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अमा जाने दो: अब तेरहवीं के क्रेजियों का क्या किया जाए....

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 3:39 PM IST
अमा जाने दो: अब तेरहवीं के क्रेजियों का क्या किया जाए....
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नवलकांत सिन्हा

तेरहवीं के क्रेजी... इस हिंगलिश का मतलब न समझ आया हो तो बता देता हूं। किसी की मौत के बाद होने वाले भोज का दीवाना। खफा हो जाएंगे आप कि ये कौन सी बात। अजी हुजूर एक नहीं करोड़ों हैं। नाम तो मैं बताने से रहा। कभी इस नेता के मौत की झूठी खबर और कभी उस नेता की, कभी इस हीरो के मौत की झूठी खबर तो कभी उस खिलाड़ी की। मौत की झूठी खबर जंगल में आग की तरह फैलती है। हो सकता है कि आपने भी सही खबर समझ बढ़ा दिया हो। खता आपकी भी नहीं, बड़े लोग तक ट्वीट कर देते हैं और टीवी चैनल तक खबर चला देते हैं।

सवाल तो यही कि मैसेज कहां से चला। मुझे तो यही लगता है कि यह तेरहवीं के शौकीनों का कारस्तानी है। वैसे अपने देश में बिना न्योता दिए दावत उड़ाने वालों की संख्या कम नहीं है। अब वो जमाना भी नहीं रहा कि जब तेरहवी पर न्योता देने का चलन था। यही गणित है कि बहुत से लोग शादी के आमंत्रण के बजाय तेरहवीं की सूचना पर प्रसन्न होते हैं।

अब ये न समझियेगा कि लालू जी के सुपुत्र तेज प्रताप यादव के भाषण से मेरा कुछ लेना-देना है। उनका तो राजनीतिक मामला है। औरंगाबाद की एक जनसभा में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को मारने की धमकी दे डाली। कह दिया कि घर में घुसकर मारेंगे। वो भी तब जबकि खुद सुशील मोदी का बेटे की शादी के निमंत्रण कॉल आया। वैसे किया तो सुशील साहब ने काम खून जलाने का ही, मतलब एक तो तेज प्रताप की कुर्सी छीन ली और अपने घर के जश्न के आमंत्रण का फोन कर डाला।

खैर, हमसे क्या लेना-देना। हम तो तेरहवीं के शौकीनों पर चर्चा कर रहे थे। वैसे तो यह भी हो सकता है कि जब आपके बचपन में किसी की मौत पर स्कूल की छुट्टी ने खूब मजा दिया हो। लेकिन अब यह क्या कि तेरहवीं की इंतजार। इतना तो कोई आशिक अपनी महबूबा के साथ शब-ए-विसाल के बारे में नहीं सोचता होगा, जितना कि ये किसी के मरने का सोचते हैं। मतलब हाल यह है कि कोई मरा नहीं तो उसके मरने का व्हाट्सएप पर मैसेज चलवा दो। अरे गिफ्ट न दो, लेकिन शादी, बर्थडे, मुंडन, खतना की सोचो मेरे भाई। ये क्या कि किसी की मौत का इंत$जार। देखो न, जब अखिलेश यादव ने पिता के जन्मदिन का केक नेताजी से कटवाया तो मुलायम सिंह यादव नाराजगी भूल गए और खुद केक खाने से पहले बेटे को केक खिला दिया।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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