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lok sabha election 2019 : खत्म होता जा रहा है राजनीति में पदयात्राओं का दौर
राजनीति के क्षेत्र में जनजागरूकता के लिए कभी राजनेता पदयात्राए कर जनता से जुडने का काम करते थें। पर नई पीढी के लिए यह पदयात्राएं मानो पहेलीब न चुकी हो
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: राजनीति के क्षेत्र में जनजागरूकता के लिए कभी राजनेता पदयात्राए कर जनता से जुडने का काम करते थें। पर नई पीढी के लिए यह पदयात्राएं मानो पहेली बन चुकी हो। हालांकि दक्षिण भारत में अभी भी इसका चलन है। पर उत्तर भारत में पुरानी पीढी के राजनेताओं के मुख्यधारा से अलग होने और सोशल मीडिया के दौर में जनसामान्य से जुडने के लिए पदयात्राओं का महत्व खत्म हो गया है।
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रथयात्राओं के मामलें में सबसे ज्यादा रिकार्ड भाजपा और उसके नेता लालकृष्ण आडवाणी के नाम दर्ज है। राजनीति के शिखर पुरुष कहे जाने वाले भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में रामरथ यात्रा निकाली थी। 1997 में फिर स्वर्ण जयंती यात्रा, 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारत उदय यात्रा, इसके बाद 2011 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के गांव से दिल्ली तक की यात्रा निकाली थी।
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भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष रहे मुरली मनोहर जोशी ने भी 1992 में कन्याकुमारी से कश्मीर तक रथयात्रा निकाली थी। इसके अलावा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कोलकाता से मुंबई तक यात्रा निकाली थी। आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन.टी. रामाराव ने भी 1990 में 'चेतना यात्रा' निकाल कर सियासी हल्कों में खासी याति अर्जित की थी।
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इस मामले में भाजपा हरदम अव्वल रही। भाजपा अब तक 'एकता यात्रा', 'किसान जागरण यात्रा','जनजागरण यात्रा', 'ग्राम सुराज यात्रा', 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जागरण यात्रा', 'परिवर्तन यात्रा' निकाल चुकी है। इन यात्राओं का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह सरीखे नेता कर चुके है। उत्तर प्रदेश में यात्राएं, रथयात्राएं निकालने का रिकार्ड तो सपा के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के नाम दर्ज है।
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1989 में प्रदेश में पहली बार सीएम बनने से पहले मुलायम सिंह यादव ने 17 सितंबर 1987 को 'क्रांतिरथ यात्रा' निकाली थी। हालांकि इससे पहले रालोद के प्रमुख अजित सिंह ने 1986 में मेरठ से लखनऊ तक की पदयात्रा की थी। इसके बाद वर्ष 2011 में ही रालोद की ‘सुराज यात्रा’ निकाली। लेकिन यह दोनों ही यह यात्राएं उसका राजनीतिक मकसद पूरा नहीं कर पाई। मुलायम सिंह यादव के क्रांतिरथ यात्रा निकालने का फार्मूला कामयाब होने के बाद इसी को उनके पुत्र अखिलेश यादव ने भी आजमाया। उन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव से पूर्व 31 जुलाई से 14 अक्तूबर 2011 तक क्रांतिरथ यात्रा निकाली।
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दूसरे चरण में उन्होंने 12 सितंबर 2011 से फिर दूसरे चरण की क्रांतिरथ यात्रा शुरू की। इन दो चरणों की यात्राओं का असर यह रहा कि अखिलेश सपा के पक्ष में माहौल बनाने में सफल रहे. और 2012 में पहली बार प्रदेश में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।
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पिछले विधानसभा चुनाव में निर्जीव पडी कांग्रेस में जान फूंकने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने ‘27 साल यूपी बेहाल’ यात्रा लेकर प्रदेश भ्रमण किया तो राहुल गांधी ने भी पूर्वाचंल में देवरिया से दिल्ली तक यात्रा पर निकले। कांग्रेस की यात्राओं की ही तर्ज पर सपा ने भी चुनावी मौसम में अखिलेश सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए मुलायम रथयात्रा निकाली, पर यह पदयात्रा नही थी।
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2012 के विधानसभा से पहले कांग्रेस की तरफ से प्रदेश भर में अंबेडकर जयंती के मौके पर दस संदेश यात्राओं को दो चरणों निकाला गया था। इससे पूर्व भी राहुल गांधी 'किसान संदेश यात्रा' निकाल चुके थे।
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इन यात्राओं से पहले राहुल गांधी ने सहारनपुर में किसानों के मुद्दे को लेकर एक दिन की यात्रा निकाली थी। सोनिया गांधी की सालगिरह के मौके पर पांच साल पहले मोदी सरकार और प्रदेश की तत्कालीन अखिलेश सरकार के खिलाफ कांग्रेस पदयात्राएं की थी। इन पदयात्राओं में उस समय प्रदेश प्रभारी रहे मधुसूदन मिस्त्री, तथा प्रदेशाध्यक्ष डा.निर्मल खत्री समेत कई राष्ट्रीय पदाधिकारी भी शामिल थे।
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प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्र में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 2005 में पूर्वाचल में विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद बनारस से बिजनौर तक न्याय यात्रा निकाली। यह यात्रा उनके लिए काफी भाग्यशाली साबित हुई। बीच यात्रा में ही उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का बुलावा आ गया तो बाकी की यात्रा विनय कटियार ने पूरी की।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहते कलराज मिश्र ने 1996 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के बीच पार्टी की पैठ बनाने के लिए पद यात्रा की थी। इसके बाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने बलिया से ‘किसान बचाओं’ यात्रा पर निकले । मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्र में मंत्री सुश्री उमा भारती ने भी 'गंगा बचाओं यात्रा' निकालकर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में अथक परिश्रम किया।
योगी सरकार में मंत्री डा.रीता बहुगुणा जोशी ने भी कांग्रेस में रहते भूमि अधिगृहण और करछना कांड के विरोध में कचरी से कचहरी तक की पदयात्रा निकाली थी। सपा नेता अमर सिंह जयप्रदा भी पूर्वाचल राज्य बनाए जाने की मांग को लेकर यात्राएं निकाल चुके है इस यात्रा उस समय मनोज तिवारी (अब भाजपा संासद) शामिल थे। उस समय इस यात्रा को खासा समर्थन हासिल हुआ था। सत्ता की खातिर और सत्ता के विरोध में माहौल बनाने के लिए हमेशा से ही पदयात्राएं राजनीतिक दलों का प्रमुख हथियार रही है। पर इस लोकसभा चुनाव के न पहले और न चुनाव के बीच लम्बी पदयात्राएं की गई।