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काशी का कुरुक्षेत्र: यहां तो हर प्रत्याशी लड़ रहा है पीएम मोदी से

raghvendra
Published on: 3 May 2019 1:17 PM IST
काशी का कुरुक्षेत्र: यहां तो हर प्रत्याशी लड़ रहा है पीएम मोदी से
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी वाराणसी संसदीय सीट पर हर प्रत्याशी पीएम नरेन्द्र मोदी से ही लड़ रहा है। वैसे प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में ना उतरने से मुकाबला वैसा दिलचस्प नहीं हो सका जैसी कि उम्मीद की जा रही थी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि विपक्ष ने मोदी को वाकओवर दे दिया है। आखिरी वक्त पर सपा प्रत्याशी तेज बहादुर यादव का नामांकन खारिज होने के बाद काशी के कुरुक्षेत्र की तस्वीर साफ हो गई है।

बीजेपी प्रत्याशी मोदी के मुकाबले कांग्रेस ने पांच बार के विधायक अजय राय पर भरोसा जताया है। वहीं सपा की ओर से शालिनी यादव के पास साइकिल दौड़ाने की जिम्मेदारी रहेगी। चुनावी अखाड़े में हर किसी के अपने-अपने दावे हैं। मोदी ने रोड शो के जरिए अपनी ताकत पहले ही दिखा दी है।

बीजेपी को भरोसा है कि बनारस की जनता एक बार फिर से मोदी को अपना सांसद चुनेगी। कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय भी साल 2014 में मिली हार का हिसाब चुकता करना चाहते हैं। वहीं सपा-बसपा गठबंधन पहली बार काशी में अपना खाता खोलने की कोशिश में जुटा है।

मोदी ने पहले ही दिखा दी ताकत

लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहलेचर्चा थी कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी के साथ दक्षिण भारत के किसी शहर से भी चुनाव लड़ेंगे। कोई कहता कि उड़ीसा की पुरी सीट से चुनाव लड़ेंगे तो कोई कहता कर्नाटक की किसी सीट से। लेकिन चुनाव आते-आते खुद मोदी ने साफ कर दिया कि वे बनारस छोडक़र कहीं नहीं जाने वाले। बनारस के प्रति उनके इस प्यार को यहां के लोगों ने भी पसंद किया। वैसे भी बतौर सांसद नरेंद्र मोदी का बनारस से अटूट रिश्ता बन चुका है। पिछले पांच सालों में मोदी बनारस के 18 दौरे कर चुके हैं। मोदी जब भी बनारस आते, कुछ न कुछ गिफ्ट देकर जाते। उन्हें अब बनारस के लोगों से रिटर्न गिफ्ट की आस है। मोदी ने 26 अप्रैल को नामांकन से पहले लंका से दशाश्वमेध घाट तक 6 किमी का रोड शो किया। मोदी के रोड शो के दौरान बनारस की सडक़ों पर कैसी तस्वीर थी, यह हर कोई देख चुका है। मोदी समर्थकों की मानें तो जीत उसी दिन हो गई, जब मोदी बनारस की सडक़ों पर रोड शो के लिए निकले।

बीजेपी इस बार जीत का फासला बढ़ाना चाहती है। बीजेपी अपने मिशन में कितना कामयाब हो पाएगी, यह तो तो 23 मई को ही पता चलेगा। लेकिन बनारस के चुनावी अखाड़े में बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है। समर्थक जोश से लबरेज दिख रहे हैं तो नेता निश्चिंत नजर आ रहे हैं। हर किसी को मोदी मैजिक पर भरोसा है। बीजेपी नेता संजय सोनकर कहते हैं किविरोधी चाहे कोई हो, मोदी को टक्कर नहीं दे सकता।

बीजेपी अपने विकास कार्यों के भरोसे जनता के बीच में है और जनता फिर से पार्टी को सिर आंखों पर बैठाना चाहती है। बीजेपी नेता धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि मोदी के मुकाबले कोई प्रत्याशी है ही नहीं। मोदी को हर वर्ग का व्यापक समर्थन मिल रहा है। हर किसी को काशी में मोदी का काम दिख रहा है। विपक्ष भी इससे इनकार नहीं कर पा रहा। देखने वाली बात बस यह होगी कि मोदी कितनी बड़ी मार्जिन से चुनाव जीतते हैं।

गठबंधन के मंसूबे पर आयोग ने पानी फेरा

पीएम नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए सपा-बसपा गठबंधन ने इस बार बड़ी तैयारी की थी लेकिन चुनाव आयोग ने उसके मंसूबे पर पानी फेर दिया। मोदी के मुकाबले सपा ने बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को अंतिम वक्त में अपना प्रत्याशी बनाकर सबको चौंका दिया लेकिन चौबीस घंटे के अंदर ही तेज बहादुर चुनाव आयोग के चक्रव्यूह में फंस गए। उनको चुनाव आयोग की ओर से दो नोटिस दी गई थी। सबसे पहले उन्हें ३० अप्रैल को दोपहर तीन बजे नोटिस दिया गया। इसमें सेक्शन 9 के तहत पूछा गया कि क्या आपकी बर्खास्तगी भ्रष्टाचार के कारण हुई है? नोटिस मिलते ही तेज बहादुर और उनकी टीम इसका जवाब तैयार करने में जुट गई। इसी बीच शाम सवा छह बजे उन्हें एक और नोटिस थमा दिया गया जो सेक्शन 33 के तहत था। इसमें प्रावधान है कि अगर केंद्र या राज्य सरकार का कर्मचारी चुनाव लड़ता है और उसकी बर्खास्तगी पांच साल के अंदर हुई है तो उसे नामांकन के दौरान बर्खास्तगी का प्रमाणपत्र उपलब्ध कराना होता है। तेज बहादुर ने यह प्रमाणपत्र नामांकन के दौरान उपलब्ध नहीं कराया था।

अब शालिनी चलाएंगी साइकिल

तेज बहादुर यादव के नामांकन रद्द होने के बाद शालिनी यादव सपा की अधिकृत उम्मीदवार बन गई हैं। हालांकि उनके नाम पर सपा के अंदर काफी विरोध है। सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यमंत्री सुरेंद्र पटेल ने खुलकर शालिनी के नाम का विरोध किया है। कुछ अन्य नेता भी शालिनी के नाम पर सहमत नहीं है। यही कारण था कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अंतिम वक्त पर तेज बहादुर यादव पर दांव खेला था। शालिनी यादव कुछ दिन पहले ही कांग्रेस छोडक़र सपा में आईं थीं। मेयर के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उन्हें सवा लाख वोट हासिल हुए थे। शालिनी यादव राज्यसभा के पूर्व उपसभापति और सांसद श्याम लाल यादव की बहू हैं। पेशे से फैशन डिजाइनर शालिनी कांग्रेस में पिछले कुछ दिनों से हाशिए पर चल रही थीं। टीम प्रियंका में उन्हें जगह नहीं मिली तो उन्होंने सपा का रुख कर लिया।

प्रियंका के नाम पर राजी नहीं थी मायावती

माना जा रहा था कि मोदी को घेरने के लिए विपक्ष एक संयुक्त उम्मीदवार उतारेगा। कांग्रेस की ओर से प्रिंयका गांधी के चुनाव मैदान में उतरने की जोरदार चर्चा थी। खुद प्रियंका गांधी दो-दो बार अपनी इच्छा जता चुकी थीं, राहुल गांधी ने भी सस्पेंस क्रिएट किया लेकिन अंतिम वक्त पर बात नहीं बन पाई। बताया जाता है कि अखिलेश तो प्रियंका के नाम पर राजी थे, लेकिन मायावती ने साफ इनकार कर दिया। वह नहीं चाहती थीं कि यूपी की सियासत में प्रियंका गांधी का कद बढ़े। अगर प्रियंका गठबंधन के समर्थन से मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ती तो मुकाबला रोमांचक होना तय था। ऐसे में अगर प्रियंका हार भी जातीं तो उन्हें सियासी शहीद का दर्जा मिलता और मायावती यही नहीं चाहती थीं। प्रियंका भांप गई थीं कि अगर गठबंधन के बगैर वह चुनाव मैदान में उतरती हैं तो बड़ी हार का खतरा बना रहेगा जो उनके पॉलिटिकल कॅरियर के लिए ठीक नहीं होगा। इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने प्रियंका को न लड़ाने का फैसला किया। अगर प्रियंका गठबंधन के साथ मोदी से मुकाबला करतीं तो मुकाबला कांटे का हो सकता था।

कांग्रेस को अजय राय पर भरोसा

प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव नहीं लडऩे की सूरत में कांग्रेस ने स्थानीय नेता अजय राय पर भरोसा दिखाया। अजय राय 2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। उस दौरान उनकी जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस को उम्मीद है कि बदले चुनावी हालात में अजय राय कड़ी टक्कर दे सकते हैं। इसके लिए कांग्रेस सियासी बिसात बिछाने की तैयारी कर रही है। आने वाले दिनों में कांग्रेस की ओर से 16 स्टार प्रचारक मोदी के खिलाफ प्रचार करते नजर आएंगे। पांच बार विधायक रह चुके अजय राय पहले बीजेपी में ही थे। 2014 के चुनाव में 75,614 वोट पाकर वे तीसरे नंबर पर थे। अजय राय का नाम 1996 में उस समय चर्चा में आया था जब उन्होंने कोलअसला सीट से सीपीआई के दिग्गज ऊदल को पटखनी दी थी।

ऊदल नौ बार से विधायक थे और उस समय अजय राय सरीखे नौजवान से उनका हारना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। इसके बाद वह इस क्षेत्र से लगातार विधायक बनते रहे। भाजपा सरकार में राज्यमंत्री रह चुके अजय राय के खिलाफ कई मामले भी दर्ज हैं जिससे उनकी छवि बाहुबली की है। 2009 में लोकसभा का टिकट न मिलने पर उन्होंने भाजपा छोड़ दी। भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी के मुकाबले सपा टिकट पर वह तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद अजय राय निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कोलअसला विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़े और चौथी बार विधानसभा पहुंचे। फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। नये परिसीमन के बाद भी वह कांग्रेस के टिकट पर 2012 में पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।

मोदी के खिलाफ उम्मीदवारों की बाढ़

मोदी के खिलाफ कई ऐसे उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिनकी वजह से वाराणसी का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। अब कुल 31 उम्मीदवार मैदान में हैं जबकि नामांकन करने वालों की संख्या 100 के ऊपर थी। नामांकन पत्रों की जांच में खामियां पाए जाने के बाद अधिकांश उम्मीदवारों का पर्चा खारिज कर दिया। नामांकन करने वाले तेलंगाना और तमिलनाडु के हल्दी किसान भी हैं। हल्दी बोर्ड और एमएसपी बढ़ाए जाने की मांग करते हुए ये किसान वाराणसी पहुंचे और मोदी के खिलाफ चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया। इसी तरह दिल्ली के बिजनेसमैन पीयूष नरुला भी नामांकन करने के लिए वाराणसी पहुंचे थे, लेकिन उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाई। नामांकन करने वालों में मोदी के हमशक्ल अभिनंदन पाठक, अर्थी बाबा, पूर्व हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद की बेटी हिना शाहिद, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से सुरेंद्र राजभर और निर्दलीय प्रत्याशी अतीक अहमद शामिल हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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