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अनोखा है मगहर में कबीर परिनिर्वाण स्थल

sudhanshu
Published on: 27 Jun 2018 3:55 PM IST
अनोखा है मगहर में कबीर परिनिर्वाण स्थल
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संत कबीर नगर: मगहर वह जगह है जहां पर संत कबीर दास का निधन हुआ था। यहाँ पर कबीर की मज़ार और समाधि अगल-बगल मौजूद हैं। जहाँ समाधि पर हिंदू पूजा करते हैं वहीँ मज़ार पर मुसलमान लोग ज़ियारत करते हैं।

मंदिर- मजार हैं साथ साथ

मगहर में कबीर की मज़ार और मंदिर दोनों साथ साथ बनने की भी दिलचस्प कहानी है। मान्यता है कि कबीर के निधन के बाद उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्यों में इस बात पर झगड़ा होने लगा कि कबीर की अंत्येष्टि वे अपने धर्म के अनुसार करेंगे। जहाँ हिंदू शिष्य कबीर के शरीर को जलाना चाहते थे, वहीं मुस्लिम उन्हें अपनी रीति से दफ़नाना चाहते थे। इस पर काफी झगडा हुआ और अंत में जब कबीर के शव से चादर हटायी गयी तो शव के स्थान पर कुछ फूल पड़े मिले। इनमें से आधे फूल हिन्दू शिष्यों ने ले लिए और एक समाधि बना ली। जबकि आधे फूल लेकर मुसलमानों ने मज़ार बना ली। कबीर की समाधि और मज़ार की दीवार आपस में जुड़ी हुयी है। मंदिर में फूल चढ़ता है, घंटे बजते हैं, तो मज़ार में जायरीन चादर चढाते हैं।

कबीर की परिनिर्वाण स्थली पर कबीर की साधना गुफा भी है. इसके बारे में बताया जाता है कि इस गुफा में बैठ कर कबीर ध्यान लगाते थे। कबीर की समाधि स्थल के बगल में आमी नदी बहती है जिसके बारे में भी कई किंवदंतियां हैं। कहा जाता है कि एक बार इलाके में सूखा पड़ा था तो कबीर दास के कहने पर आमी नदी अपनी धार मोड़कर उस इलाके में आईं और पानी की कमी पूरी हो गई। बहरहाल, कबीर की मज़ार और समाधि दोनों की हालत दो तरहकी है। मंदिर जहाँ ठीक स्थिति में है वहीं मज़ार जीर्ण शीर्ण हालत में है।

कबीर जब काशी से मगहर आये तो उन्होंने लिखा :

‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा

जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’

(काशी हो या फिर मगहर का ऊसर, मेरे लिए दोनों ही एक जैसे हैं क्योंकि मेरे हृदय में राम बसते हैं। अगर कबीर काशी में शरीर का त्याग करके मुक्ति प्राप्त कर ले तो इसमें राम का कौन सा अहसान है।)

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