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जानें नवरात्र का गूढ़ रहस्य, ऐसे करें पूजा तो प्रसन्न होगी मां दुर्गा
लखनऊ: नवरात्र में साधक देवी के 9 रूपों की आराधना करते हैं। ये कटु सत्य है कि यदि बिना किसी स्वार्थ, त्याग और पूरी तरह से भक्ति में लीन होकर देवी की आराधना की जाए तो मनोवांछित फल प्राप्त होता है, जो सालभर की पूजा-पाठ से भी नहीं मिलता है। इन दिनों में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व होता है। दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक अध्याय का प्रत्येक मंत्र और श्लोक साधक की हर समस्या का समाधान करता है। वैसे तो साल में 4 बार नवरात्र होते हैं, जिनमें आषाढ़-माघ में गुप्त नवरात्र होता हैं तो चैत्र-आश्विन में खुले नवरात्र होते हैं। इस बार 8 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू होने जा रहा हैं।
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दुर्गा सप्तशती का पाठ
नवरात्र में शक्ति साधना और कृपा प्राप्ति का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है। दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के 700 श्लोक का एक भाग है। इसमें 13 अध्याय हैं जिसमें देवी चरित्र का वर्णन है। कवच, कीलक, अर्गला दुर्गा सप्तशती के तीन अंग और तीन रहस्य हैं। इसके अलावा और कई मंत्र है इसे पूरा करने से दुर्गा सप्तशती पाठ पूर्ण होता है।
आदिशक्ति की गाथा
मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच और पवित्र उपाय बताया है जो 'नव दुर्गा' कहलाई। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि से लेकर हर तरह के संकटों का निवारण के लिए किया जाता है। श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिवेणी हैं। ये देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। इस मंत्र से देवी स्तुति करे तो मनोरथ पूर्ण होते है।
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शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदशर्ने। ग्रहपीड़ासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम।
इस मंत्र को सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएं शांत और दूर हो जाती है। दु:स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाते है। ग्रहों से अक्रांत हुए बालकों के लिए देवी का माहात्म्य शांतिकारक है। देवी प्रसन्न होकर धार्मिक बुद्धि, धन सम्पदा प्रदान करती है।
स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगंधादिभीस्तथा ददाति वित्तं पुत्रांश्च मति धर्मे गति शु।
नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के बाद संकल्प लेकर दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप, दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष या तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पांच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ देवी के समक्ष रखें। इसका पूरे नवरात्र जाप करने से मनोकामना अवश्य पूरी होती है। अगर आपके पास समयाभाव हैं तो केवल 10 बार मंत्र का जाप प्रतिदिन करें, मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।