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अमा जाने दो: टिप्पणी- गोरे-गोरे गाल, कुकुरमुत्ते का कमाल!

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 12:09 PM
अमा जाने दो: टिप्पणी- गोरे-गोरे गाल, कुकुरमुत्ते का कमाल!
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नवलकांत सिन्हा

अब गुजरात का चुनाव किसके हिस्से में गया और क्यों गया, ये सब गुणागणित आप समझिए। मेरी चिंता तो उन व्यापारियों को लेकर है, जो गोरेपन की क्रीम बेचते हैं। बेचारे जीएसटी का रोना पहले से ही रो रहे थे। ऊपर से ये मशरूम, कसम से पब्लिक को अगर ये मशरूम का आइडिया क्लिक कर गया तो इनका तो बैंड ही बज जाएगा।

आपको तो पता ही होगा की कांग्रेस में शामिल हो चुके ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने गुजरात में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गाल लाल होने की वजह का जो खुलासा किया उससे अच्छे-अच्छे हिल गए। दावा किया कि उनके लाल गालों का राज मशरूम है। वह भी ताइवानी मशरूम। इसके एक मशरूम की कीमत एक-दो रुपये नहीं बल्कि 80 हजार रुपये होती है और दावा यह कि मोदी जी रोज पांच मशरूम खाते हैं।

इसका मतलब उनके एक दिन के मशरूम का खर्चा 4 लाख रुपये है यानी पीएम मोदी एक महीने में केवल मशरूम खाने में ही एक करोड़ 20 लाख रुपये खर्च कर देते हैं। ठाकोर भाई ने फरमाया कि इसी की वजह से उनके गाल लाल हो रहे हैं, जबकि पहले उनका रंग गोरा नहीं था।

अब बताइए गोरेपन की क्रीम तो कई दशकों से आ रही है। फिर उसके बाद कंपनी वालों ने बताया कि पुरुषों की गोरेपन की क्रीम अलग होती है तो लडक़े भी वह क्रीम लगाने लगे। अच्छा-खासा कारोबार फलफूल गया था, लेकिन ये मुई जो सियासत है न, कसम से गोरेपन की दुनिया में हंगामा मच गया। पूरा धंधा डिस्टर्ब होने की स्थिति आ गयी। बेचारे पति पहले से ही परेशान थे। बीवी के ब्यूटी पार्लर का खर्चा झेल नहीं पा रहे थे। इस खबर के बाद बीवियों की नयी जिद कि महंगा वाला मेकअप कराऊंगी।

पति की अब कहने की हिम्मत भी नहीं कि मना कर दे क्योंकि जवाब हाजिर है कि पांच मशरूम तो रोज खिला नहीं सकते और मेरे मेकअप के खर्चे पर टोक रहे हो। वो तो भला हो उस ताइवानी महिला मेसी का जिसने बाकायदा वीडियो जारी कर कहा कि उसने ऐसा कभी नहीं सुना और यह असंभव है। मेरा दावा है कि जितने पति टाइप के जीव हैं, उन्होंने उस वीडियो को अपनी बीवियों को जरूर दिखाया होगा। वैसे अगर नहीं दिखाया है तो दिखा जरूर दें। अब तो किसी की खूबसूरती देखकर शक होने लगा है कि ये टमाटर जैसे गाल नैसॢगक हैं या मशरूम का कमाल। वैसे जिसेे हम कुकुरमुत्ता कहते थे, उसके ऐसे दिन फिरेंगे, कभी सोचना न था।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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