पियन शिखर से उतार कर गलीकूचे में पर्रा ले आये।” वे स्वयं पाठकोंसे आग्रह करते थे कि “मेरी कविता को खुद जोखिम उठा कर पढ़ना।”

पर्रा के बारे में समालोचकों में मशहूर था कि पर्रा के उदय के बाद स्पेनी कविता शब्दिक अवगुंठन को उठाकर, कल्पना की परतों को मिटाकर,अबूझ विचारों के भार से मुक्त हो कर,साधारण सी नजर आने लगी। सभी की समझ के दायरे में।लेकिन विषय और शैली की प्रभावोत्पादकता के कारण अनूठी रही। शब्दों और उनके अजीबपरींरभन द्धारा पर्रा अठखेली करते रहे। श्लिष्ट शब्दों द्धारा अपनी रुचिकर पंक्तियों से रूपक निरूपित करना उनकी निराली अदा रही।

भारतीय साहित्यिक दृष्टिकेाण में पर्रा को प्रतिकारी कवि कहा जा सकता है। विखण्डन, फिर रचना की कोशिश। उनकी एक कृति थी,“दि एपिटाफ”(मकबरा), जिसमें दोनों दुनिया के बारे में जिक्र है। पर्रा सिखाते भी थे। नवोदित कविता-कर्मियों को उनकी राय थी,“खूब लिखो। पुल के नीचे बहुत लहू बह चुका है। मगर एक शर्त रखो। कोरे कागज को शोभितकरो, अलंकृत करो,संवारों।” उनके विषय निहायत सामान्य होते थे। पार्क, फुवार्रा, फोन, आक्रोशित छात्र, कार्यालय कार्मिक आदि। चुटकुलों को पंक्तियों में पिरोने में उनको नैपुण्य था। गंजपन से भिड़ने पर उनकी लिखी कविता (1993) उम्दा है, ध्यान केन्द्रित करती है।

अपनी “एण्टी पोयट्री” के पक्ष में पर्रा ने कहा था,“व्यंग, परिहास, विरोधालंकार और मसखरापन का पुट कविता में न हेा, तो वह मात्र गायन हो जायेगा,त्रासद और बोझिल भी। वे कविता पाठ को पादरी के व्याख्यान से भिन्न बनाने पर जोर देते थे। उस दौर में चर्च का असर साहित्य पर भारी होता था। नेरुदा तथा जिंसबर्ग को वे यही बताते थे। यूं राजनीतिकरूप से सर्वाधिक चैतन्य चिली राष्ट्र के इस अकवि को कभी भी राजपुरुषों से सहमना, परहेज करना नहीं आया। वह दौर था जब वियतनामी स्वाधीनता संघर्ष को अमरीकी साम्राज्यवाद नेपाम बमों द्धारा कुचलने में जुटाथा।

तभी वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति की पत्नी पैट निक्सन के साथ पार्रा चाय पी रहे थे। खबर चली। फिदेल कास्त्रो ने हवाना पुस्तक मेला में निर्णयक हेतु आंमत्रित पार्रा का वीजा निरस्त कर दिया। यूं पार्रा सोवियत रूस में काफी रहे पर चिली वामपंथी नेता साल्वादोर अयान्दे के समर्थक नही थे। फौजी तानाशाह जनरल आगस्तो पिनोशे के पार्रा सक्रिय विरोधी रहे।

पार्रा के निन्दक कम नहीं थे कुछ तो घोर थे। एक अमरीकी (साहित्यिक) प्रोफेसर ने लिखा था कि पार्रा की कृतियां अश्लील हैं, स्तर ओछा है। नारी,ईश्वर, आस्था, सदाचार आदि के प्रति घृणा उपजाती है।पार्रा की “सेलोन वर्सेज”(केशचर्या पर कवितायें) को कामुक और बाजारू बताया गया था। पार्रा कीदृष्टि में यह विषग्राही, अर्थात् प्रतिकारी छन्द थे। बगावत का सुर लिये।

आधुनिक साहित्य के परिवेश में देखें तो पार्रा का पार्यावरण पर लिखा साहित्य आकृष्ट करता है। रुष्ट होकर वे एक बार एक परिसंवाद में ईश्वर के रोल में बोले थे:“यदि तुम लोगों ने अपनेकुकृत्यों से सृष्टि का विनाश कर दिया, तो मै दुबारा दुनिया नही बनाऊंगा।”

अमूमन कवि शब्दों का शिल्पी होता है।वैज्ञानिक सूक्ष्मताओं से दूर, काफी दूर। पार्रागणित और भौतिकशास्त्र के प्रोफेसर थे। नामी गिरामी भी। न्यूटन के भौतिक सिद्धान्तों को स्नातोकत्तर और शोधकर्ताओं को पढ़ाया भी। निर्धन दर्जी दम्पति की आठ संतानों में एक, पार्रा का बचपन अभावों में गुजरा।

फिर भी व्यवधान पार किये। शिखर पर सवार हुये। संवाददाताओं को इंटरव्यू देते थे, पर उन्हें नकारते भी जल्दी थे, क्योंकि पत्रकारों के प्रश्न बुद्धिमत्तापूर्ण और उनकी अभिव्यक्ति त्रुटीविहीननहीं होती थी।एक बार एक गोष्ठी में पार्रा ने कहा:“मेरा संपूर्ण जीवन विफल रहा।” फिर बोले,“मैं इस बयान को वापस लेता हूँ।” उनकी प्रथम रचना का शीर्षक था “अनाम गायक”।इससे मशहूर तो वेहुये, किन्तु अकवि के रूप् में। सारे नियमों को तोड़कर। मदमस्त, वेगवान पहाड़ी झरना किस चट्टान के रोके रूकता है?

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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