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हिंदी दिवस: लौट आई अपनी हिंदी साथ लिए

tiwarishalini
Published on: 15 Sept 2017 3:32 PM IST
हिंदी दिवस: लौट आई अपनी हिंदी साथ लिए
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Veena singh

चलते-चलते उम्र ढलान पर आ गई। बच्चे अपने-अपने काम में लग गये पति अपने विजनेस और यात्राओं में व्यस्त रहते। मैं पूरे दिन अकेली और खाली। भला करती भी क्या? कभी टीवी देखती कभी समय काटने के लिए किचन के डिब्बे पोछती रहती। बराबर काम करने की आदत जो ठहरी सो पूरे दिन ऊहापोह में रहती कि क्या करूं? एक दिन मेरी प्रिय सखी मिलने आई मेरी मनोदशा देख मुझे यह बात समझाई। मुझे मेरी ताकत मेरी हिन्दी मुझे याद दिलाई। बोली याद कर तू किसी जमाने में हिन्दी की सुपर शिक्षिका थी टॉप की हिन्दी पढ़ाती थी।

अब भी पढ़ा सकती है तू नौकरी कर ले। मुझे उसकी बात जम गई। अगले ही दिन सुबह तैयार हो अपना पुराना लम्बा सा बैग टांग कर एक पास ही के विद्यालय में पहुंची और अध्यापन कार्य करने की इच्छा जताई। रंग-बिरंगे कपड़ों से सुसज्जित वहां के प्रिंसिपल से साक्षात्कार हुआ, वे पान की पीक छोड़ते हुए बोले मैडम हिन्दी हमारे यहां पढ़ाई नहीं जाती और दूसरे विषयों के लिए अंग्रेजी फर्राटेदार आना आवश्यक है सब इंगलिश मीडियम है। मैंने कहा, पर मैं तो केवल हिन्दी ही जानती हूं अंग्रेजी का हमें जरा भी भान नहीं। वे बाहर का रास्ता दिखाते हुए बोले सॉरी जी।

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वहां से विदा ली फिर सोचा कोई दूसरा विद्यालय देख लूंगी। गली-गली में चाट के खोमचे की तरह जगह-जगह तो विद्यालय खुले हुए हैं। नौकरी मिल ही जाएगी। कहीं तो हिन्दी पढ़ाई जाती होगी। अगले दिन दूसरे विद्यालय पहुंची वहां भी वही समस्या। फिर तीसरे दिन तीसरे स्कूल, चौथे दिन चौथे, इसी तरह पूरे पन्द्रह दिनों में पन्द्रह विद्यालयों के चक्कर लगा डाले पर हिन्दी के लिए जगह न मिली। अब तो मैं फिकरमंद हो चली कि यह हिन्दी के साथ कैसा दुराभाव। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। सोलहवें दिन कुछ आशा जागी।

जैसे ही सोलहवें प्रिंसिपल ने कहा, मैडम आप नौकरी कर सकती हैं हमारे यहां हिन्दी पढ़ाई जाती है। हमारी बांछें खिल उठी। लेकिन हमारी कुछ शर्तें हैं। कैसी शर्तें? हमारी खिली बांछे गुल होने लगी। वे समझाते हुए बोले, पहली शर्त आपको अपना हुलिया बदलना होगा यहां ये देहाती ताना-बाना नहीं चलेगा। मतलब यहां स्टाइल में आने का। एकदम हाई-फाई दिखने का। मैं मन ही मन बुदबुदाई अब बुढ़ापे में स्टाइल। नौकरी करनी ही थी सो हां में सिर हिलाना ही पड़ा। सोचा आज ही ब्यूटी पार्लर जाऊंगी थोड़ा रंग-रोगन करा लूंगी। दूसरी शर्त-स्कूल के अन्दर हिन्दी बोलना मना है। मैं चौंककर बोली, पर मैं हिन्दी अंग्रेजी में कैसे पढ़ाऊंगी? वे फिर समझाने लगे देखिए आप हिन्दी तो हिन्दी में ही पढ़ाइए पर पढ़ाने के अलावा सारी बातचीत इंगलिश में ही करिएगा। यहां हिन्दी बोलने वाले पर फाइन लग जाता है।

मुसीबत तो बहुत बड़ी थी पर नौकरी भी जरूरी थी। मैंने कहा मंजूर है सर। मैंने विचार किया आज ही इंगलिश डिक्शनरी खरीद लूंगी और हिन्दी पढ़ाने के लिए अंग्रेजी पढूंगी। चलो इसी बहाने एक नई भाषा सीख लंूगी। बच्चों की बात मान कर पहले ही अंग्रेजी सीख ली होती तो आज यह दिन ना देखना पड़ता। पर मैं तो अपनी हिन्दी से चिपकी रही। तीसरी शर्त सुन मैं अपने डुबकी लगाते ख्यालों से बाहर निकली।

वे बोले, आपको अन्य टीचरों की अपेक्षा कम वेतन दिया जायेगा। मैंने हड़बड़ा कर पूछा क्यों? वे बोले क्योंकि आप हिन्दी की टीचर हैं। हिन्दी की अब कोई बैल्यू नहीं है न कोई पढऩा चाहता है और न हम पढ़ाना चाहते हैं। वह तो पाठ्यक्रम में है तो साथ में घसीटना पड़ता है। अब मेरे सब्र का बांध टूट चुका था मैं भडक़ उठी- सर आप मेरा और मेरी हिन्दी का अपमान कर रहे हैं। मैं अपनी प्राणों से प्यारी मातृभाषा का और अपमान नहीं सह सकती। मुझे नहीं करनी ऐसी नौकरी। जिसमें अपनी हिन्दी की आहुति देनी पड़े और मैं अपनी हिन्दी के साथ अपने घर वापस आ गई।



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tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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