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राम को जन-जन तक पहुंचा रहा गीता प्रेस, जानिए छाप चुका है कितनी प्रतियां?

suman
Published on: 28 July 2017 4:54 PM IST
राम को जन-जन तक पहुंचा रहा गीता प्रेस, जानिए छाप चुका है कितनी प्रतियां?
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गोरखपुर: गोस्वामी तुलसीदास के राम को जन-जन तक पहुंचाने में गीता प्रेस की सबसे बड़ी भूमिका है। गीता प्रेस दुनिया की श्रेष्ठ 50 कालजयी रचनाओं में शुमार तुलसीदास रचित रामचरित मानस की हर साल छह लाख प्रतियां छापकर इसे आम लोगों तक पहुंचा रहा है। गुटका संस्करण काफी सस्ता होने के कारण लोग इसे हाथोंहाथ लेते हैं। मौजूदा दौर में पढऩे वालों की संख्या लगातार घट रही है और लोग अपने अतीत से कटते जा रहे हैं। ऐसे दौर में गीता प्रेस की भूमिका का महत्व समझा जा सकता है। गीता प्रेस की पुस्तकों की इतनी भारी मांग है कि प्रेस को 11 करोड़ की अत्याधुनिक मशीन लगानी पड़ी।

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मानस की तीन करोड़ से अधिक प्रतियों का प्रकाशन

गीता प्रेस तुलसीदास रचित रामचरित मानस की अभी तक तीन करोड़ 10 लाख प्रतियां छाप चुका है और हर साल छह लाख से अधिक प्रतियों का प्रकाशन कर रहा है। मांग इतनी अधिक है कि गीता प्रेस इसे पूरा नहीं कर पा रहा है। किसी कवि ने लिखा है कि ‘होते चाहे राम, राम का यह इतिहास नहीं होता’ यानी मर्यादा पुरुषोत्तम राम तो होते ही, लेकिन तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसी कालजयी ग्रंथ की रचना कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को घर-घर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। वहीं आधुनिक समय में गीता प्रेस भगवान राम के चरित्र को रामचरित मानस के माध्यम से घर-घर तक पहुंचा रहा है। यह सफर अनवरत चल रहा है। रामचरित मानस की बिकी प्रतियां इस बात की तस्दीक करती हैं कि गीता प्रेस और मानस एक दूसरे के पर्याय हैं।

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45 रुपये वाले गुटका संस्करण की सर्वाधिक मांग

गीता प्रेस पिछले 94 वर्षों से रामरचित मानस को काफी सस्ते दाम में लोगों तक पहुंचा रहा है। हिन्दी के अलावा रामरचित मानस अंग्रेजी, उडिय़ा, बांग्ला, तेलगू, मराठी, गुजराती, पालि व कन्नड़ भाषाओं में प्रकाशित हो रही है। गीता प्रेस की वेबसाइट पर डिजटल रामचरित मानस भी पढ़ी जा सकती है। महज 45 रुपये में बिकने वाले रामचरित मानस के गुटका संस्करण की सर्वाधिक मांग है। इसकी एक करोड़ छह लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। वहीं 650 रुपये में बिकने वाले डीलक्स संस्करण की भी एक लाख 37 हजार प्रतियां भी देश-दुनिया के घरों में पहुंच चुकी हैं। विभिन्न विद्धानों की टीका को सामाहित कर सात खंडों में प्रकाशित ‘मानस पीयूष-टीका’ की भी भारी मांग है। गीता प्रेस तुलसी साहित्य को भी जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विनय पत्रिका, गीतावली, दोहावली, कवितावली, रामाज्ञा प्रश्न, श्रीकृष्ण गीतावली, जानकी मंगल, हनुमान वाहुक, पार्वती मंगल, वैराग्य संदीपनी एवं बरवै रामायण की लाखों प्रतियों का प्रकाशन आधुनिक युग में जन-जन तक तुलसीदास की स्वीकार्यता को तस्दीक कर रहा है। हनुमान वाहुक की 25 लाख तो विनय पत्रिका की 10 लाख से अधिक प्रतियां लोगों के घरों तक पहुंच चुकी हैं। गीता प्रेस के ट्रस्टी लालमणि प्रसाद का कहना है कि गीता प्रेस रामचरित मानस या आस्था की अन्य पुस्तकों का प्रकाशन लोककल्याण के दृष्टि से कर रहा है।

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गीता प्रेस ने खरीदी 11 करोड़ की अत्याधुनिक मशीन

गीता प्रेस के छद्म नामों से सैकड़ों संस्थाएं रामचरित मानस का प्रकाशन कर रही हैं, लेकिन सस्ती, त्रृटिरहित पुस्तक के लिए लोगों का विश्वास गीता प्रेस पर बना हुआ है। गीता प्रेस प्रबंधन ने लोगों को सुलभ और सस्ता साहित्य पहुंचाने के लिए 11 करोड़ रुपये में अत्याधुनिक मशीन खरीदी है ताकि लोगों की मांग पूरी की जा सके। श्री प्रसाद कहते हैं कि देश में हजार से अधिक गीता प्रेस के स्टॉल से रामचरित मानस की बिक्री हो रही है।

विदेशों में भी रामचरित मानस की भारी मांग है। नेपाल की राजधानी में काठमांडू में गीता प्रेस की शाखा खोली गई है। अमेरिका, इग्लैंड समेत दुनिया के तमाम देशों से लगातार मांग आ रही है। बुक सेलर और डाक के माध्यम से सीमा पार धाॢमक पुस्तकों को पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। डीडीयू में प्रोफेसर और वरिष्ठ पत्रकार प्रो.हर्ष कुमार सिन्हा कहते हैं कि नि:संदेह रामचरित मानस विश्व की कालजयी रचना है, लेकिन जन-जन तक इसकी चौपाई और प्रासंगिकता को पहुंचाने में गीता प्रेस की अहम भूमिका है। महाकाव्य की स्वीकार्यता इसी से साबित होती है कि विद्धानों ने सर्वाधिक व्याख्या रामचरित मानस की ही की है। देश के जानेमाने प्रवचनकर्ताओं के सर्वाधिक प्रिय तुलसीदास ही हैं। अब यह धर्मग्रंथ के साथ ही नीतिग्रंथ के रूप में स्वाकार की जा रही है। इस स्वीकार्यता को जन-जन तक पहुंचाने में गीता प्रेस व रामानंद सागर का अहम योगदान है।

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तुलसी पर हो रहा सर्वाधिक शोध

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में तुलसीदास पर सबसे अधिक शोध हो रहा है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में दो दर्जन से अधिक शोध तुलसीदास पर हो चुके हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो.चित्तरंजन मिश्र का कहना है कि तुलसीदास की रचनाएं शोध से काफी ऊपर हैं। वे बगैर पाठ्यक्रम के भी लोक के सर्वाधिक स्वीकार्य कवि हैं। अभी दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा प्रीति त्रिपाठी का शोध प्रबंध जांचने का अवसर मिला। युवा पीढ़ी तुलसीदास पर जबरदस्त काम कर रही है। प्रो. मिश्र कहते हैं कि लोहिया ने तुलसीदास को महान और सूरदास को महत्वपूर्ण कवि कहा है। उनका मानना है कि तुलसीदास का साहित्य लोगों का दिमाग बदलने वाला साहित्य है। इसीलिए तुलसीदास को स्नातक से लेकर परास्तानक की सभी कक्षाओं में प्रमुखता से कोर्स में शामिल किया गया है।



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