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सिंहस्थ कुंभ में बना है किन्नरों का भी अखाड़ा, जानें इनसे जुड़ी बातें

Admin
Published on: 23 April 2016 3:45 PM IST
सिंहस्थ कुंभ में बना है किन्नरों का भी अखाड़ा, जानें इनसे जुड़ी बातें
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लखनऊ: किन्नरों को सभ्यता के आरंभ से ही समाज में अलग रूप में देखा जाता रहा है वैसे तो यो ये समुदाय जेनेटिक कारण से अलग-थलग है, लेकिन खुद किन्नर समुदाय भी मुख्य समाज से अलग रहना पसंद करते हैं।इनका अलग समाज होता है और ये अलग रीति-रिवाजों को अपनाकर अपना जीवन काटते हैं। समाज इन्हें अलग देखता जरूर है लेकिन इनके बारें में जानने की हमेशा लोगों में बनी रहती है। हम किन्नरों के बारे में कुछ अद्भुत और रोचक तथ्य रखेंगे जिसे कई जगहों धर्म-ग्रंथों से भी लिया गया है। इनको समाज में सम्मान मिले तभी इस बार के सिंहस्थ कुंभ में किन्नरों का भी अखाड़ा बनाया गया है।

सिंहस्थ महाकुंभ की खास बात है कि पहली बार उज्जैन के दशहरा मैदान से किन्नर अखाड़े की पेशवाई निकली। इसकी अगवानी किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और सनातन गुरु अजय दास ने की। लक्ष्मी टीवी कलाकार, भरतनाट्यम नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं और किन्नरों के अधिकार के लिए काम करती हैं।

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किन्नर अखाड़ा

आमतौर पर सिंहस्थ में 13 अखाड़े शामिल होते हैं, लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा और बना है। ये अखाड़ा है किन्नर अखाड़ा। किन्नर अखाड़े को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है। किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि ये विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है।

इनके मौत की नुमाइश नहीं होती

अगर किसी किन्नर की मृत्यु हो जाए तो उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है। किन्नरों की जब मौत होती है तो उसे किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नर मुर्दे को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं। किन्नरों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है। किन्नर के मरने उपरांत पूरा हिंजड़ा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है।

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मौत पर जश्न

इस समाज कि सबसे बड़ी विशेषता है मरने के बाद ये मातम नहीं मनाते हैं। इस समाज में मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद खुशी मनानी चाहिए। ये लोग स्वंय के पैसों से कई दान कार्य भी करवाते है ताकि उन्हें दोबारा इस रूप में पैदा ना होना पड़ें।

हर साल बढ़ रही इनकी आबादी

देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसद ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था। मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों कोक्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था।

थर्ड कैटेगरी

बाद में आजाद भारत का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। अब देश में मौजूद 50 लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी सालों से लड़ाई लड़ रही थी।किन्नर समाज को तीसरे दर्जे का अधिकार प्राप्त है पहले सिर्फ दो ही कैटेगरी होती थी पर अब इनको भी तीसरा समाज मानकर उन्हें कई अधिकार सरकार ने दिए हैं।

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कैसे बनते है किन्नर

ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उत्पन्न होता है। रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उत्पन्न होती है। वीर्य और रज समान हो तो किन्नर संतान उत्पन्न होती है। पुराने समय में भी किन्नर राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे। महाभारत में वृहन्नला (अर्जुन) ने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी।

अर्जुन भी बने थे किन्नर

किन्नरों का जिक्र धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है वहां पर हम उनके योगदान को जान सकते हैं, महाभारत में शिखंडी को भी किन्नर समझा जाता था और महाभारत युद्ध को पाड़वों को जितवाने का योगदान शिंखडी को भी जाता है। महाभारत के अनुसार जब युधिष्ठर जुंआ हार गए थे तो उन्हें और उनके सभी भाईयों को वनबास में जाना पड़ा था तब एक साल के अज्ञातवास को काटने के लिए अर्जुन को एक किन्नर बनना पड़ा था, तब उसका नाम वृहन्नला था।

इनकी दुआ भगवान के आशीर्वाद के समान

किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं। धन लाभ चाहते है तो किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर पर्स में रखें। एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है।

किन्नर बनने पर कई आयोजन

यदि किसी नए व्यक्ति को किन्नर समाज में शामिल होना होता है तो उसके भी कई नियम है। इसके लिए कई रीति-रिवाज़ है, जिनका पालन किया जाता है। नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है। कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है। फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।

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समाज की दुष्प्रवृति

किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच ये भी है कि ये समाज ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो। ये समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता।



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