TRENDING TAGS :
फ्यूचर का ट्रांसपोर्ट हाइपरलूप, कमाल तकनीक का
तकनीकी विजनरी एलोन मस्क की सुपर स्पीड ट्रेन ‘हाइपरलूप’, अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में बहुत जल्द चलती नजर आ सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प वाशिंगटन और न्यूयॉर्क के बीच भविष्य के इंफ्रास्ट्रक्चर सिस्टम पर 200 बिलियन डालर के निवेश पर विचार कर रहे हैं। और यह निवेश हाइपरलूप पर हो सकता है। एलोन मस्क ने हाइपरलूप की बात पहले पहल 2012 में की थी और तबसे अब तक यह परिक्षण के कई दौर से गुजर चुकी है। अमेरिका के नेवाडा में इस सुपर ट्रेन के टेस्ट ट्रैक पर स्पीड के कई परीक्षण हो चुके हैं। वैसे हाइपरलूप पर सिर्फ मस्क ही काम नहीं कर रहे, बल्कि कई अन्य कम्पनियाँ इस तकनीक पर काफी आगे बढ़ चुकी हैं। ऐसी ही एक कंपनी है अरीवो जो डेनेवर में इस ट्रेन को धरातल पर पहुंचाने के करीब है।
डेनेवर में अधिकारीयों ने इसको मंजूरी दे भी दी है। अमेरिका में कैलीफोर्निया में जमीन के नीचे सुरंग बनाने का काम चल रहा और संभवत: लोस एंजेल्स और सैन फ्रांसिस्को के बीच हाइपरलूप शुरू की जायेगी। जहां तक भारत की बात है तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस ने हाल में अमेरिका के नेवाडा में वर्जिन हाइपरलूप की टेस्टिंग साइट पर जा कर वहां का काम देखा है। उन्होंने वर्जिन हाइपरलूप के सीईओ रॉब लॉयड से भी मुलाकात की। इसी साल फरवरी में महाराष्ट्र सरकार ने रिचर्ड ब्रैन्सन के वर्जिन ग्रुप के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जिसके तहत मुम्बई-पुणे के बीच हाइपरलूप बनाया जायेगा। इसके बन जाने से मुम्बई से पुणे मात्र २० मिनट में पहुंचा जा सकेगा।
क्या हो रहा है अभी
एलोन मस्क की हाइपरलूप वन उन तमाम कंपनियों में सबसे आगे है जो भविष्य के ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर काम कर रही हैं। मस्क ने सबसे पहले अपनी ‘हाइपरलूप अल्फा’ योजना को पेश किया था। मस्क के अनुसार यह सिस्टम कम खर्चीला, तेज, मौसम प्रतिरोधी और भूकंप रोधी होगा। 2017 में हाइपरलूप वन की टेस्ट साईट पर हाइपरलूप का परीक्षण किया गया जिसमें 190 मील प्रति घंटा की स्पीड पाई गयी। कम्पनी का लक्ष्य 600 मील प्रति घंटा की स्पीड से भी आगे जाना है। इस बीच मस्क ने जमीन के नीचे नजरें डाल दी हैं। उनकी एक अन्य कम्पनी ‘बोरिंग’ ने अमेरिकी सरकार के संग एक मौखिक समझौता किया है न्यूयॉर्क से वाशिंगटन डीसी के बीच भूमिगत लूप बनाने के लिए। मस्क की परियोजना में ब्रिटिश कारोबारी रिचर्ड ब्रैन्सन ने भी भारी भरकम निवेश कर दिया है। मस्क ने लॉस एंजेल्स से सैन फ्रांसिस्को के बीच हाइपरलूप बनाने का खर्चा 6 बिलियन डालर बताया है। अनुमान है कि अब प्रति एक मील पर खर्चा 1 बिलियन डालर आयेगा।
हाइपरलूप तकनीक के जरिये यात्रियों को एक ट्यूब में एक स्थान से दूसरे स्थान तक करीब 1,200 किमी प्रति घंटे की स्पीड से भेजा जा सकेगा। इस तकनीक पर आधारित ट्रेन अमेरिका में लॉस एंजिल्स से करीब 615 किमी दूर सैन फ्रांसिस्को तक पहुंचने में महज 30 से 35 मिनट का समय लेगी। यह तकनीक स्पेस एक्स के संस्थापक और टेस्ला मोटर्स के सीईओ एलन मस्क के दिमाग की उपज है। हाइपरलूप तकनीक में एक ट्यूब के भीतर वैक्यूम जैसी स्थिति होगी ताकि फ्रिक्शन (अवरोध) बेहद कम हो और उसके भीतर एक कैप्सूल (इसे पॉड कहा गया है) करीब 1,200 किमी प्रति घंटे की स्पीड से आगे बढ़ेगी। ट्यूब के भीतर ‘हाइपरलूप’ को उच्च दबाव और ताप सहने की क्षमता वाले इंकोनेल से बने बेहद पतले स्की पर स्थिर किया जाएगा। इस स्की में छेदों के जरिये दबाव डालकर हवा भरी जाती है जिससे कि यह एक एयर कुशन की तरह काम करने लगता है। स्की में लगे चुंबक और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक झटके से ‘हाइपरलूप’ के पॉड को गति दी जाती है।
इसकी एक बड़ी खासियत यह होगी कि इस पूरे सिस्टम को सोलर पैनलों के माध्यम से ऊर्जा मुहैया करायी जायेगी। अगर यह तकनीक हकीकत में साकार हो गयी तो लोगों के रहन-सहन के तरीके समेत आवागमन के तरीके को पूरी तरह से बदला जा सकता है। कहा जाता है कि इस तकनीक को विकसित करना एकदम नया विचार नहीं है क्योंकि पिछली एक सदी से इंजीनियर इस बारे में विचार कर रहे हैं कि एक ऐसी ट्रेन होनी चाहिए, जिसे ट्यूब के भीतर ज्यादा से ज्यादा हवा को हटाते हुए चलाया जा सके। रॉकेट क्षेत्र के महारथी रह चुके रॉबर्ट गोडार्ड ने ‘वैक्यूम-ट्यूब ट्रांसपोर्टेशन’ के तौर पर बेसिक प्लान का प्रस्ताव वर्ष 1904 में ही रखा था। अमेरिका के तत्कालीन ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी ने वर्ष 1969 में ‘पॉपुलर साइंस’ में लिखा था कि सरकार ‘ट्यूब-वेहिकल सिस्टम’ के कॉन्सेप्ट पर अध्ययन कर रही है।
चूंकि हाइपरलूप कैप्सूल में पहियों का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा, इसलिए इस सिस्टम को लैविटेट (हवा में तैरने) कराने के लिए चुंबकीय फील्ड बनाई जा सकती है। यह तकनीक प्रमाणित हो चुकी है और शंघाई ट्रांसरैपिड के तौर पर चलायी जा रही मैगलेव प्रोजेक्ट इसका सबसे अच्छा प्रमाण है। शंघाई मैगलेव ट्रेन 500 किमी प्रति घंटे की स्पीड से ट्रैवल करने में सक्षम है।
खेल एयर प्रेशर का
इस योजना को साकार करने की जो कल्पना की है, उसके तहत हाइपरलूप ट्यूब में एयर प्रेशर को बेहद कम किया जायेगा। हालांकि, यह ट्यूब वैक्यूम नहीं होगी लेकिन धरती की सतह पर मौजूद प्राकृतिक वायुमंडलीय प्रेशर की तुलना में करीब हजार गुना कम वायु उसमें होगी। इतनी कम मात्र में हवा होने की दशा में ट्यूब के भीतर यात्रियों से भरी कैप्सूल को सुपरसोनिक स्पीड तक पहुंचने में ऊर्जा की भी बहुत कम जरूरत होगी। ट्यूब के ऊपर लगाये जाने वाले सोलर पैनलों के माध्यम से इस सिस्टम की बैटरी चार्ज की जायेगी, जिससे इस पूरे सिस्टम को पर्याप्त ऊर्जा मिलती रहेगी। यह उपाय ऊर्जा क्षेत्र के लिए भी क्रांतिकारी साबित हो सकता है। इस कैप्सूल में एक बार में छह से आठ व्यक्ति यात्रा कर सकते हैं और इसे प्रत्येक 30 सेकेंड के अंतराल पर चलाया जा सकता है। कैप्सूल के आगे स्थित हवा ही इस कैप्सूल की एकमात्र अवरोधक है, जिसे दबाव के जरिये पीछे हटाया जायेगा। जिस स्पीड से हाइपरलूप पॉड्स को चलाने की बात हो रही है, ऐसे में उसके ट्रैक या ट्यूब को एकदम सीधा और समतल बनाना होगा।
भारत में भी चलाने का प्रस्ताव
हाइपरलूप की कंपनी हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजिज के चेयरमैन और मुख्य संचालन अधिकारी बिपॉप ग्रेस्टा सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को एक पायलट परियोजना स्थापित करने का औपचारिक प्रस्ताव दे चुके हैं।
आंध्र प्रदेश की चन्द्रबाबू नायडू सरकार ने हाइपरलूप को मंजूरी भी दे दी है। योजना बनाई गयी है कि विजयवाड़ा और राजधानी अमरावती के बीच हाइपरलूप चलायी जाए। दोनों शहरों के बीच की एक घंटे की यात्रा घटकर केवल पांच-छह मिनट की रह जाएगी। आंध्र प्रदेश सरकार ने इसके लिए हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजी (एचटीटी) से करार किया है. भारत में इस तरह का यह पहला समझौता है। हाइपरलूप कनेक्टर तैयार करने का काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत होगा। इस प्रोजेक्ट पर 1300-1600 करोड़ रुपये का खर्च आने की संभावना है।
कौन हैं एलोन मस्क
एलोन मस्क ‘स्पेसएक्स’ कंपनी के सीटीओ और सीएक्सओ, टेस्ला मोटर्स के सीईओ और प्रोडक्ट आर्किटेक्ट, और हर उभरते हुए उद्यमी के रोल मॉडल हैं। कम्प्यूटर जीनियस एलोन ने 12 साल की उम्र में ही कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग सीख ली थी वो भी अपने आप। उन्हें सिखाने वाला कोई नहीं था। 25 की उम्र में एप्लाइड फिजिक्स में पीएचडी करने के लिए वे कैलिफोर्निया की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। वे अपने सपनों के लिए काफी वफादार थे इसीलिए आज वे लाखों उद्यमियों के रोल मॉडल हैं। एलोन मस्क मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्तियां बसाने की योजना पर काम कर रहे हैं। स्पेसएक्स अभी भी 2018 में मंगल ग्रह पर मानव रहित कैप्सूल भेजने का इरादा रखता है, जिसमें 2024 तक मनुष्यों को भेजने की योजना है।
टेस्ला कार
एलोन मस्क की टेस्ला मोटर कंपनी बिजली से चलने वाली कार बनाती है और इस क्षेत्र में अग्रणी कंपनी है। ये वो कार है जिसमें इंजन नहीं होता, जो न पेट्रोल से चलती है, न डीजल या गैस से। ये कार चलती है बिजली से, सेलफोन जैसी बैटरियों से। एक बार चार्ज करने पर ये 400 किलोमीटर तक जाती है। इसकी एक और खूबी ये है कि ये कार 0 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार चार सेकंड से भी कम वक्त में हासिल कर लेती है।
अमेरिका की सिलिकन वैली में सैन फ्रांसिस्को के पास फ्रीमॉन्ट नाम की जगह पर दुनिया के सबसे आधुनिक कारखानों में से एक में टेस्ला कार बनती है। यह कार विशेष प्रकार के एलुमिनियम और स्टील की बॉडी से युक्त है, इसमें 19 इंच के एलॉय पहिये होते हैं और इसका दाम 50 हजार डॉलर है। सबसे बड़ी खूबी है टेस्ला कार में लगे 7 हजार से भी ज्यादा विशेष लिथियम आयन सेल्स। ये इतनी बिजली देते हैं कि ये कार 400 से 480 किलोमीटर तक बिना रुके चल सकती है। कार के भीतर एक बड़ी टच स्क्रीन है जो कार का कंप्यूटर और आपका सबसे बड़ा साथी है। कार को सुपर चार्जर से चार्ज करने में सिर्फ 40 मिनट का वक्त लगता है। पूरे अमेरिका में इस करिश्माई कार को चार्ज करने के प्वाइंट्स टेस्ला कंपनी ने बना रखे हैं और वहां मुफ्त में कार को चार्ज किया जाता है। सामान्य चार्जर से चार्ज होने में 4 घंटे लगते हैं। मस्क हर साल 20 हजार टेस्ला मॉडल एस कारें बना रहे हैं।