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बड़ा सवाल : निषाद पार्टी को अर्श मिलेगा या फर्श, छह साल में तीन गठबंधन
गोरखपुर। छह वर्ष पूर्व 13 जनवरी को होमियोपैथ के डॉक्टर संजय निषाद ने निषाद पार्टी का गठन किया था तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह पार्टी चंद वर्षों में इतने उतार-चढ़ाव देख लेगी। पूर्वांचल में निषादों के क्षत्रप माने जाने वाले जमुना निषाद की मार्ग दुर्घटना में मौत के बाद खाली सियासी जमीन पर संजय ने न सिर्फ कब्जा किया बल्कि इंजीनियर बेटे को संसद पहुंचाने में भी कामयाब रहे। महज छह वर्षों में महत्वाकांक्षा के बल पर अपनी जातीय राजनीति के शिखर पर पहुंच चुकी पार्टी रोज-रोज के पैंतरे को लेकर अब सवालों में घिरी है। गठबंधन छोड़ भाजपा का दामन थामने वाली निषाद पार्टी को लेकर सवाल उठने लगा है कि लोकसभा चुनाव में उसे फर्श मिलेगा या अर्श। सवाल यह भी है कि एनडीए में शामिल होने के बाद डॉ. संजय निषाद का भी हश्र ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्या या फिर अनुप्रिया पटेल की तरह तो नहीं होगा। या फिर वह अपना स्वतंत्र वजूद बनाने में कामयाब रहेंगे।
महज 6 वर्ष पुरानी निषाद पार्टी को पहली बार राष्ट्रीय फलक पर तब सुर्खियां मिलीं जब आरक्षण की मांग पर 7 जून 2015 को सहजनवां के कसरवल के पास रेलवे ट्रैक पर निषाद पार्टी के आंदोलन के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में एक कार्यकर्ता की मौत हो गई थी। इस मामले में डॉ. संजय निषाद और उनके समर्थकों पर केस हुआ और 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। इस घटना से मिले सियासी खाद-पानी के दम पर 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी से हाथ मिलाकर पूरे प्रदेश में 60 सीटों पर चुनाव लड़ा। बाहुबली विजय मिश्र ज्ञानपुर सीट से पार्टी के सिंबल पर जीतने में कामयाब भी हुए। टिकट बांटने के दौरान विरोधियों ने आरोप भी लगाया कि बसपा सुप्रीमो मायावती की तर्ज पर निषाद पार्टी ने भी मोटी रकम लेकर टिकट बेचे हैं। आरोपों को तब और बल मिला जब संजय निषाद ने हेलीकॉप्टर से अपने प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया। पार्टी को बड़ी कामयाबी तब मिली जब संजय निषाद के बेटे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे प्रवीण निषाद को योगी आदित्यनाथ की खाली की हुई सीट पर गठबंधन का उम्मीदवार घोषित किया गया। गठबंधन के बल के दम पर प्रवीण निषाद गोरखपुर सीट पर 29 वर्ष पुराने गोरक्षपीठ के तिलिस्म को तोडऩे में कामयाब हुए। संसद में प्रवीण निषाद भले ही सक्रिय नहीं दिखे लेकिन सांसद निधि के बारे को लेकर विरोधियों ने उनपर गंभीर आरोप लगाया। गोरखपुर से गठबंधन प्रत्याशी राम भुआल निषाद आरोप लगाते हैं कि निषाद पार्टी ने 50 करोड़ की मोटी रकम लेकर जाति के वोटों की सौदेबाजी की है। उनका कहना है कि प्रवीण निषाद की सांसद निधि की जांच हो जाए तो बढ़ा घोटाला पकड़ा जाएगा। उधर, गठबंधन से रिश्ते तोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले संजय निषाद खूब सफाई दे रहे हैं। उनका कहना है कि रामराज में ही निषाद राज रहा है। भाजपा से संवैधानिक मांगों को पूरा करने का आश्वासन मिला है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन का साथ देने का फैसला किया है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन बेमेल रहा। सपा से गठबंधन में निषादों को यथोचित सम्मान नहीं मिला।
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योगी नहीं चाहते थे निषाद पार्टी से गठबंधन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निषाद पार्टी के अध्यक्ष की पैंतरेबाजी से बखूबी परिचित हैं। निषाद बिरादरी गोरक्षपीठ का वोटबैंक रही है। गोरखपुर उपचुनाव में पहली बार निषादों ने गोरक्षपीठ के इतर वोट डाला। उप चुनाव में गोरक्षपीठ की तरफ से कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहा था। भाजपा की तरफ से उतारे गए उपेन्द्र दत्त शुक्ला को लेकर लोगों में यह संदेश था कि वह योगी आदित्यनाथ की पसंद नहीं हैं। यही वजह है योगी आदित्यनाथ की दो दर्जन से अधिक जनसभाओं के बाद भी वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहा। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के पैंतरे के बाद पैदल हुए संजय निषाद ने सिद्धार्थनाथ सिंह का दामन पकड़ा। सिद्धार्थ नाथ सिंह निषाद पार्टी के मुखिया का मुख्यमंत्री से मिटिंग कराने में तो कामयाब हुए लेकिन दिल मिलाने में सफल नहीं हो सके। गोपनीय बैठक की फोटो का वायरल होने को योगी की पसंद या नापंसद से जोड़कर देखा जा रहा है। चर्चा है कि अब गेंद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पाले में डाल दी गई। मौके की नजाकत को देखते हुए अखिलेश यादव ने बिना देरी किए निषाद वोटों के प्रमुख आलम्बरदार पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को गठबंधन का उम्मीदवार घोषित कर दिया।
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निषाद पार्टी के गठबंधन के पीछे धनंजय सिंह
निषाद पार्टी और भाजपा के गठबंधन के पूरे सियासी खेल का मास्टर प्लान पूर्वांचल के बाहुबली धनंजय सिंह द्वारा तैयार किया गया था। गठबंधन के पीछे राजनाथ सिंह के प्रयास को अहम माना जा रहा है। चर्चा है कि भाजपा अपने सिंबल पर धनंजय सिंह को लड़ाने को तैयार नहीं है। ऐसे में निषाद पार्टी को आगे किया गया। धनंजय सिंह की संजय निषाद से कई राउंड की वार्ता भी हो गई है। संजय निषाद अपने लिए तीन सीटों की मांग कर रहे थे। गोरखपुर में बेटे प्रवीण निषाद के साथ डॉ संजय खुद महराजगंज से तो धनंजय सिंह को जौनपुर से गठबंधन उम्मीदवार बनाना चाहते थे। सपा खेमे से जौनपुर से लालू यादव के दामाद तेज प्रताप सिंह के लडऩे की अटकलों के बीच निषाद पार्टी के अध्यक्ष के मंसूबा कामयाब नहीं हो सका।
छह साल में तीन गठबंधन
सियासी महात्वाकांक्षा में निषाद पार्टी के मुखिया किसी भी दल से लंबा रिश्ता बनाने में कामयाब नहीं हुए हैं। पार्टी की स्थापना के साथ ही उन्होंने पीस पार्टी से गठबंधन कर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी की। गोरखपुर उपचुनाव में उनके बेटे प्रवीण निषाद गठबंधन के उम्मीदवार थे लेकिन सिंबल सपा का था। पैतरेबाजी के खेल में ही वह बीते 26 मार्च को सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के हिस्सा बने। महज तीन दिन बाद ही 29 मार्च को इस रिश्ते में दरार पड़ गई। संजय निषाद ने 29 मार्च को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल से मुलाकात की। बाद में जेपी नड्डा की मौजूदगी में निषाद पार्टी एनडीए का हिस्सा बन गई।
निषाद वोटों की सियासी ठेकेदारी किसके नाम
पूर्वांचल में विकास और हिन्दुत्व पर राजनीति का दावा भले ही हो लेकिन जाति फैक्टर कड़वी हकीकत है। गोरखपुर-बस्ती मंडल में निषाद राजनीति सियासत के केन्द्र बिंदु में हैं। गोरखपुर उपचुनाव में प्रवीण निषाद ने भाजपा के प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ला को हराकार निषाद जाति की ताकत का अहसास करा दिया था। वर्तमान में परिस्थितियों में बड़ा उलटफेर हो चुका है। भाजपा पुराने क्षत्रप जमुना निषाद के बेटे अमरेन्द्र निषाद और पूर्व विधायक रहीं उनकी मां राजमति निषाद को अपने पाले में कर चुकी है। चौरीचौरा से विधायक रहे जय प्रकाश निषाद पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। सपा भी निषादों को लेकर अपनी ताकत को बढ़ा रही है। गोरखपुर से गठबंधन ने पूर्व मंत्री रहे रामभुआल निषाद को मैदान में उतार दिया है। जमुना निषाद के भाई गंगा निषाद को सपा अपने पाले में कर चुकी है। वर्ष 1985 में गोरखपुर जिले के पहले निषाद बिरादरी के विधायक बने लालचंद निषाद मंडल में कांग्रेस पार्टी के चेहरे हैं। कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र में गौरी देवी विधायक थीं और अपने पति रवींद्र सिंह के यश और अपनी उपस्थिति के बल पर वह अपराजेय मानी जाती थीं। वर्ष 1985 में उन्हें कांग्रेस से लालचंद निषाद ने ही पराजित किया और गोरखपुर के पहले निषाद विधायक बने। वहीं फिल्म अभिनेत्री काजल निषाद भी अपने ग्लैमर के बल राजनीति के मैदान में हैं।
मजबूत मौजूदगी
गोरखपुर मंडल की सभी 28 विधानसभा व 6 संसदीय क्षेत्रों में निषाद बिरादरी की मजबूत दखल है। पूर्वांचल निषाद बिरादरी के प्रभुत्व को लेकर ही पूर्व सांसद फूलन देवी के पति उन्मेद सिंह ने भी पिपराइच विधानसभा से अपना राजनीतिक भविष्य तलाशा था। राजनीतिक दलों के आकड़ों के मुताबिक मंडल में सर्वाधिक निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में हैं। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या 3 से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। देवरिया में एक से सवा लाख, बांसगांव में डेढ़ से दो लाख, महराजगंज में सवा दो से ढ़ाई लाख तथा पडऱौना में भी ढ़ाई से तीन लाख निषाद बिरादरी के मतदाता हैं। मंडल के 28 विधानसभा में भी 30 से 50 हजार के बीच निषाद मतदाता हैं। बहरहाल, सभी प्रमुख दलों ने अपने खेमे में निषाद बिरादरी का मजबूत सेनापति शामिल कर रखा है।