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गीता जयंती 30 नवम्बर पर विशेष : पलायन से पुरुषार्थ का प्रेरणागीत

tiwarishalini
Published on: 24 Nov 2017 5:24 PM IST
गीता जयंती 30 नवम्बर पर विशेष : पलायन से पुरुषार्थ का प्रेरणागीत
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पूनम नेगी

अपनी प्रकाशपूर्ण प्रेरणाओं के कारण श्रीमद्भगवदगीता को वैश्विक ग्रंथ की मान्यता हासिल है। बीती शताब्दी में गीता प्रेस गोरखपुर और अन्तर्राष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) के प्रयत्नों से अपने विषय और वैशिष्ट्य के कारण गीता के छह दर्जन से अधिक भाषाओं में तकरीबन 250 से अधिक अनुवाद और व्याख्यान हो चुके हैं। यह महान कृति भारतीय संस्कृति की आत्मा है। अगर इस अमर ग्रंथ को भारतीय संस्कृति से अलग कर दिया जाए तो भारतीय संस्कृति का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।

भगवद्गीता मूलत: संस्कृत महाकाव्य है। करीब पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता सुनाई थी। इसके 18 अध्यायों के सात सौ श्लोकों में संजोया गया पलायन से पुरुषार्थ का यह अनुपम प्रेरणागीत चिरप्रासंगिक है। तत्थ्यात्मक रूप से जीव को आत्मा की अनश्वरता का बोध कराकर जीवन को समग्रता के साथ जीने की कला सिखाने वाली इस कृति के बारे में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। इसकी व्याख्या में शब्द भी छोटे हो जाते हैं। युद्ध की भूमि से शांति व न्याय की स्थापना का संदेश, यही इस ग्रंथ की सबसे बड़ी विशिष्टता है।

महाभारत का युद्ध मूलत: धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष था। इस युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अनश्वरता का बोध करवाकर धर्मपथ पर प्रेरित किया। कर्म की अनूठी व्याख्या कर परिणाम के बारे में चिंतित न होने की शिक्षा दी। जहां ज्ञान का प्रकाश हो जाता है वहां अज्ञान नहीं रहता। यह बात अलग है कि ज्ञान दिव्य, आंतरिक प्रत्यक्ष, परोक्ष, लौकिक, जन्मजात, किताबी और व्यावहारिक कई प्रकार का होता है। गीता में इन सभी का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।

गीतानायक कृष्ण पीडि़त मानवता को आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि जब भी, जहां भी धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब मैं अवतार लेता हूं। यह आश्वस्ति गीता के 4/7 अध्याय में दी गयी है। इसी तरह 2/47 अध्याय में वे पुन: परिमाण की चिंता न करते हुए सतत कर्मशील रहने की प्रेरणा देते हैं। सचमुच यह बहुत गहरा और गंभीर सूत्र है। इसे समझने वाले कभी निराश नहीं होते। इसी तरह गीता के अध्याय 14/11 में कहा गया है कि जब शरीर के सभी द्वार ज्ञान के आलोक से प्रकाशित होते हैं तभी सतोगुण की अभिव्यक्ति का अनुभव किया जा सकता है।

अध्याय 4/39 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो दिव्य ज्ञान को समॢपत हैं और जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया है, वही इस दिव्य ज्ञान को पाने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरंत आध्यात्मिक शांति को प्राप्त होता है। जिज्ञासु जब गीता की शरण में जाते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से अर्जुन की तरह उनके ज्ञान चक्षु भी खुल जाते हैं जबकि सामान्य व्यक्ति मोहग्रस्त हो कदम-कदम पर तमाम तरह के कष्ट और क्लेश भोगते रहते हैं। इन्हीं दुखों से निजात दिलाने के लिए गीता में निष्काम कर्मयोग की शिक्षा दी गई है।

गीता नायक श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधारण कर्मवाद को कर्मयोग में परिवॢतत करने के लिए तीन साधनों की विशेष रूप से आवश्यकता है-1. फल की आकांक्षा का त्याग 2. कत्र्तापन के अहंकार से मुक्ति 3. ईश्वरार्पण। गीता के इन सूत्रों में वेदों एवं उपनिषदों का सार निहित है। शास्त्र कहते हैं कि फल के परित्याग से मनुष्य की अंत:शुद्धि होती है और वह भगवत्प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। ऐसे मनुष्य में आसक्ति नहीं होती। कार्य की सफलता का श्रेय स्वयं लेना और असफलता का दोष औरों पर मढऩा अहंकार का प्रदर्शन है। यह कर्म बंधन का कारण बनता है। मानव कल्याण की दृष्टि से गीता का यह ज्ञान अत्यंत लाभकारी है। गीता मर्मज्ञ स्वामी प्रभुपाद जी का कहना है कि कृष्ण की यह वाणी मनुष्य को भौतिक संसार के अज्ञान से उबारकर आध्यात्मिक आनंद और शांति की ओर ले जाती है।

आजकल मानव समाज में कलह, क्लेश, क्रोध, तनाव और अवसाद का विष व्याप्त हो रहा है। ऐसे में गीता के मनन व अनुसरण से मनुष्य की मिथ्या धारणाएं, भ्रम और शंकाएं समाप्त हो सकती हैं बशर्ते हम गीता का अध्ययन अत्यंत विनीत भाव के साथ करें। गीता का ज्ञान एक रहस्य है। उसे यूं ही समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। जो कर्मशील व कर्मवीर हैं और कर्मण्यता का भाव रखते हैं उन्हें भगवद्गीता का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए।

सुप्रसिद्ध अध्यात्मवेत्ता व गीता मनीषी डा. प्रणव पण्ड्या कहते हैं कि आज जिस तरह समूची दुनिया में निराशा, विषाद, भय व आतंक का माहौल बना हुआ है, इससे मुक्ति का एकमात्र रास्ता श्रीमद्भागवत गीता ही है।

इस ग्रंथ में निहित ज्ञान में न केवल विश्व को एक मंच पर लाने की अनूठी ताकत है वरन विश्वशांति स्थापित करने की अद्भुत सामथ्र्य भी है। गीता प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति धर्म व कर्तव्यों का बोध कराती है। सुप्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक जे.डब्ल्यू.होमर के अनुसार गीता न केवल गंभीर अंतर्दृष्टि देती है बल्कि धर्म के आंतरिक व लौकिक स्वरूप को पूर्ण संतुलित रूप में परिभाषित करती है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है।

अमेरिकी दार्शनिक एल्डुअस हक्सले का भी कहना है कि गीता न केवल भारतीयों के लिए बल्कि सभी धर्म, सम्प्रदायों के अनुयायियों के लिए अनुकरणीय है। महात्मा गांधी कहा करते थे कि गीता एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। इसका अध्ययन करने वालों को विषाद बहुत कम सताता है। विनोवा भावे, लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद संत ज्ञानेश्वर जैसे अनेक महामानवों ने भी गीता को अपनी मार्गदॢशका कहा है। संत ज्ञानेश्वर कहते थे कि गीता वह तैलजन्य दीपक है, जो अनंतकाल तक हमारे ज्ञान मंदिर को प्रकाशित करता रहेगा ।

गीता के अनुसार किसी कार्य में समग्र रूप से निमग्न हो जाना ही योग है। मन, क्रम, विचार, भाव के साथ कार्य करते हुए भी उस कार्य के परिणाम से सदा मुक्त रहना क्योंकि आसक्ति ही कर्म का बंधन बनती है। ऐसे ही तमाम अनमोल सूत्रों के कारण वर्तमान की घोर स्पर्धापूर्ण परिस्थितियों में गीता तनाव प्रबंधन का कारगर उपाय साबित हुई है। इसीलिए आज देश-दुनिया के तमाम उच्च शिक्षण-प्रबंधन संस्थान और स्कूल इसे अपने पाठ्यक्रमों का हिस्सा बना रहे हैं। अमेरिका, जर्मनी व नीदरलैंड जैसे कई विकसित देशों ने इसे अपने देश के शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल कर रखा है। अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित सैटान हॉल विश्वविद्यालय में तो हर छात्र को गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढऩा अनिवार्य है। गीता के प्रबंधन सूत्रों को अपने प्रतिष्ठानों में लागू करने वाली देशभर की नामी-गिरामी कम्पनियां इनके नतीजों से काफी उत्साहित व प्रसन्न हैं।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा व गुजरात आदि राज्यों ने भी गीता के सूत्रों के बहुआयामी लाभों को समझकर अपने राज्य में स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम में गीता के प्रबंधन सूत्रों को शामिल कर प्रशंसनीय कार्य किया है। मुम्बई नगरपालिका भी अपने विद्यालयों में गीता के कुछ अंशों को पढ़ा रही है। यही नहीं, देश के सभी विश्वविद्यालयों में योग के साथ यूजीसी की ओर से तैयार पाठ्यक्रम में गीता को भी सम्मिलित किया गया है। इसी कारण देश का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने की मांग कर रहा है।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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