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बीमारों की दवा ही बंद, पैरामेडिकल स्टॉफ की भारी कमी
अमित यादव की स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के छह महीने पूरे हो चुके हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्वेत पत्र के माध्यम से अपनी उपलब्धियां भी गिना दी हैं, लेकिन इसमें स्वास्थ्य विभाग को लेकर कोई विशेष उल्लेख नहीं किया गया है। बहरहाल, स्थिति यह है कि सूबे के सरकारी अस्पतालों में तीन महीने से दवाओं की भारी कमी चल रही है। अस्पतालों में मिलने वाली सरकारी दवाओं की लिस्ट से 3000 दवाओं की कटौती कर दी गई है। अब सूबे के अस्पतालों में मरीजों को केवल 1100 दवाइयां ही मुफ्त मिल रही है।
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बच्चों को मजबूरी में टिकिया खानी पड़ रही है। कई महत्वपूर्ण कैल्शियम दवाएं भी सरकारी स्टोरों में नहीं है। प्रदेश में करीब 8000 चिकित्सकों व 20,000 पैरामेडिकल स्टॉफ की भारी कमी है। वहीं दूसरी ओर दवाओं की लिस्ट में भारी कटौती से स्वास्थ्य सेवाओं पर बुरा असर पड़ा है। तीन हजार दवाओं की कटौती के साथ ही अस्पतालों में दवाओं की खरीद वाली आरसी लिस्ट (रेट कांट्रेक्ट) में भी सरकार ने कटौती कर दी है। दवाओं को लेकर नई आरसी जारी हो गई है। इसमें से 165 दवाओं को बाहर कर दिया गया है। अब नई सूची में महज 185 दवाएं ही बची हैं।
छोटे बच्चे मजबूरी में खा रहे टिकिया
दवाओं में कटौती होने का बड़ा असर छोटे बच्चों पर पड़ा है। पैरासिटामॉल सीरप व कैल्शियम की दवाएं अस्पतालों में नहीं मिल रही हैं। नियमानुसारपांच साल तक के छोटे बच्चों को चिकित्सक टिकिया लिखने से परहेज करते हैं, लेकिन इन दिनों सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों को मजबूरी में टिकिया लिखना पड़ रहा है। कई महत्वपूर्ण सीरप सरकारी स्टोरों पर नहीं मिल रहा है। दवाओं में कटौती का बड़ा असर सूबे के गरीब छोटे बच्चों पर पड़ा है।
आरसी में कर दिया खेल
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की खरीद आरसी के हिसाब से होती है। प्रदेश सरकार द्वारा जारी आरसी की लिस्ट में दवाओं के फॉर्मूले होते हैं। इसमें ही कंपनी का नाम भी तय होता है। पहले इस सूची में करीब 350 दवाओं को शामिल किया गया था। अब नई सूची में महज 185 दवाएं ही हैं। इसमें कुछ दवाएं नई हैं तो कई महत्वपूर्ण दवाएं बाहर हो चुकी हैं। इससे हड्डी के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है। हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम बेहद जरूरी होता है मगर उसे ही बाहर कर दिया गया है।
जीएसटी ने बढ़ाई मुश्किलें
सरकारी अस्पतालों को दिए जाने वाले बजट में कटौती, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में बढ़े कर और आपूॢतकर्ता एजेंसियों द्वारा दवा की आपूर्ति न किए जाने से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के अस्पतालों में दवाओं की भारी किल्लत हो गई है।
519 करोड़ का बजट
यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि हमें 519 करोड़ रुपये का बजट मिला है। तीन अगस्त को ढाई सौ करोड़ रुपये सरकारी अस्पतालों के लिए जारी कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि मुझे व्यवस्था बदलने के लिए 10 महीने का समय चाहिए। काम आपको खुद दिखने लगेगा।
बजट कम होने से दिक्कतें
लखनऊ के केजीएमयू समेत दूसरे अस्पतालों में मरीजों का दबाव बढऩे के बावजूद बजट घट गया है। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। बजट कम होने से मरीजों की दिक्कतें बढ़ी हैं। केजीएमयू को कंटिन्जेंसी फंड पिछले साल करीब 99 करोड़ रुपये मिला था। इस साल 69 करोड़ रुपये मिले हैं। बलरामपुर अस्पताल में 2015-16 में दवाओं के मद में 19 करोड़ रुपये मिले थे जो 2016-17 में घटकर 17 करोड़ रुपये रह गया।
सरकार के 100 दिन पूरे होने पर 3000 दवाओं की कटौती
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बीते 27 जून को 100 दिन पूरे कर चुकी है। नई सरकार के 100 दिन पूरा होने के बाद से ही गरीब मरीजों की ग्रहदशा खराब हो गई। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने सरकारी अस्पतालों में फ्री मिलने वाली दवाओं की सूची मंगाकर उसमें 3000 दवाओं की कटौती कर दी। स्वास्थ्य मंत्री के इस कदम से सरकारी लिस्ट में अब मात्र 1100 दवाइयां ही बची हैं।
पिछले साल एडीएल में थी 4000 दवाइयां
पिछले साल एसेनशियल ड्रग लिस्ट(एडीएल) में करीब 4000 दवाइयां थीं, लेकिन इस वर्ष का आंकड़ा 1100 हो गया है। इसके अलावा आरसी लिस्ट में भी पहले से कमी आई है। पहले आरसी लिस्ट में करीब 350 दवाइयां थीं, लेकिन अब केवल सूची में 185 दवाइयां ही रह गयी हैं।
नई व्यवस्था लागू होने में लगेगा एक साल
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवाओं व मेडिकल उपकरणों की खरीद में होने वाले खेल को खत्म करने के लिए योगी सरकार ने हाल में ही नया कदम उठाया है। अब जिला स्तर पर मेडिकल से जुड़े कोई भी सामान नहीं खरीदे जा सकेंगे। यूपी मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन को इसका जिम्मा मिल गया है। इस कारपोरेशन का एमडी आईएस अधिकारी होगा। यह कारपोरेशन केंद्रीय स्तर पर दवाओं और मेडिकल उपकरणों की खरीद करेगा।
केंद्र स्तर पर दवाओं व मेडिकल उपकरणों की खरीद पर नजर होने से सीएमओ स्तर पर होने वाले खेल पर अंकुश लग सकेगा। अस्पतालों में मरीजों को दवाओं के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा, लेकिन इस नई व्यवस्था को लागू होने करीब एक साल समय लगना तय है। इसका मतलब यूपी में अभी गरीब मरीजों के बुरे दिन नहीं फिरने वाले हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
हम लोगों को जैसा निर्देश मिलता है वैसे काम करते हैं। दवाओं की लिस्ट में कटौती के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की सुविधाओं के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ. जी.एस.वाजपेयी, सीएमओ
बच्चों के लिए जरूरी सीरप पैरासिटामॉल के बारे में पूछने पर बताया कि मुझको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने स्टोर प्रभारी से इस संदर्भ में बात करने की सलाह दी, लेकिन प्रभारी ने भी नहीं पता होने का गैरजिम्मेदाराना जवाब दिया।
डॉ. ऋषि सक्सेना, सीएमएस, बलरामपुर अस्पताल
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