चुनावी मौसम में पीआर पेशेवरों की चांदी ही चांदी

दिल्ली स्थित एक पीआर कंपनी के संस्थापक सुनील खोसला ने कहा कि आज के दौर में राजनीतिक जऩसंपर्क रैलियों और पारंपरिक प्रचार तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे काफी आगे निकल गया है। उन्होंने कहा कि राजनीति पीआर बहुत वैज्ञानिक, आक्रमक और विशिष्ट हो गया है। यह ग्राहकों के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाता है जहां बोले गए हर शब्द का एक रणनीतिक मतलब होता है, जिसका ठीक से पालन नहीं करने पर प्रतिकूल असर हो सकता है।

SK Gautam
Published on: 26 March 2019 12:13 PM GMT
चुनावी मौसम में पीआर पेशेवरों की चांदी ही चांदी
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मुंबई: महाराष्ट्र में इस चुनावी मौसम में पीआर एजेंसियों की जबर्दस्त मांग है और सियासतदान मतदाताओं के बीच अपनी छवि को चमकाने के लिए इन एजेंसियों की मदद ले रहे हैं। राज्य में सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता अपनी छवि चमकाने, भाषण तैयार करने, सोशल मीडिया प्रोफाइल का प्रबंध देखने के लिए जनसंपर्क (पीआर) और समाचार निगरानी एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं।

दिल्ली स्थित एक पीआर कंपनी के संस्थापक सुनील खोसला ने कहा कि आज के दौर में राजनीतिक जऩसंपर्क रैलियों और पारंपरिक प्रचार तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे काफी आगे निकल गया है। उन्होंने कहा कि राजनीति पीआर बहुत वैज्ञानिक, आक्रमक और विशिष्ट हो गया है। यह ग्राहकों के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाता है जहां बोले गए हर शब्द का एक रणनीतिक मतलब होता है, जिसका ठीक से पालन नहीं करने पर प्रतिकूल असर हो सकता है।

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उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि एजेंसियों को सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए वीडियो बनाने का काम सौंपा गया है। साथ में लोगों के बीच उम्मीदवारों की छवि बदलने का काम भी सौंपा गया है।

उद्योग के वरिष्ठ पेशेवर हेमांग पलान ने कहा कि सोशल मीडिया के प्रभाव पर विचार करते हुए लगभग सभी प्रत्याशियों ने फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप्प ग्रुप के जरिए लोगों से जुड़ रहे हैं। वह 2014 के चुनाव में भाजपा के कुछ प्रत्याशियों के मीडिया प्रबंधक थे।

भाजपा के एक नेता एवं लोकसभा सदस्य ने कहा कि इन एजेंसियों की सेवा लेना वक्त की जरूरत है। यह उम्मीदवारों की रणनीति बनाने में मदद करते हैं।

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मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेता "संजय निरूपम" ने कहा कि उन्होंने अपनी और पार्टी की मदद के लिए दो एजेंसियों की सेवा ली है।

उन्होंने कहा कि वे हमारी विभिन्न रणनीतियों को बनाने में मदद करते हैं, लेकिन आपको भी समान रूप से स्मार्ट और सक्रिय होने की जरूरत है। जन संपर्क पेशेवर आपकी अकेले मदद नहीं कर सकते हैं।

आईटी उद्योग से जुड़े टीवी मोहनदास पाई के मुताबिक, सोशल मीडिया लोकसभा चुनाव में चार-पांच प्रतिशत मत को प्रभावित कर सकता है। इसलिए जहां जीत का अंतर कम होता है वहां यह अहम कारक बन गया है।

(भाषा)

SK Gautam

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