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टीचर्स डे 2018: गूगल ने डूडल बनाकर दिया शिक्षकों को सम्मान
नई दिल्ली: भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर शिक्षकों को सम्मान दिया है। भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण के जन्मदिन के रूप में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
गूगल का डूडल आज बेहद खास नजर आ रहा है। इसमें गूगल के जी को ग्लोब की शेप में बनाया गया है, जो कि गोल-गोल घूम रहा है। इसके कुछ देर बाद ग्लोब घूमना बंद कर देता है और चश्मा पहने एक टीचर की तरह नजर आता है। इसके बाद इसमें बुलबुले निकलने शुरू हो जाते हैं जो कि मैथ्स से लेकर केमिस्ट्री, अंतरिक्ष विज्ञान, म्यूजित, खेल आदि का संकेत देते हैं।
देश में इस दिन सभी शिष्य अपने गुरुओं के योगदान के लिए उन्हें अपना प्यार और सम्मान प्रकट करते हैं। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में छात्र शिक्षकों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। उन्हें पुरस्कार आदि देते हैं। पहली बार यह दिवस 1962 में मनाया गया था।
सर्वपल्ली राधाकृष्ण 1962 से 1967 तक देश के राष्ट्रपति रहे। वह भारतीय संस्कृति के संवाहक, महान दार्शनिक और प्रख्यात शिक्षाविद थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में जन्मे राधाकृष्ण ने अपने भाषणों से दुनिया को भारत दर्शन से परिचित कराया।
जब 1962 में वह राष्ट्रपति बने तो उनके सम्मान में लोगों ने 5 सितंबर के दिन को 'राधाकृष्ण दिवस' के तौर पर मनाने का फैसला किया। लेकिन बाद में खुद राष्ट्रपति राधाकृष्ण ने इससे मना कर दिया और कहा कि 5 सितंबर को उनके जन्मदिन की बजाय टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।
मैनचेस्टर एवं लंदन में कई व्याख्यान दिए
साल 1909 में 21 साल की उम्र में राधाकृष्ण ने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर दर्शन शास्त्र पढ़ना आरंभ किया। फिर उन्होंने 1910 में शिक्षण का प्रशिक्षण मद्रास में लेना शुरू किया।
उस वक्त उन्हें मात्र 37 रुपये वेतन मिलता था। उनके अद्भुत व्याख्यानों के कारण उन्हें 1929 में व्याख्यान देने हेतु 'मैनचेस्टर विश्वविद्यालय' ने आमंत्रित किया। इसके बाद उन्होंने मैनचेस्टर एवं लंदन में कई व्याख्यान दिए।
ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक
1931-1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहने के बाद 1936 से 1952 तक राधाकृष्ण ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। इसके बाद वह 1937 से 1941 तक जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर भी रहे। फिर 1939 से 1948 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चांसलर बने।
1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे। फिर साल 1946 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भी उपस्थित हुए। राधाकृष्ण का निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ। मरणोपरांत उन्हें 1984 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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