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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
संजय कुमार गिरि
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए....
इन पंक्तियों के रचयिता दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नवादा गांव में हुआ। उन्होंने एमए हिंदी की पढ़ाई इलाहाबाद से की। उन्होंने बहुत सी कवितायें, नाटक, लघु कहानियां, उपन्यास और गज़़लें लिखीं। उनका गज़़ल-संग्रह साये में धूप बहुत लोक-प्रिय है। उनकी अन्य काव्य रचनायें हैं: सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का वसन्त और एक कंठ विषपायी (काव्य नाटिका)। वह आम लोगों के कवि हैं और उनकी कविता समाज के लिए कड़वी दवा है। वह लोगों की अज्ञानता, डर और दुखों की बात करते हुए भी आशावादी बने रहते हैं। वह कई नये कवियों के लिए भी प्रेरणा-स्रोत हैं।
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दुष्यंत कुमार ने जब साहित्य की दुनिया में अपने कदम उस समय रखे जब भोपाल में केवल दो ही प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा कैफ भोपाली का गज़़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। सिर्फ 42 वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने हिंदी साहित्य में अपार ख्याति अर्जित कर ली थी।
शायर निदा फ़ाज़ली ने उनके बारे में लिखा है-
दुष्यंत की नजर उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराजगी से सजी बनी है। यह ग़ुस्सा और नाराजगी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के खिलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है।
समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गज़़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है। दुष्यंत एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं। दुष्यंत का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूंजता है। इस कवि ने कविता, गीत, गज़़ल, काव्य, नाटक, कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया।
अमिताभ बच्चन के प्रशंसक-
दुष्यंत कुमार ने बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्म 'दीवार' के बाद पत्र लिखकर उनके अभिनय की तारीफ की और कहा कि वह उनके फैन हो गए हैं। दुष्यंत कुमार का वर्ष 1975 में निधन हो गया था और उसी साल उन्होंने यह पत्र अमिताभ को लिखा था। यह दुर्लभ पत्र हाल ही में उनकी पत्नी राजेश्वरी त्यागी ने उन्हीं के नाम से स्थापित संग्रहालय को हाल ही में सौंपा है।
दुष्यंत कुमार और अमिताभ के पिता डॉ. हरिवंशराय बच्चन में गहरा प्रेम था। 'दीवार' फिल्म में उन्होंने अमिताभ की तुलना तब के सुपर स्टार्स शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा से भी की थी। हिन्दी के इस महान साहित्यकार की धरोहरें 'दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में सहेजी जा रही हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि साहित्य का एक युग यहां पर जीवित है।
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दुष्यंत कुमार ने अमिताभ को लिखे इस पत्र में कहा, 'किसी फिल्म आर्टिस्ट को पहली बार खत लिख रहा हूं। वह भी 'दीवार' जैसी फिल्म देखकर, जो मानवीय करुणा और मनुष्य की सहज भावुकता का अंधाधुंध शोषण करती है।' कवि और शायर ने अमिताभ को याद दिलाया, 'तुम्हें याद नहीं होगा। इस नाम का एक नौजवान इलाहाबाद में अक्सर बच्चन साहब के पास आया करता था, तब तुम बहुत छोटे थे। उसके बाद दिल्ली के विलिंगटन क्रेसेंट वाले मकान में आना-जाना लगा रहा। लेकिन तुम लोगों से संपर्क नहीं रहा। दरअसल, कभी जरूरत भी महसूस नहीं हुई। मैं तो बच्चनजी की रचनाओं को ही उनकी संतान माने हुए था।'
दुष्यंत कुमार ने लिखा, 'मुझे क्या पता था कि उनकी एक संतान का कद इतना बड़ा हो जाएगा कि मैं उसे खत लिखूंगा और उसका प्रशंसक हो जाऊंगा।' दुष्यंत कुमार का निधन 30 दिसम्बर सन 1975 में सिर्फ 42 वर्ष की अवस्था में हो गया। दुष्यंत ने केवल देश के आम आदमी से ही हाथ नहीं मिलाया उस आदमी की भाषा को भी अपनाया और उसी के द्वारा अपने दौर का दुख-दर्द गाया।