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गज़ल: फिर छिड़ी रात बात फूलों की... फिर छिड़ी रात बात फूलों की

raghvendra
Published on: 17 Nov 2017 12:01 PM GMT
गज़ल: फिर छिड़ी रात बात फूलों की... फिर छिड़ी रात बात फूलों की
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मख़दूम मोहिउद्दीन

फिर छिड़ी रात बात फूलों की...

फिर छिड़ी रात बात फूलों की

रात है या बारात फू लों की

फू ल के हार, फूल के गजरे

शाम फूलों की रात फू लों की

आपका साथ, साथ फू लों का

आपकी बात, बात फू लों की

नजऱें मिलती हैं जाम मिलते हैं

मिल रही है हयात फू लों की

कौन देता है जान फू लों पर

कौन करता है बात फू लों की

वो शराफ़त तो दिल के साथ गई

लुट गई कायनात फू लों की

अब किसे है दमागे तोहमते इश्क

कौन सुनता है बात फू लों की

मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह बहार

तेरी आंखों में रात फू लों की

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में

रोज़ निकलेगी बात फू लों की

ये महकती हुई गजल ‘मख़दूम’

जैसे सहरा में रात फू लों की

raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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