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बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी के साथ हुए समझौते पर कांग्रेस में उठे सवाल
कांग्रेस और जन अधिकार पार्टी के बीच आज हुए गठबंधन को लेकर अभी से तरह-तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कोई खास जनाधार वाली पार्टी न होेने के बावजूद जन अधिकार पार्टी के साथ किए गए 7 सीटों के गठबंधन की बात को पार्टी कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं।
लखनऊ : कांग्रेस और जन अधिकार पार्टी के बीच हुए गठबंधन को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कोई खास जनाधार वाली पार्टी न होेने के बावजूद जन अधिकार पार्टी के साथ किए गए 7 सीटों के गठबंधन की बात को पार्टी कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं। दरअसल जन अधिकार पार्टी वही पार्टी है जिसके संस्थापक बसपा सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा रहे है।
बाबू सिंह कुशवाहा इसके पहले 2012 में जब भाजपा में शामिल हुए थे तब भी उनको लेकर भाजपा के अंदर खूब अन्र्तकलह हुई थी। बाद में बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी छोडनी पडी थी। 2013 में बाबू सिंह कुशवाहा के भाई को समाजवादी पार्टी ने अपने साथ लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को गाजीपुर से पार्टी का प्रत्याशी बनाया था। हांलाकि शिवकन्या चुनाव हार गई . इसके बाद बाबू सिंह कुशवाहा के परिजनों ने सपा से अलग होकर अपनी अपनी जन अधिकार अधिकार पार्टी बनाकर अलग चलने का फैसला लिया। इस समय बाबू सिंह कुशवाहा के परिवार के अन्य सदस्य आईपी कुशवाहा महासचिव के तौर पर पार्टी का कामकाज देख रहे है।
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जन अधिकार पार्टी के महासचिव आईपी सिंह ने बताया कि चंदौली से बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा, बस्ती से चन्द्रशेखर सिंह, झांसी से शिवशरण सिंह, एटा से सूरज सिंह शाक्य, तथा फतेहपुर से नेकराम वर्मा को पहली सूची में अपना प्रत्याशी घोषित किया गया है। सूची में सलेमपुर सीट से भी भरत चौहान को प्रत्याशी बनाया गया है। पार्टी आईपी कुशवाहा ने बताया कि कांग्रेस से गठबन्धन में अब सलेलमपुर की जगह बस्ती को शामिल किया गया है।
रविवार को जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने जन अधिकार पार्टी के साथ 7 सीटों के गठबन्धन की घोषणा की तो पार्टी कार्यकर्ता हतप्रभ रह गए।
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बब्बर ने पहले अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) के साथ दो सीटे गोंडा और पीलीभीत देने की बात कही। इसके बाद बब्बर ने कहा कि जिस तरह बसपा-सपा-रालोद गठबन्धन ने अमेठी और रायबरेली सीट पर अपने प्रत्याशी न उतारने की घोषणा की है तो कांग्रेस ने भी देश के बडे दल होने के नाते और फासीवादी ताकतों को रोकने के लिए इस गठबन्धन के लिए 7 सीटे छोडने का फैसला लिया है। जिसमें मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद के अलावा वह सीट, जहां मायावती चुनाव लडेगी, तथा दो अन्य सीटे, जहां जयन्त चैधरी तथा चै अजित सिंह चुनाव लडेगें, वह सीटे छोडी गयी हैं। लेकिन जब राजबब्बर ने एक जनाधार विहीन पार्टी के लिए सात सीटे छोडने की बात कही तो कार्यकर्ता हतप्रभ हो गए।
उन्होंने बताया कि कि इन सीटों पर जन अधिकार पार्टी अपने सिम्बल पर तथा दो सीटों पर जन अधिकार पार्टी के प्रत्याशी कांग्रेस के सिम्बल पर चुनाव लड़ेंगे। इसके बाद पार्टी कार्यालय में तरह-तरह की चचाएं शुरू हो गयी। पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि उम्मीद जताई जा रही थी कि गठबन्धन शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से होगा लेकिन यहां तो कुछ अलग ही सुनने को मिल रहा है।