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क्या होता है लाइफ सपोर्ट सिस्टम जिस पर रखा गया था अटलजी को?
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज निधन हो गया। वे 93 साल के थे। उन्हें किडनी व यूरिनरी इंफेक्शन था। जिसके बाद से वह पिछले 9 हफ्तों से एम्स में भर्ती थे। उन्हें यहां पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम के ऊपर रखा गया था। गुरुवार शाम एम्स ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए उनकी मौत की जानकारी दी। 2009 में उन्हें स्ट्रोक आया था जिसके बाद उनकी सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो गई। बाद में उन्हें डिमेंशिया की बीमारी भी हो गई थी। मधुमेह से पीड़ित 93 वर्षीय अटल बिहारी का एक ही गुर्दा काम करता था। आइये जानते हैं लाइफ सपोर्ट सिस्टम और डिमेंशिया क्या है?
क्या है लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम
शरीर को स्वस्थ रखने में मौजूद अंग और इसकी कार्यप्रणाली अहम भूमिका निभाती है लेकिन जब ये अंग काम करना बंद या काफी कम कर देते हैं तो कई तरह की दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम की मदद ली जाती है। यह सिस्टम मरीज को जिंदा रखने के साथ उसे रिकवर करने में मदद करता है। लेकिन हर मामले में सफल हो ऐसा जरूरी नहीं। कुछ मामलों में बॉडी इस सिस्टम के बाद भी रिकवर नहीं हो पाती है।
किन अंगों में खराबी होने पर पड़ती है जरूरत
शरीर के कुछ अंगों में खराबी होने के कारण सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ती है, जैसे...
फेफड़े: निमोनिया, ड्रग ओवरडोज, ब्लड क्लॉट, सीओपीडी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, फेफड़ों में इंजरी या नर्व डिजीज के कारण फेफड़े में गंभीर बीमारी होने पर ऐसी स्थिति बनती है।
हृदय: अचानक काडियक अरेस्ट या हार्ट अटैक होने पर।
ब्रेन : ब्रेन स्ट्रोक होने या सिर में गंभीर इंजरी होने पर।
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लाइफ सपोर्ट कैसे देते हैं
मरीज की हालत बिगड़ने का कारण क्या है इसे ध्यान में रखते हुए लाइफ सपोर्ट दिया जाता है। मरीज को वेंटीलेटर पर रखकर सबसे पहले ऑक्सीजन दी जाती है ताकि हवा दबाव बनाते हुए फेफड़ों तक पहुंच सके। ऐसा निमोनिया होने या फेफड़ों के फेल्यर होने पर किया जाता है। इसमें एक ट्यूब को नाक या मुंह से लगाकर और दूसरा इलेक्ट्रिक पंप से जोड़ते हैं। कुछ मामलों में मरीज को नींद की दवा भी देते ताकि वह इस दौरान रिलैक्स फील कर सके।
जब हृदय काम करना बंद कर देता है तो इसे वापस शुरू करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए सीपीआर दिया जाता है ताकि ब्लड और ऑक्सीजन को पूरे शरीर में सर्कुलेट किया जा सके या इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है ताकि धड़कन नियमित हो सकें। इसके अलावा दवाइयां दी जाती हैं।
डायलिसिस भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा है। किडनी खराब होने या 80-90 फीसदी काम न करने पर डायलिसिस किया जाता है। इसकी मदद से शरीर में इकट्ठी हुईं जहरीली चीजों को फिल्टर करके बाहर निकाला जाता है। इसके साथ एक नली की मदद से पानी और पोषक तत्व शरीर में पहुंचाए जाते हैं।
लाइफ सपोर्ट सिस्टम से कब मरीज को हटाते हैं
दो स्थितियों में ही मरीज को सपोर्ट सिस्टम से हटाते हैं। पहली, जब उसमें उम्मीद के अनुसार सुधार दिखाई देता है और अंग काम करना शुरू कर देते हैं और मरीज को इसकी जरूरत नहीं होती। दूसरा, जब मरीज में सुधार की उम्मीद नहीं दिखती तो डॉक्टर्स परिजनों की सहमति से मरीज को सपोर्ट सिस्टम हटाते हैं। लेकिन अंत तक ट्रीटमेंट जारी रखते हैं।
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डिमेंशिया क्या है
अगर किसी इंसान की याद्दाश्त इतना कमजोर हो जाती है कि वह रोजमर्रा के काम करना भूल जाता है जैसे खाना खाया है या नहीं, किस शहर में है, तो वह डिमेंशिया से पीड़ित है। दिमाग के कुछ खास सेल्स खत्म होने लगते हैं, जिससे उस शख्स की सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है और बर्ताव में भी बदलाव आ जाता है। कई मामलों में उसके स्वभाव में काफी बदलाव देखा जाता है।
डिमेंशिया को दो कैटिगरी में बांटा जा सकता है- एक, जिसका बचाव या इलाज मुमकिन है और दूसरा उम्र के साथ बढ़ने वाला। पहली कैटिगरी में ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, स्मोकिंग, ट्यूमर, टीबी, स्लीप एप्निया, विटमिन की कमी आदि से होने वाला डिमेंशिया आता है तो दूसरी कैटिगरी में अल्जाइमर्स, फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया (FTD) और वस्कुलर डिमेंशिया आता है।
इसके इलाज के लिए न्यूरोलॉजिस्ट से मिलें। अगर इस बीमारी का कारण विटामिन की कमी या दवाओं का साइड इफेक्ट है तो इलाज संभव है। अगर यह प्रोग्रेसिव यानी समय के साथ तेजी से बढ़ने वाला है तो गुंजाइश कम होती है।
इलाज के तौर पर मरीज का ध्यान रखने के साथ कुछ खास तरह की दवाएं जैसे एसिटाइल कोलिन दी जाती हैं ये मेमोरी को बढ़ाने का काम करती हैं लेकिन अगर देरी की जाए तो इनका असर कम हो सकता है।