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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: फिर फहरेगा भगवा
मुम्बई: महाराष्ट्र में पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था। अब राज्य के विधानसभा चुनाव में वैसा ही करिश्मा फिर दोहराए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
पिछले बीस वर्षों से राज्य के चुनाव लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद ही होते रहे हैं और जिस पार्टी ने राष्ट्रीय चुनावों में दबदबा दिखाया होता है वही राज्य के चुनाव में रिपीट पर्फामेंस करती रही है। सिर्फ १९९९ का विधानसभा चुनाव अपवाद रहा है जब लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी लेकिन राज्य के चुनाव में कांग्रेस एनसीपी गठबंधन जीता था।
महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा और शिवसेना आगे बढ़ी है जबकि कांग्रेस और एनसीपी नीचे गिरते गए हैं। अब आलम ये है कि राज्य में राजनीति के सभी लेवल पर भाजपा की लोकप्रियता का परचम लहरा रहा है। मिसाल के तौर पर २०१७ के जिला परिषद और नगर निगमों के चुनाव में शिवसेना और एनसीपी जैसे क्षेत्रीय दलों से कहीं ज्यादा सीटें भाजपा ने पाई थीं।
बढ़ता वोट शेयर
२०१४ में भाजपा और उसके सहयोगी दल शिव सेना ने मिल कर २८८ में से १८५ सीटें जीती थीं और इन दोनों दलों का वोट शेयर ४७.२ फीसदी रहा था। २०१९ के लोकसभा चुनाव में भाजपा-शिव सेना गठबंधन ने ४८ में से ४१ सीटें जीती थीं और ५१ फीसदी वोट हासिल किये थे।
शहरी क्षेत्रों में भगवा पसंदीदा
महाराष्ट्र के शहरी इलाकों में भाजपा और शिवसेना, दोनों लोकप्रिय हैं। २००९ और २०१९ के लोकसभा चुनावों के बीच शहरी इलाकों में भगवा गठबंधन का वोट शेयर करीब दोगुना हो कर ५७ फीसदी तक पहुंच गया। इस ट्रेंड को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे राज्य का शहरीकरण बढ़ता जा रहा है वैसे ही भाजपा - शिवसेना गठबंधन और भी मजबूत हो सकता है।
सभी जातियों का समर्थन
भाजपा-शिवसेना गठबंधन के आगे बढऩे का एक और कारण उसे लगभग सभी जातियों का समर्थन मिलना है। अब ये गठबंधन कांग्रेस-एनसीपी के परंपरागत समर्थन को भी खत्म करता जा रहा है। २०१९ के आम चुनावों में मराठा प्रभुत्व वाली पार्टी एनसीपी को सिर्फ २८ फीसदी मराठा वोट मिले थे। जबकि शिवसेना ने ३९ फीसदी वोट हासिल किये थे। इसी तरह कांग्रेस का दलित वोट बेस कुछ हद तक भाजपा और प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अगाड़ी पार्टी की तरफ जा चुका है। इन सब पहलुओं और हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर हुए दल बदल से कांग्रेस - एनसीपी को इस चुनाव में बड़ा नुकसान हो सकता है। जहां तक भगवा गठबंधन की बात है तो शिवसेना द्वारा भाजपा सरकार की आलोचना एक बड़ी कमजोर कड़ी दिखाई पड़ती है। लेकिन इस कमजोरी का फायदा उठाने में विपक्ष अभी तक तो असफल ही रहा है।
आर्थिक असर
महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों का देश की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आर्थिक राजधानी मुम्बई के कारण ही महाराष्ट्र का पिछले दशक में देश के उत्पादन में १४ फीसदी की हिस्सेदारी रही है। लेकिन राज्य में आर्थिक असमानताएं भी कम नहीं हैं। जहां राज्य का पश्चिमी इलाका ज्यादा औद्योगिकीकृत है वहीं खेती पर आश्रित विदर्भ और मराठवाड़ा इलाके गरीब हैं। ये महत्वपूर्ण फैक्टर है कि ग्रामीण क्षेत्र की दिक्कतों और किसानों की बदहाली का भाजपा-शिवसेना गठबंधन पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा है। बल्कि विदर्भ तो भाजपा का मजबूत गढ़ बन कर उभरा है। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस इसी इलाके से आते हैं। प्रधानमंत्री किसान योजना के सफल क्रियान्वयन और गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के कारण भाजपा गठबंधन की साख बनी हुई है। महाराष्ट्र में गन्ना किसान और चीनी उद्योग लंबे समय से एनसीपी का मजबूत से साथ देता आया है लेकिन अब एनसीपी का ये आखिरी किला भी ढह चुका है।
बड़े भाई की भूमिका में भाजपा
भाजपा और शिवसेना ने पहली बार 1990 में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। 1989 से पहले शिवसेना और भाजपा की अलग राह थी। दोनों को एक राह पर लाने का श्रेय प्रमोद महाजन और शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे को जाता है। उस वक्त महाराष्ट्र में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में थी और भाजपा छोटे भाई की। 1989 में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन हुआ। दोनों ने मिलकर 1990 में विधानसभा चुनाव लड़ा। उस वक्त शिवसेना ने भाजपा को 104 सीटें दी थी और खुद 183 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें भाजपा को 42 और शिवसेना को 52 सीटें मिलीं। 25 साल बाद 2014 के चुनाव में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन टूट गया और भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई। अब भाजपा की तुलना में शिवसेना दूसरे नंबर की पार्टी बन गई।