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देेवी पाटन मण्डल में अर्श से फर्श तक पहुंचेे कई दिग्गज

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Published on: 12 April 2019 4:03 PM IST
देेवी पाटन मण्डल में अर्श से फर्श तक पहुंचेे कई दिग्गज
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फ़ाइल फोटो

तेज प्रताप सिंह

गोंडा। नेपाल से सटे देवी पाटन मण्डल की चार लोकसभा सीटें लगातार किसी राजनीतिक दल का गढ़ नहीं बनी। यहां हुए 16 आम चुनाव में कांग्रेस ने 23, जनसंघ और भाजपा ने 23, समाजवादी पार्टी ने 09 और मात्र एक बार बसपा, भारतीय लोकदल और 03 बार स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। आजादी के बाद से ही मण्डल की चारों लोकसभा सीटें महत्वपूर्ण रहीं क्योंकि यहां देश की पहली महिला मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी, जनसंघ और भाजपा के शिखर पुरुष अटल बिहारी बाजपेयी, प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख, कांग्रेस के जाने माने नेता रफी अहमद किदवई, कालाकांकर नरेश दिनेश प्रताप सिंह, सुभद्रा जोशी आदि जीते हैं।

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नब्बे के दशक तक देवी पाटन मण्डल में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच रहता था। किंतु समाजवादी पार्टी के उदय के बाद 1996 के चुनाव में कांग्रेस यहां हाशिए पर चली गई। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर बाजी मार ली और गोंडा से बेनी प्रसाद वर्मा, बहराइच से कमल किशोर और श्रावस्ती से विनय कुमार पाण्डेय ने जीत दर्ज की। जबकि बहुजन समाज पार्टी अपनी जमीन नहीं तैयार कर सकी। कांगे्रस से अलग हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने जरूर एक बार बसपा के टिकट से बहराइच सीट पर विजय पताका फहराई थी।

हाईप्रोफाइल रही है गोंडा लोकसभा सीट

गोंडा लोकसभा सीट का गठन 1952 में हुआ था। तब इसे गोंडा उत्तर सीट नाम से जाना जाता था। पहली बार यहां कांग्रेस के चैधरी हैदर हुसैन ने जीत हासिल की थी। जबकि गोंडा पश्चिम सीट से हिंदू महासभा की शकुंतला नैयर जीती थीं। 1957 में कांग्रेस के राजा दिनेश प्रताप सिंह, 1962 में कांग्रेस के राम रतन गुप्ता और 1964 में स्वतंत्र पार्टी के नारायण दांडेकर ने चुनाव जीता।

1967 में सुचेता कृपलानी के बाद 1971 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ओ) के सिम्बल पर मनकापुर राजघराने के कुंवर आनंद सिंह ने जीत का परचम लहराया। 1977 की जनता लहर में यहां से भारतीय लोकदल के टिकट पर सत्यदेव सिंह चुनाव जीते। 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस के टिकट पर कुंवर आनंद सिंह चुनाव जीते। 1991 में पहली बार यहां भारतीय जनता पार्टी के बृजभूषण शरण सिंह ने विजय पताका फहराई। 1996 में भी ये सीट भाजपा के पास रही और बृजभूषण शरण सिंह की पत्नी केतकी सिंह विजयी हुईं। १998 के चुनावों में यहां सपा के टिकट पर कुंवर आनंद सिंह के पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह को सफलता मिली लेकिन इसके एक ही साल बाद हुए चुनाव में भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह जीते। 2004 के चुनाव में एक बार फिर यहां साइकिल दौड़ी लेकिन 2009 में कांग्रेस के सिम्बल पर पूर्व संचार मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2014 में ये सीट भाजपा के पास गई और कीर्तिवर्धन सिंह यहां से सांसद चुने गए।

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गोंडा पश्चिमी था कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र

कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र में 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था। तब यह गोंडा पश्चिमी के नाम से जाना जाता था। गठन के बाद से चुनाव तो 16 बार हुए हैं, जिसमें सबसे अधिक पांच बार सपा का कब्जा रहा है। तीन बार कांग्रेस व दो बार भाजपा जीती है। तीन बार भारतीय जनसंघ प्रत्याशी भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुका है। इस संसदीय सीट में गोंडा जिले की तीन विधानसभा व बहराइच की दो विधानसभा सीटें शामिल हैं। गोंडा की कटरा, कर्नलगंज व तरबगंज विधानसभा जबकि बहराइच की पयागपुर व कैसरगंज विधानसभा सीटें शामिल हैं।

कौन कब जीता

1952 : हिंदू महासभा की शकुंतला।

1957 : स्वतंत्र पार्टी के भगवानदीन मिश्रा।

1962 : स्वतंत्र पार्टी की बसंत कुमारी।

1967 व 1971: भारतीय जनसंघ की शकुंतला नैय्यर।

1977 : जनता पार्टी के रुद्रसेन चौधरी।

1980, 1984 व 1989: कांग्रेस के राना वीर सिंह।

1991 : भाजपा के लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी।

1996, 1998, 1999 व 2004 : सपा के बेनी प्रसाद वर्मा।

2009 : सपा के टिकट पर बृजभूषण सिंह जीते।

2014 : सपा छोड़कर भाजपा में आए बृजभूषण शरण सिंह।

बहराइच सामान्य से सुरक्षित तक

बहराइच लोकसभा सीट से 2014 में भाजपा के टिकट पर साध्वी सावित्री बाई फूले ने सपा के शब्बीर अहमद को हराकर जीत हासिल की थी। अब साध्वी सावित्री ने भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। बहराइच लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं - बलहा, महासी, नानपारा, बहराइच और मटेरा।

कब कौन विजयी रहा

1952 : कांग्रेस के रफी अहमद किदवई।

1957 : कांग्रेस के सरदार जोगेन्द्र सिंह

1962 : स्वतंत्र पार्टी के कुंवर राम सिंह।

1967 : जनसंघ के के.के. नैयर।

१971 : कांग्रेस के पं. बदलूराम शुक्ला।

1977 : भारतीय लोकदल के ओम प्रकाश त्यागी।

1980 : कांग्रेस के मौलाना सैयद मुजफ्फर हुसैन।

1984 : कांग्रेस के आरिफ मोहम्मद खान।

1989 और 1991 : भाजपा के पद्मसेन चौधरी।

1996 : भाजपा के रुद्रसेन चौधरी।

1998 : बहुजन समाज पार्टी के आरिफ मोहम्मद खान।

1999 : भाजपा के पद्मसेन चौधरी।

2004 : सपा की रुबाब सईदा।

2008 में नए परिरसीमन के बाद यह क्षेत्र सुरक्षित हो गया और 2009 में कांग्रेस के कमल किशोर जीते।

2014 : भाजपा की सावित्री बाई फुले। सपा दूसरे नंबर पर, बसपा तीसरे और कांग्रेस चैथे नंबर पर रही।

अटल, नानाजी से जुड़ा है श्रावस्ती (बलरामपुर)

श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का इतिहास अटल बिहारी वाजपेई व नाना जी देशमुख से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों तक यह बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। अटल व नाना जी इसी लोकसभा क्षेत्र से पहली बार सांसद बने थे। नए परिसीमन में वर्ष 2009 से इसे श्रावस्ती नाम दिया गया। जिसमें बलरामपुर जिले की तीन व श्रावस्ती जिले की दो विधानसभा सीटें आती हैं।

बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया था। जिसमें बलरामपुर, उतरौला, सादुल्लाहनगर, गैसड़ी व तुलसीपुर चार विधान सभा शामिल थीं। उस चुनाव में भारतीय जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेई सांसद बने थे। 1962 में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी अटल को हराकर सांसद बनी। 1967 में पुन: भारतीय जनसंघ पार्टी से अटल बिहारी सांसद बने। 1971 में कांग्रेस के चंद्रभाल मणि तिवारी ने बाजी मारी। यह दौर था जब नाना जी देशमुख अपने समाज सेवा से लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे थे। जनता पार्टी का निर्माण हुआ। जनता पार्टी ने नाना जी को बलरामपुर से प्रत्याशी बनाया। जनता ने नाना जी देशमुख को चुनावों में भारी मतों से जिताकर संसद भेजा। 1980 में कांग्रेस के चंद्रभाल मणि तिवारी एक बार फिर सांसद बने। 1984 में कांग्रेस के दीप नरायन बन जीते। 1989 में निर्दलीय फसीउर्रहमान खान उर्फ मुन्नन खां सांसद बने। वर्ष 1991 व 1996 में भाजपा के सत्यदेव सिंह को जीत मिली। 1998 में तुलसीपुर के विधायक रहे रिजवान जहीर सपा के टिकट पर जीते। 1999 में फिर रिजवान जहीर चुने गए। गोंडा से भाजपा सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह ने सीट बदलकर वर्ष 2004 में बलरामपुर से चुनाव लड़ा और विजयी रहे।

श्रावस्ती नाम से जाना गया बलरामपुर संसदीय क्षेत्र

नए परिसीमन में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र का नाम बदला कर श्रावस्ती कर दिया गया। उतरौला व सादुल्लाहनगर विधान सभा अब इसका हिस्सा नहीं रही। बलरामपुर जिले में पडऩे वाली बलरामपुर, तुलसीपुर, गैंसड़ी के साथ साथ श्रावस्ती जिले की भिनगा और इकौना विधान सभा सीटें इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल की गईं। नए परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में हुए चुनाव को कांग्रेस के विनय कुमार पाण्डेय ने जीत दर्ज की। वर्ष 2014 में श्रावस्ती लोक सभा सीट पर भाजपा के दद्दन मिश्रा सांसद बने। उन्होंने सपा के अतीक अहमद को करीब एक लाख वोटों से हराया था।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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