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पितरों के प्रति श्रद्धा के दिन

भारतीय जीवन संस्कृति की अति महत्वपूर्ण विशेषता है अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान की भावना। इसी सम्मान की अभिव्यक्ति के लिए हमारी सांस्कृति यात्रा में पितृपक्ष के

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Published on: 1 Sept 2017 1:48 PM IST
पितरों  के प्रति श्रद्धा के दिन
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lucknow: भारतीय जीवन संस्कृति की अति महत्वपूर्ण विशेषता है अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान की भावना। इसी सम्मान की अभिव्यक्ति के लिए हमारी सांस्कृति यात्रा में पितृपक्ष के रूप में वर्ष के पंद्रह दिन एक वार्षिक पड़ाव के रूप में आते है।इन दिनों में भारत की संस्कृति में विशवास करने वाला प्रत्येक मनुष्य अपने पितरों को याद करता है।

यह अद्भुत परंपरा है जो सृष्टि के साथ ही विधान के रूप में चली आ रही है। सृष्टि में इस पृथ्वी नाम के उपग्रह पर मनुष्य जो जीवन व्यतीत करता है उसके बाद भी उसकी जीवन यात्रा चलती रहती है। सूक्ष्म रूप ग्रहण करने के बाद पृथ्वी वाला शरीर छोड़ चुके प्राणी की उस अनंत यात्रा को सफल और सुगम बनाने के लिए आवश्यक होता है कि उसके वंशज उसे श्रद्धा और सम्मान के साथ उस यात्रा के योग्य सुविधा संपन्न करे।

पितृ पक्ष का आखिरी दिन ‘सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या’ के रूप में जाना जाता है, पितृ पक्ष २०१७ का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए हमारी सभ्यता ने प्रति वर्ष १५ दिन निर्धारित किया है। इन दिनों में श्रद्धापूर्वक पितरों को याद कर उनके लिए विधि पूजन, पिंड दान और तर्पण का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है।

पितर दो प्रकार के होते हैं-

आजान पितर : जिन पितरों की अंतिम क्रिया और संस्कार पूरी विधि और श्रद्धापूर्वक की जाती है वे आजान पिटर कहलाते हैं। इन पितरों को अपने वंशजों से पूर्ण श्रद्धा मिलती है और ये तृप्त होकर आजान पितर बन कर स्थापित होते हैं। वह से फिर अपने अपने प्रारब्ध के अनुसार इनकी मुक्ति या पुनर्जन्म की व्यवस्था बनाती है। इन्हें अपने वंशजों से किसी प्रकार की अतृप्ति नहीं होती।

मत्र्यपितर : वे पितर जिनका श्रद्धा कर्म और अंतिम क्रिया विधि पूर्वक नहीं होती है वे सदैव अतृप्त होकर मत्र्य पितर के रूप में भटकते रहते हैं। इनको आजान बनाने का अवसर नहीं मिल पाता और ये सदैव अपने वंशजों की प्रतीक्षा में रहते हैं। पितरलोक में इनको स्थान ही नहीं मिलता। ये पितरलोक में प्रवेश के लिए अपने वंशजों द्वारा श्राद्ध कर्म किये जाने की हमेशा प्रत्यक्ष करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार जब मनुष्य का अंतिम संस्कार विधिपूर्वक करने के बाद उसकी संतान के द्वारा पिंडोदक और पिंडछेदन की क्रिया सम्पन करा दी जाती है तब उस आत्मा को आजानपितर के रूप में पितरलोक में स्थान मिल जाता है और अपने वंशजों से उसकी कोई अन्य अपेक्षा शेष नहीं रह जाती। पितरों के प्रति इसी श्रद्धा की पूर्ती के लिए शास्त्रों ने विधान तय कर इस कार्य के लिए उत्तर भारत में गया जी नामक स्थान को निर्धारित किया है जहा प्रतिवर्ष पितृपक्ष में लोग अपने पितरों को अपनी श्रद्धा पूर्ण कर आजानपितर के रूप में पितरलोक में स्थापित करने जाते हैं।

पूजा से ही पितृ दोष से मुक्ति : विवाह के कई वर्षों बाद भी संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो, वंश वृद्धि नहीं हो पा रही हो, यदि आपके परिवार में अस्थिरता का वातावरण हो, परिवारजन मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं, घर में कलह क्लेश का वातावरण हमेशा बना रहता है, यदि आपको पग-पग पर बाधा का सामना करना पड़ रहा है, यदि आप किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है तो मत्स्यपुराण का संकेत यह कहता है कि आपके घर में पितृ दोष है यानि आपके घर के पितृ अतृप्त हैं।

क्या आप अपने घर के पितरों की शांति के लिए साल में एक बार आने वाले पितृ पक्ष में पिंड दान, तर्पण और उनके निमित्त किये जाने वाले श्राद्ध श्रदा पूर्वक करते हैं? जिस तरह आप अपने और अपने परिवार जनों के जन्म दिन मनाते हैं, शादी की साल गिरह बड़ी धूम धाम से मनाते हैं, साल में आने वाले कई त्योहारों को श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं और लाखों रुपये खर्च कर देते हैं पर क्या आप उतने ही धूम धाम से साल में सिर्फ १५ दिन चलने वाले पितृ पक्ष पर्व में अपने पितरों को, आपके उन परिजनों को जो अब इस दुनिया में नहीं हैं के नाम से श्राद्ध करते हैं, क्या आप पितृ पक्ष में पिंड दान और तर्पण करके ब्रह्मणें को भोजन कराते हैं?

जो मनुष्य अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार, श्रद्धा, तर्पण आदि विधिपूर्वक न करके उसे सिर्फ व्यर्थ व औपचारिक समझते हैं उन्हें पैतृक प्रकोप से शारीरक कष्ट, आंतरिक पीड़ाएं, बुरे स्वप्न, या स्वप्न में पूर्वजों का दर्शन, संतानहीनता, अकाल मृत्यु, धन, हानि, परिवार में कलह, दुर्घटना व अपमान प्राप्त होता है। उस घर व उस परिवार का किसी प्रकार का कल्याण नहीं होता है। वही जो मनुष्य पितृ पक्ष में तत्परता से श्राद्ध आदि कर्म करते हैं, उनके पूर्वजों को गति से सुगति प्राप्त होती है। परिणमत: उनकी (श्राद्ध) कर्ता की प्रगति व उन्नति होती है। सुख, शांति, यश, वैभव, स्वस्थ जीवन, पुत्र, धन आदि उसे प्राप्त होते हैं।

तीन ऋणों से मुक्ति : पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सदगृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। वे उच्च शुद्ध कर्मों के कारण अपनी आत्मा के भीतर एक तेज और प्रकाश से आलोकित होते हैं।

मृत्यु के उपरांत भी श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक, विष्णुलोक और ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। भारतीय वैदिक वांङमय के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात तीन प्रकार के ऋण होते हैं। पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी १६ श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं, जिनमें हम उपरोक्त तीनों ऋणों से मुक्त हो सकते हैं।

महाभारत के प्रसंग के अनुसार, मृत्यु के उपरांत कर्ण को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इनकार कर दिया था। कर्ण ने कहा कि मैंने तो अपनी सारी सम्पदा सदैव दान-पुण्य में ही समर्पित की है, फिर मेरे ऊपर यह कैसा ऋण बचा हुआ है? चित्रगुप्त ने जवाब दिया कि राजन, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है, लेकिन आपके ऊपर अभी पितृऋण बाकी है।जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा। इसके उपरांत धर्मराज ने कर्ण को यह व्यवस्था दी कि आप १६ दिन के लिए पुन: पृथ्वी में जाइए और अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्धतर्पण तथा पिंडदान विधिवत करके आइए। तभी आपको मोक्ष यानी स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी। जो लोग दान श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं करते, माता-पिता और बड़े बुजुर्गों का आदर सत्कार नहीं करते, पितृ गण उनसे हमेशा नाराज रहते हैं। इसके कारण वे या उनके परिवार के अन्य सदस्य रोगी, दुखी और मानसिक और आर्थिक कष्ट से पीडि़त रहते है।

पितृपक्ष 2017 तारीख

05 सितम्बर (मंगलवार) पूर्णिमा श्राद्ध

06 सितम्बर (बुधवार) प्रतिपदा श्राद्ध

07 सितम्बर (बृहस्पतिवार) द्वितीया श्राद्ध

08 सितम्बर (शुक्रवार) तृतीया श्राद्ध

09 सितम्बर (शनिवार) चतुर्थी श्राद्ध

10 सितम्बर (रविवार) महा भरणी, पञ्चमी श्राद्ध

11 सितम्बर (सोमवार) षष्ठी श्राद्ध

12 सितम्बर (मंगलवार) सप्तमी श्राद्ध

13 सितम्बर (बुधवार) अष्टमी श्राद्ध

14 सितम्बर (बृहस्पतिवार) नवमी श्राद्ध

15 सितम्बर (शुक्रवार) दशमी श्राद्ध

16 सितम्बर (शनिवार) एकादशी श्राद्ध

17 सितम्बर (रविवार) द्वादशी श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध

18 सितम्बर (सोमवार) मघा श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध

19 सितम्बर (मंगलवार) सर्वपित्रू अमावस्या



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