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lok sabha elections 2019: राजनीति में खूब होता है ‘इमोशनल अत्याचार’

लम्बे राजनैतिक कैरियर में अपनी तुनक मिजाजी के लिए मशहूर रहे मो आजम खां इस बार जनसभा के दौरान जब रो पडे तो जनता को आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। एक जनसभा में कहा कि जिला प्रशासन उन्हे लगातार परेशान कर रहा है। कहा,.... ‘‘मेरे घर के दरवाजे तोड दो, मुझे गोली मार दो, ताकि यह किस्सा चुनाव से पहले ही खत्म हो जाए’’ उनका इतना कहना था कि पूरी जनसभा का माहौल भावुक हो गया। 

SK Gautam
Published on: 23 April 2019 3:24 PM IST
lok sabha elections 2019: राजनीति में खूब होता है ‘इमोशनल अत्याचार’
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श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: लोकतान्त्रिक व्यवस्था में पूरे पांच वर्ष भले ही अन्य मुद्दों पर चर्चाएं होती रहे पर मतदान तिथि आते -आते चुनाव अक्सर भावनाओं में तब्दील हो जाता है। मतदाता के स्वभाव से राजनीतिक दल खूब वाकिफ हैं और चुनाव लड़ने वाले नेता भी। तभी तो अक्सर पूरा चुनाव भावनाओं के आवेग में बह जाता है। जनता की इसी भावना का लाभ पहले के चुनावों में भी खूब उठाया जाता रहा है। लेकिन अब तो नेताओं ने इससे भी बढकर अपने आंसूओं से ’इमोशनल अत्याचार’ का नया फार्मूला निकाला है। यह फार्मूला 2014 के लोकसभा चुनाव में हिट होने के बाद इस बार भी खूब हिट हो रहा है।

मो आजम खां:

लम्बे राजनैतिक कैरियर में अपनी तुनक मिजाजी के लिए मशहूर रहे मो आजम खां इस बार जनसभा के दौरान जब रो पडे तो जनता को आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। एक जनसभा में कहा कि जिला प्रशासन उन्हे लगातार परेशान कर रहा है। कहा,.... ‘‘मेरे घर के दरवाजे तोड दो, मुझे गोली मार दो, ताकि यह किस्सा चुनाव से पहले ही खत्म हो जाए’’ उनका इतना कहना था कि पूरी जनसभा का माहौल भावुक हो गया।

जयाप्रदाः

रामपुर से तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड रही भाजपा की प्रत्याशी जयाप्रदा ने अपने चुनाव प्रचार की शुरूआत ही आंसू निकालकर की। जयाप्रदा ने आजम खां की तुलना जब ‘पदमावत’ फिल्म के अलाउद्दीन खिलजी और खुद का पदमावती बताया तो जनमानस की भावनाएं जयाप्रदा के प्रति हो गयी।

इमरान प्रतापगढीः

रामपुर के बगल वाली लोकसभा सीट पर आसुंओं का असर दिखाई पडा जब मुरादाबाद से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान प्रतापगढ़ी चुनावी सभा मे फफक- फफक कर रोने लगे। इस वीडियो में लोग इमरान हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारे लिए जान भी देंगे जैसे नारे लगाते हुए सुने जा सकते हैं

राजकुमार चाहरः

इसी चुनाव में आगरा से भाजपा प्रत्याशी राजकुमार चाहर भीड़ के सामने वोट मांगते-मांगते अचानक भावुक हो गए। जनसभा में उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य जब मंच पर मौजूद थें तो राजकुमार ने पहले मोदी का गुणगान किया अपना इतिहास गिनाया

कि उनके पिता चौकीदारी किया करते थे। और फिर मंच पर ही राजकुमार चाहर रोने लगे थे। राजकुमार का यह भाषण भावुक था।

वकार खान:

लखीमपुर खीरी में धौरहरा लोकसभा के प्रत्याशी फ़िल्म अभिनेता वकार खान का पर्चा खारिज होने पर वह फूट-फूट कर रोये। काफी देर तक रोने के बाद कहा कि यह चुनाव अधिकारी बेईमानी पर उतारू है, हम जब दस लोग प्रस्तावक समर्थक लाये थे फिर भी कह रहे है कि आप नौ लोगो को लेकर आये है। वकार खान ने कहा कि हम बहुत दिनों से चुनाव की तैयारी कर रहे थे सब बेकार हो गया।

‘इमोशनल अत्याचार’ की यह कहानी कोई नई नहीं है। इसके पहले भी कई बार इस तरह के मामले देखे जा चुके है। पिछले लोकसभा चुनाव में तो यह सिलसिला काफी तेज हो गया है। कई नेताओं ने अपने आंसुओं से मतदाताओं को भावुक कर अपनी चुनावी नैया पार कर ली। इस बार टिकट न मिलने पर बाराबंकी की सांसद प्रियंका रावत तथा फतेहपुर सीकरी के चौ बाबूलाल भी खूब रोए। दूसरे राज्यों की बात करें तो भोपाल में साध्वी प्रज्ञा भारती से लेकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी तक रोने में कोई संकोच नहीं करते है।

2014 के चुनाव में संसदीय क्षेत्र से टिकट के दावेदार पूर्व विधायक सुशील शाक्य फर्रूखाबाद में मुकेश राजपूत को टिकट मिलने पर फूट-फूट कर रोये थे। इसके अलावा दददन प्रसाद भी इसी चुनाव में प्रचार के दौरान फूटफूटकर रोए थें।

यह सिलसिला उस समय और तेज हो गया जब 90 के दशक में फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को भावुक करने वाले अभिनेताओं राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा में 1991 में नयी दिल्ली लोकसभा सीट पर मुकाबला हुआ। शत्रुघ्न सिन्हा गुजरे जमाने के इस सुपर स्टार का मुकाबला नहीं कर पाये। राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को करीब 28 हजार वोटों से हरा दिया। बिहारी बाबू दिल्ली उपचुनाव में हार से शत्रुघ्न सिन्हा इतना भावुक हो गये कि रोने लगे थे।



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