अमा जाने दो: तो लीजिये जीएसटी फ्री ‘टॉयलेट’ का मजा... 

raghvendra
Published on: 28 Oct 2017 10:11 AM GMT
अमा जाने दो: तो लीजिये जीएसटी फ्री ‘टॉयलेट’ का मजा... 
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नवलकांत सिन्हा

कसम से कोई बोरा दे दे तो उस बोरे में मैं धन्यवाद भरकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को भेज दूं, काम ही इतना लल्लनटॉप किया है। अब अखिलेश यादव, राज बब्बर, मायावती, फलाना-ढिमका को ये आरोप लगाने में मुश्किल होगी कि यूपी सरकार जनहित के फैसले नहीं लेती। अरे भाई, खाता है यूपी तभी तो जाता है यूपी। लेकिन सवाल था कि जायें तो जायें कहां। आजकल ट्रेन पटरी से उतरकर इधर-उधर चल देती है, इसलिए वहां बैठना तो रिस्की हो गया है। बाकी जगह सरकार नहीं जाने देना चाहती तो बचा टॉयलेट। अब टॉयलेट पर जीएसटी, ये तो अत्याचार था। हां - हां, फिल्म ही सही लेकिन सरकार ने ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ को जीएसटी फ्री कर बहुत कृपा की।

समीकरण समझिये, जब पेट भरा होगा तो प्रेम जगेगा। प्रेम हुआ तो गर्लफ्रेंड के साथ डिनर होगा और डिनर हुआ तो जाना पड़ेगा। अब खाने पर जीएसटी और जाने पर भी जीएसटी, ये तो बेइंसाफी थी। सरकार इसे न हटाती तो मंशा में सवाल खड़े हो जाते। जनता ये भी सोच सकती थी कि आज ‘टॉयलेट’ फिल्म पर जीएसटी लगा है, कल टॉयलेट जाने पर भी लग सकता है। हंगामा हो जाता। सेंसेटिव सियासत ने तुरंत डिसीजन लिया। नेताओं के लिए भी फायदेमंद था क्योंकि भूखे लाचार तो पॉलिटिक्स करते नहीं। फिर अक्सर भोजन ही नहीं खाना होता, रिश्वत भी खानी पड़ती है। रिश्वत तो नेताजी पचा लेते हैं लेकिन खाना पचाना कठिन है। उसके लिए तो जाना होगा, जोर लगाना होगा। फिर जीएसटी लगती तो बहुत कष्ट होता। दरअसल बड़े लोग जितना खर्च खाने पर नहीं करते, उससे ज़्यादा पचाने की दवाइयों पर करते हैं।

फिर इस क्षेत्र में हमारा नाम भी है। पूरी दुनिया में इंडियन टॉयलेट सीट ने पहचान बना रखी है। गिनीज़ बुक भी आपको नहीं बतायेगी कि पॉटी जाने में इंडिया दूसरे नंबर पर है और यूपी के अगले विधानसभा चुनाव तक हम नंबर वन हो सकते हैं। फिर राजनीतिक ही नहीं, वैचारिक रूप से टॉयलेट महत्वपूर्ण है क्योंकि बड़े विचार अक्सर टॉयलेट में आते हैं। विचार की बात हो तो आप जानते ही हैं कि भारतीय सबसे ज़्यादा विचार प्रेम पर ही करते हैं। यानी प्रेम का मार्ग टॉयलेट होकर जाता है। कब्जियत का शिकार आशिकों से पूछिए, जब पेट साफ नहीं होता तो प्रेम में मन नहीं लगता। सबको पता है कि जब वो आयी हो और टॉयलेट न मिले तो क्या हाल होता है। कुल मिलाकर पेट का मसला ऐसा है कि आप ये नहीं कह सकते कि अमा जाने दो।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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