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चुनाव 2017: बहनजी के बिना यूपी में मुश्किल है महागठबंधन

Newstrack
Published on: 1 Feb 2016 2:59 PM IST
चुनाव 2017: बहनजी के बिना यूपी में मुश्किल है महागठबंधन
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Vinod Kapoor
Vinod Kapoor
लखनऊ: विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, वैसे-वैसे यूपी में कांग्रेस समेत अन्य छोटे दलों की धडकनें इस लिहाज से बढ़ रही है कि उनका अस्तित्व बचेगा या नहीं। ऐसे दलों में जदल यू और रालोद जैसी पार्टियां शामिल हैं। बिहार की तर्ज पर यूपी के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन बनने की छटपटाहट भी तेज हो गई है, लेकिन राज्य के मौजूदा राजनीतिक हालात बिहार जैसे गठबंधन को सिरे से नकारते हैं। यूपी में बसपा के बिना कोई भी बड़ा गठबंधन बनता दिखाई नहीं देता, हालांकि कांग्रेस, रालोद और जदयू इसके लिये राजी दिखाई देते हैंं।

यूपी के राजनीतिक हालात की थाह लेने जदयू के प्रेसीडेंट शरद यादव रविवार को लखनऊ में थे। उन्होनें समाजवादी पार्टी को अलग कर महागठबंधन की बात की। जदयू और रालोद के नेताओं के बीच गठबंधन की बात चल रही है। दोनों दलों के शीर्ष नेता इस पर कुछ बात भी कर चुके हैं। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि जदयू से बात चल रही है और उनकी पार्टी आगामी 13 फरवरी को विधानसभा का उपचुनाव भी लड़ रही है। मुन्ना सिंह चौहान खुद बीकापुर सीट से प्रत्याशी हैं। यूपी में फैजाबाद के बीकापुर,मुजफ्फनगर और सहारनपुर के देवबंद सीट पर विधायकों के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है। हालांकि बसपा के गठबंधन में बसपा के शामिल होने के बारे में शरद यादव का कहना था कि ये समय से पहले उठाया गया सवाल है।

मायावती अकेले लड़ेंगी चुनाव

बसपा प्रमुख मायावती बिहार की तरह किसी भी गठबंधन को सिरे से नकारती हैं। मायावती अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। बसपा का गठबंधन का तजुर्बा कोई अच्छा नहीं रहा है। बसपा ने साल 1996 में यूपी में कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल किया था, जिसमें उसे नुकसान उठाना पड़ा था। बसपा के वोट तो कांग्रेस को ट्रासंफर हो गए, लेकिन कांग्रेस के वोट बसपा को नहीं मिल पाए। इसके बाद से बसपा ने चुनाव से पहले किसी गठबंधन से तौबा कर ली है। हालांकि, बसपा ने बीजेपी के साथ मिलकर तीन बार सरकार बनाई, लेकिन वो चुनाव बाद का गठबंधन था पहले का नहीं।

कांग्रेस चाहती है गठबंधन

वहीं, कांग्रेस के यूपी के नेता कहते हैं कि पार्टी विधानसभा चुनाव में गठबंधन चाहती है, ताकि सपा का भ्रष्ट शासन खत्म किया जा सके। सांप्रदायिक बीजेपी को सत्ता में आने से रोका जा सके। यूपी में जदयू का कोई खास जनाधार नहीं है और रालोद पश्चिमी यूपी के जाट बहुल इलाके में ही सिमटी हुई है। विधानसभा के पिछले चुनाव में सपा और बसपा ने और लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रालोद का जाट किला भेद दिया था। अभी विधानसभा में रालोद के महज नौ सदस्य ही हैं। इसके अलावा पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल जैसे दल हैं, जो छोटे-छोटे पैकेट में अपना प्रभाव डालते हैं। इन छोटे दलों के मिलने का चुनाव में तब तक कोई फायदा नहीं होगा, जब तक खास प्रभाव रखने वाली बसपा साथ नहीं आती। यूपी में कांग्रेस भी अपना जनाधार खो चुकी है और लोकसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली तक सिमट कर रह गई थी। विधानसभा के पिछले चुनाव में तो कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी की विधानसभा सीटों पर भी हार का मुंह देखना पड़ा था।



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